Sunday 1 July 2018

Soorah Kahaf 18 Q 7

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह कहफ़ 18 
(क़िस्त-7) 


अल्लाह मियाँ की एक बेसिर व पैर की कहानी पढ़िए - - - 


"लोग आप से ज़ुलक़रनैन का हाल पूछते हैं, आप बयान करिए - - - हम ने उनको रूए ज़मीन पर हुकूमत दी थी और हम ने उनको हर क़िस्म का सामान दिया था, चुनांच वह एक राह पर हो लिए, यहाँ तक कि जब ग़ुरूब आफ़ताब तक का मौक़ा आ पहुंचा तो उनको एक सियाह रंग के पानी में डूबता हुवा दिखाई दिया (?) और इस मौके पर उन्हों ने एक क़ौम देखी. हमने उनसे कहा ऐ ज़ुलक़रनैन ! ख़्वाह सज़ा दो ख़्वाह नरमी का बरताव अख़्तियार करो, जवाब दिया जो ज़ालिम रहेगा उसको तो हम लोग सज़ा ही देंगे, फिर वह अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाएगा और वह उसको सख़्त सज़ा देगा और जो शख़्स  ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए बदले में भलाई मिलेगी - - - फिर ज़ुलक़रनैन ऐसी जगह तुलूए आफ़ताब देखी जिसके लिए हम ने आफ़ताब को ही आड़ नहीं रख्खी. इस तरह ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, उसको इसकी पूरी ख़बर है ,फिर एक और राह हो लिए, यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के दरमियाँ पहुँचे तो उनसे, उस तरफ़ एक क़ौम को देखा जो कोई बात समझने के क़रीब में नहीं पहुँचते. उन्हों ने अर्ज़ किया कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! याजूज माजूज इस सर ज़मीन पर बड़ा फ़साद मचाते हैं सो क्या हम लोग आप के लिए कुछ चंदा जमा करें, इस शर्त पर कि आप हमारे उनके बीच कोई रोक बना दें, जवाब दिया कि जिस में हमारे रब ने अख़्तियार दिया है, वह बहुत कुछ है . सो क़ूवत से मेरी मदद करो. मैं तुम्हारे और उनके दरमियान खूब मज़बूत दीवार बना दूगा. तो लोग मेरे पास लोहे की चादरें लाओ, यहाँ तक कि जब उनके दोनों सरों के बीच बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि धौंको, यहाँ तक कि जब उसको अंगारा क़र दिया तो हुक्म दिया कि मेरे पास पिघला हुवा ताम्बा लाओ कि इस पर डाल दूँ सो वह लोग न तो इस पर चढ़ सकते थे, कहा कि ये मेरे रब की रहमत है फिर जिस वक़्त मेरे रब का वादा आएगा , इसके फ़ना का वक़्त आएगा सो इसको ढा कर बराबर कर देगा और मेरे रब का बर हक़ है.''

सूरह कहफ़ 18 आयत (83-98)

मुहम्मद ने ईसा, मूसा, मरियम, हकीम लुक़मान वगैरह, जिनका हाल सुन रख्खा था, या जिनकी कहानी सुनी थी सबको क़ुरआन में शामिल करके उनकी कहानी अपने अंदाज़ में बनाई है, जो इस्लामी प्रचार के लिए विषय होते थे और इसका गवाह सीधे अल्लाह को बना दिया. 
क़ुरआन को अल्लाह का कलाम बता कर.
मशहूर हस्तियाँ ही नहीं कुछ अजीबो-ग़रीब हस्तियाँ अपनी तरफ़ से भी गढ़ लिया था. इस सूरह में कोई फ़र्ज़ी बादशाह ज़ुलक़रनैन की कहानी गढ़ी है. या उसका नाम सुना होगा.

