Wednesday 4 July 2018

सूरह मरियम 19 (क़िस्त 2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मरियम 19
(क़िस्त 2)


मोमिन अपने लिए तो नहीं लिखता मगर शायद आप को ये अच्छा नहीं लगता कि मैं हिदू वादी हूँ, न इस्लाम वादी, मैं इस्लाम विरोधी हूँ तो मुझे हिदू समर्थक होना चाहिए - - -

हिन्दू के लिए मैं इक मुलिम ही हूँ, आख़िर,
मुलिम ये समझते हैं गुमराह है काफ़िर.
इंसान भी होते हैं कुछ लोग जहाँ में,
गफ़लत में हैं ये दोनों समझेगा मुनकिर.



विडम्बना ये है कि हमारे समाज में ज्यादाः तर लोग आपस में सीगें लड़ाते हुए यही दोनों हैं, फिर भी ये मत देखिए कि कौन कह रहा है, 
यह देखिए कि क्या कह रहा है,

क़ुरआन की चुनौतियाँ


आम मुसलामानों को कहने में बड़ा गर्व होता है कि क़ुरआन की एक आयत (वाक्य) भी कोई इंसान नहीं बना सकता क्यूंकि ये अल्लाह का कलाम है. 

दूसरी फ़ख़्र की बात ये होती है कि इसे मिटाया नहीं जा सकता क्यूंकि यह सीनों में सुरक्षित है, (अर्थात कंठस्त है.) यह भी धारणा आलिमों द्वारा फैलाई गई है कि इसकी बातों और फ़रमानों को आम आदमी ठीक ठीक समझ नहीं सकता, बग़ैर आलिमों के. 
सैकड़ों और भी बे सिरो-पैर की ख़ूबियाँ इसको प्रचारित करती हैं.
सच तो है कि किसी दीवाने की बात को कोई सामान्य आदमी दोहरा नहीं सकता और आपकी अख़लाकी जिसारत भी नहीं कि किसी पागल को दिखला कर मुसलामानों से कह सको कि यह रहा, 
बडबडा रहा है क़ुरआनी आयतें. 
एक सामान्य आदमी भी नक़्ल में मुहम्मद की आधी अधूरी और अर्थ हीन बातें स्वांग करके दोहराने पर आए तो दोहरा सकता है, 
क़ुरआन की बकवासें, 
मगर वह मान कब सकेंगे. मुहम्मद की तरह उनकी नक़्ल उस वक़्त लोग दोहराते थे मगर झूटों के बादशाह कभी मानने को तैयार न होते. 
हिटलर के शागिर्द मसुलेनी ने शायद मुहम्मद की पैरवी की हो कि झूट को बार बार दोहराव, सच सा लगने लगेगा. 
मुहम्मद ने कमाल कर दिया, झूट को सच ही नहीं बल्कि अल्लाह की आवाज़ बना दिया, 
तलवार की ज़ोंर और माले-ग़नीमत की लालच से. 
मुहम्मद एक शायर नुमा उम्मी थे, और शायर को हमेशा यह भरम होता है कि उससे बड़ा कोई शायर नहीं, उसका कहा हुवा बेजोड़ है.
क़ुरआन के तर्जुमानों को इसके तर्जुमे में दातों पसीने आ गए, 
मौलाना अबू कलाम आज़ाद सत्तरह सिपारों का तर्जुमा करके, 
मैदान छोड़ कर भागे. 
मौलाना अशरफ़ अली थानवी ने ईमानदारी से इसको शब्दार्थ में परिवर्तित किया और भावार्थ को ब्रेकेट में अपनी राय देते हुए लिखा, 
जो नामाक़ूल आलिमों को चुभा. इनके बाद तो तर्जुमानों ने बद दयानती शुरू कर दी और आँखों में धूल झोंकना उनका ईमान और पेशा बन गया.
दर अस्ल इस्लाम की बुनियादें झूट पर ही रख्खी हुई, 
अल्लाह बार बार यक़ीन दिलाता है कि उसकी बातें इकदम सही सही हैं, 
इसके लिए वह कसमें भी खाता है. 
इसी झूट के सांचे को लेकर ओलिमा चले हैं. 
इनका काम है मुहम्मद की बकवासों में मानी ओ मतलब पैदा करना. 
इसके लिए तफ़सीरें (व्याख्या) लिखी गईं जिसके जरीए शरअ और आध्यात्म से जोड़ कर अल्लाह के कलाम में मतलब डाला गया. 
सबसे बड़ा आलिम वही है जो इन अर्थ हीन बक बक में किसी तरह अर्थ पैदा कर दे. मुहम्मद ने वजदानी कैफ़ियत (उन्माद-स्तिथि) में जो मुंह से निकाला वह क़ुरआन हो गया, 
अब इसे ईश वाणी बनाना इन रफ़ुगरों का काम है.
जय्यद आलिम वही होता है जो क़ुरान को बेजा दलीलों के साथ इसे ईश वाणी बनाए.
मुसलमान कहते हैं क़ुरआन मिट नहीं सकता कि ये सीनों में क़ायम और दफ़्न है. 
यह बात भी इनकी क़ौमी बेवक़ूफ़ी बन कर रह गई है, बात सीने में नहीं याद दाश्त यानी ज़हनों में अंकित रहती है जिसका सम्बन्ध सर से है. 
सर खराब हुआ तो वह भी गई समझो. 
जिब्रील से भी ये इस्लामी अल्लाह ने मुहम्मद का सीना धुलवाया था, 
चाहिए तो यह था कि धुलवाता इनका भेजा. 
रही बात हाफ़िज़े (कंठस्त) की, मुसलमान क़ुरआन को हिफ्ज़ कर लेते हैं जो बड़ी आसानी से हो जाता है, यह फूहड़ शायरी की तरह मुक़फ़्फ़ा (तुकान्तित) पद्य जैसा गद्य है, आल्हा की तरह, गोया आठ साल के बच्चे भी इसके हाफिज़ हो जाते हैं, अगर ये शुद्ध गद्य में होता तो इसका हफिज़ा मुमकिन न होता.



