Monday 30 July 2018

Soorah ambiya 21 Q 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह अंबिया -21   
क़िस्त- 4   

उन यहूदी नबियों को जिन जिन का नाम मुहम्मद ने सुन रखा था, 
कुरान में उनकी अंट-शंट गाथा बना कर बार बार गाये हैं .
* योब (अय्यूब) की तौरेती कहानी ये है कि वह अपने समाज का प्रतिष्ठित व्यक्ति था, औलादों से और धन दौलत में बहुत ही सम्पन्न था. उस पर बुरा वक़्त ऐसा आया कि सब समाप्त हो गया, इसके बावजूद उसने ईश भक्ति नहीं त्यागी. वह चर्म रोग से इस तरह पीड़ित हुवा कि शरीर पर कपड़े भी गड़ने लगे और वह एक कोठरी में बंद होकर नंगा भभूत धारी बन कर रहने लगा, इस हालत में भी उसको ईश्वर से कोई शिकायत न रही, और उसकी भक्ति बनी रही. उसके पुराने दोस्त आते, उसको देखते तो दुखी होकर अपने कपड़े फाड़ लेते.
** इस्माईल लौड़ी जादे थे,
पिता अब्राहम इनको इनके माँ के साथ सेहरा बियाबान में छोड़ गए थे, 
इनकी माँ हैगर ने इनको पाला पोसा. 
ये मात्र शिकारी थे और बड़ी परेशानी में जीवन बिताया. 
इन्हीं के वंशज मियां मुहम्मद हैं, 
यहूदियों की इस्माईल्यों से पुराना सौतेला बैर है.
*** इदरीस और ज़ुल्कुफ़्ल सब साबित क़दम रहने वाले लोगों में से थे. 
बस अल्लाह को इतना ही मालूम है. दुन्या में लाखो साबित क़दम लोग हुए, 
अल्लाह को पता नहीं. और मछली वाले जब कि वह अपनी क़ौम से ख़फ़ा होकर चल दिए जिनका नाम मुहम्मद भूल गए और मुख़ातिब मछवारे की संज्ञा से याद किया है. 
**** (यूनुस=योंस नाम था) मशहूर हुवा कि वह तीन दिन मगर मछ के पेट में रहे, निकलने के बाद इस बात का एलान किया तो लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया, 
कहा के बस्ती छोड़ कर चले गए थे. 
योंस का हथकंडा मुहम्मद जैसा ही था मगर उनके साथ लाख़ैरे सहाबा-ए-कराम न थे, जेहाद का उत्पात न सूझा था कि माले-ग़नीमत की बरकत होती. फ्लाप हो गए .
***** ज़कारिया (ज़खारिया) और याहिया (योहन) का बयान मैं पिछली किस्तों में कर चुका हूँ. मुहम्मद फ़रमाते हैं कि उपरोक्त हस्तियाँ मेरी इबादत करते - - -
''और हमारे सामने दब कर रहते थे.'' 
दिल की बात मुंह से निकल गई और जेहालत को तख़्त और ताज भी मिल गया.



''और उनका भी जिन्हों ने अपने नामूस को बचाया, फिर हमने उन में अपनी रूह फूँक दी, फिर हमने उनको और उनके फरजंद को जहाँ वालों के लिए निशानी बना दी - - - और हमने जिन बस्तियों को फ़ना कर दीं हैं उनके लिए ये मुमकिन नहीं है फिर लौट कर आवें. यहाँ तक कि जब याजूज माजूज खोल दिए जाएँगे तो (?) और वह हर बुलंदी से निकलते होंगे. और सच्चा वादा आ पहुँचा होगा तो बस एकदम से ये होगा कि मुनकिर की निगाहें फटी की फटी रह जाएँगी कि हाय कमबख़्ती हमारी कि हम ही ग़लती पर थे, बल्कि वक़ेआ ये है कि हम ही क़ुसूरवार थे. बिला शुबहा तुम और जिनको तुम ख़ुदा को छोड़ कर पूज रहे हो, सब जहन्नम में झोंके जाओगे. 