''हम ने उनको रूए ज़मीन पर हुकूमत दी थी''
''हम ने उनको हर क़िस्म का सामान दिया था''
बड़े बादशाह को हर क़िस्म का सामान भी अल्लाह ने दिया, 
है न अहमकाना बात - -
''और ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, अल्लाह को इसकी पूरी खबर है ''
है ये दूसरी अहमकाना दलील हुई,
मगर वह बे सरो समानी के आलम में तनहा सफ़र पर भी था - - -
शाम का वक़्त था काले पानी में क्या डूबता हुवा दिखाई दिया उसका नाम बतलाना भूल कर आगे बढ़ते हैं,
''चुनांच वह एक राह पर हो लिए, यहाँ तक कि जब ग़ुरूब आफ़ताब तक का मौक़ा आ पहुंचा तो उनको एक सियाह रंग के पानी में डूबता हुवा दिखाई दिया (?)''
''इस मौके पर उन्हों ने एक क़ौम देखी. हमने (गोया अल्लाह ने) उनसे कहा ऐ ज़ुलक़रनैन ! ख़्वाह सज़ा दो ख़्वाह नरमी का बरताव अख़्तियार करो''
मतलब हुवा कि अल्लाह ज़ुलक़रनैन के मातहत था. अल्लाह का मशविरा ठुकरा कर ज़ुलक़रनैन ने फैसला कुन जवाब दिया कि
''जो ज़ालिम रहेगा उसको तो हम सज़ा ही देंगे और (कोई आप से बड़ा मालिक है तो) फिर वह अपने मालिक के पास पहुँचा दिया जाएगा. वह उसको सख़्त सज़ा देगा.''
मुहम्मद अपनी इस्लामी डफ़ली बजाने लगते हैं - - -
''जो शख़्स ईमान लाएगा और नेक अमल करेगा तो उसके लिए बदले में भलाई मिलेगी - - -''
"चलते चलते शाम से रात हुई और सुबह का वक़्त आया फिर ''ज़ुलक़रनैन ऐसी जगह तुलूए आफ़ताब देखी जिसके लिए हम ने आफ़ताब को ही आड़ नहीं रख्खी.''
मुहम्मद ने यहाँ क्या कहा है आलिम रफ़ुगरों की समझ से भी बाहर है. 
अल्लाह ने सूरज को चिलमन बना कर नहीं लटकाया? मुख़बिर अल्लाह ज़ुलक़रनैन के झोले में रख्खे सामान की पूरी जानकारी रखता है, 
यह मुक़र्रर इरशाद है . - - - 
''इस तरह ज़ुलक़रनैन के पास जो सामान था, उसको इसकी पूरी ख़बर है''
चलते चलते ''ज़ुलक़रनैन यहाँ तक कि जब दो पहाड़ों के दरमियाँ पहुँचे तो उनसे, उस तरफ एक क़ौम को देखा जो कोई बात समझने के क़रीब में नहीं पहुँचते.''
यानी उस क़ौम की गुफ़तुगू को न समझते हुए भी समझे कि उन लोगों ने 
''अर्ज़ किया कि ऐ ज़ुलक़रनैन ! याजूज माजूज इस सर ज़मीन पर बड़ा फ़साद मचाते हैं सो क्या हम लोग आप के लिए कुछ चंदा जमा करें, इस शर्त पर कि आप हमारे उनके बीच कोई रोक बना दें''
यह याजूज माजूज भी मुहम्मद की जेहनी पैदावार हैं या फ़क़त नाम सुना होगा. 
आगे फ़रमाते हैं कि ज़ुलक़रनैन ने उन लोगों से कोई माली मदद तो नहीं ली क्यूँकि उनके पास रब का दिया हुवा बहुत था, मगर लोगों की मेहनत ज़रूर तलब की. बादशाह उनकी मदद यूँ करता है - - -
''तो लोग मेरे पास लोहे की चादरें लाओ, यहाँ तक कि जब उनके दोनों सरों के बीच बराबर कर दिया तो हुक्म दिया कि धौंको'', 
जिस क़ौम ने लोहे की चादर बना ली हो, उसको इनसे मैदान की घेरा बंदी भी आती होगी. ज़ुलक़रनैन उनसे क्या (?) धौंकाता है,
'' यहाँ तक कि जब उसको अंगारा क़र देते हैं तो हुक्म दिया कि मेरे पास पिघला हुवा ताम्बा लाओ कि इस पर डाल दूँ सो वह लोग न तो इस पर चढ़ सकते थे.''
लोग ताम्बा पिघला सकते हैं, बस कि लोहे की चादरों से दीवार नहीं खड़ी कर सकते?
'' फिर मुहम्मद क़ुरआनी सारंगी छेड़ देते हैं.''