चलिए अल्लाह की बातों की तरफ़ - - -


''फिर वह (मरियम) उसको (ईसा को) गोद में लिए हुए क़ौम के सामने आई. लोगों ने कहा ऐ मरियम तुमने बड़े गज़ब का काम किया है . ऐ हारुन की बहेन! तुम्हारे बाप कोई बुरे नहीं थे, और न तुम्हारी माँ बद किरदार. बस कि मरियम ने बच्चे की तरफ़ इशारा किया, लोगों ने कहा भला हम शख़्स से कैसे बातें कर सकते हैं ? जो गोद में अभी बच्चा है. बच्चा ख़ुद ही बोल उट्ठा कि मैं अल्लाह का बन्दा हूँ. उसने मुझ को किताब दी और नबी बनाया और मुझको बरकत वाला बनाया. मैं जहां कहीं भी हूँ. और उसने मुझको नमाज़ और ज़कात का हुक्म दिया जब तक मैं ज़िन्दा हूँ. और मुझको मेरी वाल्दा का ख़िदमत गार बनाया, और उसने मुझको सरकश और बद बख़्त नहीं बनाया. और मुझ पर सलाम है. जिस रोज़ मैं पैदा हुवा, और जिस रोज़ रेहलत करूंगा और जिस रोज़ ज़िन्दा करके उठाया जाऊँगा. ये हैं ईसा इब्ने मरियम. सच्ची बात है जिसमे ये लोग झगड़ते हैं. अल्लाह तअला की यह शान नहीं कि वह औलाद अख़्तियार करे वह पाक है.''
सूरह मरियम 19 आयत (27-34)