(इसके बाद फिर दोज़ख़ियो को तरह तरह के अज़ाब और जन्नतियों को मज़हक़ा ख़ेज़ मज़े का हांल है जो बारबार बयान होता है)
सूरह अंबिया -21- आयत (91-103)



मुहम्मद का इशारा मरियम कि तरफ़ है. ईसाई मानते हैं कि ईसा मसीह ख़ुदा के बेटे है तब मुहम्मद कहते हैं कि यह अल्लाह की शान के ख़िलाफ़ है, 

न वह किसी का बाप है न उसकी कोई औलाद है. 
यहाँ पर अल्लाह कहता है कि फिर हमने उन में अपनी रूह फूँक दी, 
तब तो ईसा ज़रूर अल्लाह के बेटे हुए. जिस्मानी बेटे से रूहानी बेटा ज़्यादा मुअत्बर हुवा. यही बात जब ईसाई कहते हैं तो मुहम्मद का तसव्वुर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के शेर का हो जाता है - - -
आ मिटा दें ये तक़द्दुस ये जुमूद,
फिर हो किसी ईसा का वुरूद,
तू भी मज़लूम है मरियम की तरह,
मैं भी तनहा हूँ ख़ुदा के मानिद.

यहाँ अल्लाह मरियम के अन्दर अपनी रूह फूंकता है ,
इसके पहले फ़रिश्ते जिब्रील से उसकी रूह फुंकवाए थे, 
ईसा को रूहिल क़ुद्स कहा जाता है, जब कि यहाँ पर रूहुल्लाह हो गए.
कहते हैं कि 'दारोग आमोज रा याद दाश्त नदारद.' 
झूटों की याद दाश्त कमज़ोर होती है.



''और हम उस रोज़ आसमान को इस तरह लपेट देंगे जिस तरह लिखे हुए मज़मून का कागज़ को लपेट दिया जाता है, हमने जिस तरह अव्वल बार पैदा करने के वक़्त इब्तेदा की थी, इसी तरह इसको दोबारा करेंगे, ये हमारे ज़िम्मे वादा है और हम ज़रूर इस को करेंगे. और हम ज़ुबूर में ज़िक्र के बाद लिख चुके हैं कि इस ज़मीन के मालिक मेरे नेक बन्दे होंगे. 

(इसके बाद मुहम्मद ने हस्ब आदत अंट-शंट बका है जिसमें मुतराज्जिम ने ब्रेकेट लगा लगा कर थक गए होंगे कि कई बात बना दें, कुछ नमूने पेश हैं - - -
''और हम ने (1) आप को और किसी बात के लिए नहीं भेजा, मगर दुन्या जहान के लोगों (2) पर मेहरबानी करने के लिए . आप बतोर(3) फ़रमा दीजिए कि मेरे पास तो सिर्फ़ वह्यि आती है कि तुम्हारा माबूद (4 )सिर्फ़ एक ही है सो अब भी तुम (5) फिर (6) ये लोग अगर सर्ताबी करेंगे तो (7) आप फ़रमा दीजिए कि मैं तुम को निहायत साफ़ इत्तेला कर चुका हूँ और मैं ये जानता नहीं कि जिस सज़ा का तुम से वादा हुवा है, आया क़रीब है या दूर दराज़ है (8). - - -
सूरह अंबिया -२१ -आयत (१०४--११२)

१-(ऐसे मज़ामीन नाफ़े देकर)
२-(यानी मुकल्लफ़ीन)
३-( खुलासा के मुक़र्रर)
४-(हक़ीक़ी )
५-(मानते हो या नहीं यानी अब तो मानन लो)
६-(भी)
७- (बतौर तमाम हुज्जत के)
८- (अलबत्ता वक़ूअ ज़रूर होगा).
दोबारा समझा रहा हूँ की ओलिमा ने अनुवाद में मुहम्मद की कितनी मदद की है. पहले आप आयतों को पढ़ें, मतलब कुछ न निकले तो अनुवादित शब्दावली का सहारा लें, इस तरह कोई न कोई बात बन जायगी.भले वह हास्य स्पद हो.
मुहम्मद की चिंतन शक्ति एक लाल बुझक्कड़ से भी कम है, 
ब्रह्माण्ड को नज़र उठा कर देखते हैं तो वह उनको कागज़ का एक पन्ना नज़र आता है और वह आसानी के साथ उसे लपेट देते हैं. 
मुसलमान उनकी इस लपेटन में दुबका बैठा हुवा है. 
मुहम्मदी अल्लाह क़यामत बरपा करने का अपना वादा क़ुरआन में इस तरह दोहराता है जैसे कोई ख़ूब सूरत वादा किसी प्रेमी ने अपने प्रियशी से किया हो. और मैं ये जानता नहीं कि जिस सज़ा का तुम से वादा हुवा है, आया क़रीब है या दूर दराज़ है- - -
इतना कमज़ोर अल्लाह ?
मुसलमान उसके वादे को पूरा होने के लिए डेढ़ हज़ार सालों से दिल थामे बैठा है.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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