''और उस रोज़ हम उनकी ऐसी हालत कर देंगे कि वह एक दूसरे में गडमड हो जाएँगे और सूर फूँका जायगा और हम सब को जमा कर लेंगे और दोज़ख को उस रोज़ काफ़िरों के सामने पेश करेगे और वह अपने ख़याल में हैं कि अच्छा काम कर रहे हैं, ये लोग हैं जो कि रब की आयातों का और उस से मिलने का इंकार कर रहे हैं इनके सारे काम ग़ारत हो जाएँगे क़यामत के रोज़. हम इनका ज़रा भी वज़न न क़ायम करेंगे. यानी दोज़ख इस सबब से कि उन्हों ने कुफ्र किया था और मेरी आयातों और पैग़म्बर का मज़ाक उड़ाया था. आप कह दीजिए कि मेरे रब की बातें लिखने के लिए समन्दर रोशनाई हो तो समन्दर ख़त्म हो जाएगा मगर मेरे रब की बातें ख़त्म न होंगी'' 

सूरह कहफ़ 18 आयत (१००-110 )

देखो कि अपने अल्लाह की शान, अपने बन्दों की हालत वह क्या कर देगा, 
यह मुहम्मद की ज़ालिमाना फ़ितरत की ग़म्माज़ी है. क्या तुम को ये शैतान ज़ेहन की साज़िश नहीं मअलूम पड़ती? 
क्या तुम उस क़ुदरत को इतना बे रहम समझते हो कि अपने बन्दों में कुफ़्र को गुनाह साबित करके उनके लिए अलग से सज़ा मुक़र्रर करेगा? 
ज़लज़ला आता है तो काफ़िर और मोमिन को देख कर उनके घर गिराता है ? 
मुहम्मद इतने बड़े ग़ैर मुंसिफ थे कि काफिरों के नेक अमल को भी ख़ातिर में नहीं लाते. बस कि जब तक उनकी इन पुरगुनाह आयतों को तस्लीम न कर लें. 
दुन्या की तारिख़ में इतना बड़ा साजिशी कोई और नहीं हुवा कि इंसानियत को महसूर करके कामयाब हो गया हो. 
मगर नहीं यह कामयाबी नहीं, झूट भी क्या कभी कामयाब हो सकता है? 
मकर कभी हक़ीक़त का सामना नहीं कर सकता, 
मुहम्मद आलमे इंसानियत में बद तरीन मुजरिम हैं.
ख़ुदा के लिए अपने आप को और अपनी औलादों को आने वाले वक़्त से बचाओ. 
अभी सवेरा है, वरना मुहम्मद के किए धरे की सज़ा भुगतने के लिए तैयार रख्खो अपनी नस्लों को. 
तुमको छूट है कि मोमिन बन के अपने बुजुर्गों की भूल की तलाफ़ी करो.

मुसलमानों! 
ईमान दार मोमिन ही क़ुरआन की सही तर्जुमानी कर सकता है, 
ये ज़मीर फ़रोश ओलिमा सच बोलने की हिम्मत भी नहीं कर सकते. कुरआन में इस फ़र्ज़ी वाकिए और नामुकम्मल गुफ्तुगू में आलिम ने क्या क्या न आरिफ़ाना (आध्यात्मिक) मिर्च मसालों की छ्योंक बघारी हैं कि पढ़ कर दिल मसोसता है. 
तुम जागो, जग कर मोमिन हो जाओ, 
जो कि इंसान का मुकम्मल मज़हब है, जिसका कोई झूठा पैग़म्बर नहीं, बल्कि कोई पैग़म्बर नहीं, कोई चल-घात की बातें नहीं, सीधा सादा एलान कि २+२=४ होता है, 
न तीन और न पाँच. 
फूल में ख़ुशबू होती है, इसे किसने पैदा किया? 
उसकी तलाश में मत जाओ कि तुम्हारी तलाश की राह में कोई मुहम्मद बना हुवा पैग़म्बर बैठा होगा. 
बहुत से सवाल, जवाब नहीं रखते, 
कि वक़्त कब शुरू हुआ था? कब ख़त्म होगा? 
सम्तें (दिशाएँ) कहाँ से शुरू होती हैं, कहाँ ख़त्म होंगी? 
इन सवालों को ज़मीन की दीगर मख़लूक़ की तरह सोचो ही नहीं. फ़ितरत की इस दुन्या में चार दिन के लिए आए हो, फ़ितरी ज़िन्दगी जी लो.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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