Monday 23 July 2018

Soorah Ambiya 21 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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  सूरह अंबिया -21   
क़िस्त- 2   
अल्लाह अपने रसूल से जवाब तलब है - - - 


 ''क्या बावजूद दलायल के उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा किसी और को माबूद बना रक्खे हैं - - - और हमने आपसे पहले कोई ऐसा पैग़म्बर नहीं भेजा जिसके पास हमने ये वह्यि न भेजी हो कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, पस मेरी इबादत किया करो. - - - वह जानते हैं कि अल्लाह तअला उनके अगले और पिछले अहवाल को जनता है और बजुज़ उसके जिसके लिए अल्लाह तअला की मर्ज़ी हो और किसी की सिफ़ारिश नहीं कर सकते. और सब अल्लाह तअला की मौजूदगी से डरते. इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और ज़मीन बंद थे, फिर हमने अपनी क़ुदरत से दोनों को खोल दिया और हमने पानी से हर जानदार चीज़ को बनाया. क्या फिर भी ईमान नहीं लाते ''
सूरह अंबिया -21- आयत (21-30)



उस अल्लाह पर लअनत है जो अपने मुँह से कहता हो कि मैं ही इबादत के लायक़ हूँ,

तुम मेरी इबादत ही किया करो. वह टुच्चा और ख़ुद नुमाई करने वाला अल्लाह तुम्हारा मालिके-कायनात है? तो यह तुम्हारे लिए शर्म की बात होनी चाहिए. 
जहिले-मुतलक़ की दलील पर ग़ौर हो कि 
''क्या इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और ज़मीन बंद थे, फिर हमने अपनी क़ुदरत से दोनों को खोल दिया'' 
जैसे कि मुस्लिमों को इसका इल्म रहा हो. 
मुसलमान इस ख़ुलासे को पाकर फूले नहीं समाते, उनसे बेहतर काफ़िर हैं जो इनका मज़ाक उड़ाते हैं.
मुसलामानों, 
सिर्फ़ ये मुल्ला और मोलवी ही नहीं दूसरे फ़िरके के दुष्ट प्रकृति के लोग भी नहीं चाहते कि तुम बेदार हो सको. तुमको मुसलमान बना कर रखने में ही उनका हित निहित है. 
तुम अगर जग गए तो उन्हें अच्छे और मेहनती मज़दूर मिस्त्री कहाँ मिलेंगे? अच्छे दस्त कर मुसलमानों में ही ज़्यादा पाए जाते हैं, 
क्या कभी सोचा है कि ऐसा क्यूं? 
इस लिए कि जिन बच्चों में पढ़ लिख कर इंजीनियर, डाक्टर, केमिस्ट और साइंटिस्ट बनने कि सलाहियत होती है मगर वह उसकी तालीम से महरूम रहते है, तो हुनर में अपनी सलाहियत का मज़ाहिरा करते हैं. 
मुल्ला बार बार दोहराते हैं कि क़ुरआन कहता है,
''इल्म हासिल करना है तो चीन तक जाना पड़े तो जाओ''
तो चीन में क्या इस्लामी अल्लाह के मुताबिक तालीम तब थी, 
या आज है ?
तुम बेदार हुए तो उनकी सनअतों का क्या होगा जो तुम्हारे लिए वज़ू बनाने और इस्तेंजा पाक (लिंग-शोधन) करने का टोटी दार लोटा बनाते हैं ? तहमदें, टोपियाँ, पोशाकें और खिज़ाब वग़ैरा बनाते हैं ? 
बड़ी दूकानों और सलाटर हाउसों के लिए कर्मीं कहाँ होंगे? 
हत्ता कि तुम्हारे क़ुरआन की इशाअत और तबाअत भी उन्हीं के हाथ में है.
नवल किशोर प्रेस का नाम सुना है? 
तुम्हारी सभी दीनी किताबों की बरकतें पचास साल तक उन्हीं के हक़ में गई है. ग़ैर मुसलामानों की कंज्यूमर सेंटर तुम्हारी इस दीनी जेहालत पर ही क़ायम है, वह तो तुमको क़ायम रखना ही चाहेंगे. 
क़ुरआन बार बार तुम्हारी बदहाली और काफ़िरों की ख़ुशहाली की वकालत करता है क्यूंकि तुम्हारी पूँजी तो ऊपर जमा हो रही है.