पिछली क़िस्त में आपने पढ़ा कि क़ुरआन में किस शर्मनाक तरीक़े से मुहम्मद ने मरियम को जिब्रील द्वारा गर्भवती कराया और ईसा रूहुल-जिब्रील पैदा हुए. 
अब देखिए कि दीवाना पैगम्बर, ईसा का तमाशा मुसलमानों को क्या दिखलाता है? विडम्बना ये है कि मुसलमान इस पर यक़ीन भी करता है, क़ुरआन का फ़रमाया हुवा जो हुवा. मरियम हरामी बच्चे को पेश करते हुए समाज को जताती है कि मेरा बच्चा कोई ऐसा वैसा नहीं, यह तो ख़ुद चमत्कार है कि ईसा पैदा होते ही अपनी सफ़ाई देने को तय्यार है. लो, इसी से बात करलो कि ये कौन है. 
लोगों के सवाल करने से पहले ही एक बालिश्त की ज़बान निकल कर टाँय टाँय बोलने लगे ईसा अलैहिस्सलाम. 
ज़ाहिर है उनके संवाद और चिंतन उम्मी मुहम्मद के ही हैं. 
बच्चा कहता है, ''मैं अल्लाह का बन्दा हूँ '' 
जैसे कि वह देखने में भालू जैसा लग रहा हो. 
मुहम्मद को उनके अल्लाह ने चालीस साल की उम्र में क़ुरआन दिया था, 
ईसा को पैदा होते ही किताब मिली? 
जैसे कि ईसा का पुनर जन्म हुवा हो, 
और वह अपने पिछले जन्म की बात कर रहे हों. 
मुहम्मद की कुबुद्धि बोल चाल में इस स्तर की है कि इल्म की दुन्या में जैसे वह थे. व्याकरण, काल, भाषा, प्रस्तुति, इनकी ग़ौर तलब है. 
लेखन की दुन्या में अगर इन आयतों को दे दिया जाए तो मुहम्मद की बुरी दुर्गत हो जाए. इन्ही परिस्थियों में जो आलिम इसके अन्दर मानी, मतलब और हक़ गोई पैदा कर दे, वह इनआम याफ़्ता आलिम हो सकता है. 
मुसलमानों के सामने ये खुली चुनौती है कि वह ऐसी क़ुरआन पर लअनत भेज कर इससे मुक्ति लें. 

अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बने ईसा मुहम्मद की नमाज़,ज़कात और इस्लाम का प्रचार भी करते हैं.

''तमाम ज़मीन और इस पर रहने वालों के हम ही मालिक रह जाएँगे 

और ये सब हमारे पास ही लौटे जाएँगे ''
सूरह मरियम 19 आयत (40)



मुसलामानों तुम्हारा अल्लाह कितना बड़ बोला है, 
यह बशर का सच्चा अल्लाह तो नहीं हो सकता. 
वह जो भी हो, जैसा भी हो, अपने आप में रहे, मख़लूक़ को क्यूँ डराता धमकाता है ? हम उससे डरने वाले नहीं, क्या हक़ है उसे मख़लूक़ को सज़ा देने की ? 
क्या मख़लूक़ ने उससे गुज़ारिश की थी कि हम पैदा होना चाहते हैं, 
इस तेरी अज़ाबुन-नार ? अपनी तमाश गाह बनाया है दुन्या को? 
ऐसा ही ज़ालिम ओ जाबिर अगर है अगर तू , तो तुझ पर लअनत है.

ईसा
 ईसा कट्टर पंथी यहूदी धर्म का एक बाग़ी यहूदी था.
एक मामूली बढ़ई यूसुफ़ क़ी मंगेतर मरियम थी,
जिनका शादी से पहले ही अपने मंगेतर के साथ यौन संबंध हो गया था,  नतीजतन वह गर्भ वती हो गई,
बच्चा हुआ जो यहूदी धर्म में अमान्य था,
जैसे आज मुसलमानों में ऐसे बच्चे नाजायज़ क़रार पाते हैं.
ईसा को बचपन से ही नाजायज़ होने का तअना सुनना पड़ा.
जिसकी वजह से वह अपने माँ बाप से चिढ़ने लगा था.
वह चौदह साल का था, माँ बाप उसे अपने साथ योरोसलम तीर्थ पर ले गए,
जहाँ वह गुम हो गया, बहुत ढूँढने के बाद वह योरोसलम के एक मंदिर में मरियम को वह मिला.
मरियम ने झुंझला कर ईसा को घसीटते हुए कहा,
''तुम यहाँ हो और तुम्हारा बाप तुम्हारे लिए परेशान है.''
ईसा का जवाब था मेरा कोई बाप है और न माँ.
मैं ख़ुदा का बेटा हूँ और यहीं रहूँगा.
ईसा अड़ गया, यूसुफ़ और मरियम को ख़ाली हाथ वापस लौटना पड़ा.
ईसा के इसी एलान ने उसे ख़ुदा का बेटा बना दिया.
वह कबीर क़ी तरह यहूदी धर्म क़ी उलटवासी कहने लगा,
थे न दोनों समाज के नाजायज़ संतानें.
वह धर्म द्रोही हुवा और सबील पर यहूदी शाशकों ने उसे लटका दिया.
इस तरह वह  ''येसु ख़ुदा बाप का बेटा'' बन गया.
और उसके नाम से ही एक धर्म बन गया.
ईसाई उसे कुंवारी मारिया का बेटा कहते हैं,
जिसमें झूट और अंध विश्वास न हो तो वह धर्म कैसा?
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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