''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने (?) लगे और हमने इसमें कुशादा रस्ते बनाए ताकि वह लोग मंजिल तक पहुँच सकें और हम ने आसमान को एक छत बनाया जो महफूज़ है. और ये लोग इस से एराज़ किए (मुंह फेरे) हुए हैं. और वह ऐसा है जिसने रात और दिन बनाए, सूरज और चाँद. हर एक, एक दायरा में तैरते है. और हमने आप से पहले भी किसी बशर को हमेशा रहना तजवीज़ नहीं किया. फिर आप का इंतक़ाल हो जाए तो क्या लोग हमेश हमेशा दुन्या में रहेंगे. हर जानदार मौत का मज़ा चक्खेगा और हम तुमको बुरी भली से अच्छी तरह आज़माते हैं. और तुम सब हमारे पास चले आओगे और यह काफ़िर लोग जब आपको देखते हैं तो बस आप से हँसी करने लगते हैं. क्या यही हैं जो तुम्हारे मअबूदों का ज़िक्र किया करते हैं? और यह लोग रहमान के ज़िक्र पर इंकार करते हैं. इंसान जल्दी का ही बना हुवा है. हम अनक़रीब आप को अपनी निशानियाँ दिखाए देते हैं ,पस ! तुम हम से जल्दी मत मचाओ. और ये लोग कहते हैं वादा किस वक़्त आएगा? अगर तुम सच्चे हो, काश इन काफ़िरों को उस वक़्त की ख़बर होती. जब ये लोग आग को न अपने सामने से रोक सकेंगे न अपने पीछे से रोक सकेंगे. और न उनकी कोई हिमायत करेगा. बल्कि वह उनको एकदम से आ गी. - - -''

सूरह अंबिया -21- आयत (31-40)



देखिए ऊपर शुरू आयत में ही तर्जुमा करने वाले आलिम ने कैसे मुहम्मद की बक बक में पेवन्द लगाया है - - -

मुहम्मद कह रहे है ''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने लगे.''
तर्जुमा करने वाले आलिम ने इसको ब्रेकट में (न) लगा कर मतलब को उल्टा कर दिया है --
''और हमने ज़मीन में इस लिए पहाड़ बनाए कि ज़मीन इन लोगों को लेकर हिलने (न)लगे.''
अब ऐसी जगह पर ओलिमा आपस में एक दूसरे का विरोध कर करते रहते हैं कि अल्लाह ने पहाड़ इस लिए रखे कि ज़लज़ला की सूरत पैदा होती है और यह भी कि वज़न रखने से ज़मीन सधी रहे मगर अस्ल मतलब को ज़ाहिर करने की हिम्मत किसी में नहीं कि ये अल्लाह बने मुहम्मद की ला इल्मी है, क्यूंकि वह उम्मी थे.
इंसान जल्दी का ही बना हुवा है.? 
क्यूँ क्या जल्दी थी अल्ला मियां को, 
वह अगर उनका बनाया हुवा है तो फिर उसको मुसलमान बनाने का पापड़ क्यूं ,वह और उनके रसूल बेल रहे हैं.
ज़मीन पर रस्ते इंसान बनाते हैं, अल्लाह नहीं. 
इस बात में भी मुहम्मद की उम्मियत हायल है.
मुसलामानों ! 
आसमान कोई छत नहीं आपकी हद्दे नज़र है. ये लामतनाही है, 
जिसको जनाब ने सात तबक में सात  मंजिला इमारत तसव्वुर किया है.
आप पर हंसने वाले काफ़िर थे, न ज़ालिम, वह ज़हीन लोग थे कि ऐसी बातों पर हँस दिया करते थे कि आज जो तिलावत बनी हुई हैं.
मुहम्मद तबीयातन तालिबानी थे, 
जो दुन्या की आबादी को ख़त्म कर देना चाहते थे, 
इशारतन वह बतला रहे हैं कि वह अल्लाह से जल्दी बाज़ी कर रहे हैं कि क़यामत क्यूँ नहीं आती.
मुहम्मद का एक तकिया कलाम यह भी रहा है कि किसी आमद को हर बार सामने से बुलाते हैं, फिर पीछे से भी आने का कयास करते हैं.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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