Friday 27 July 2018

Soorah haj 22 Q-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह हज 22 
क़िस्त-1
''ऐ लोगो अपने रब से डरो यक़ीनन क़यामत का ज़लज़ला बहुत भारी चीज़ होगी.'
सूरह हज 22 (आयत-1)

एक बार फिर आप को दावते-फ़िक्र दे रहा हूँ कि ग़ौर करिए कि आपका अल्लाह कैसा होना चाहिए? 
बहुत ज़ालिम, बड़ा ग़ुस्सैल, शेर की तरह कि ज़रा सी हरकत पर अप पर चढ़ बैठे? या आपके चचा और मामा की तरह आप को चाहने वाला, आपकी ग़लतियों को दरगुज़र करने वाला, 
कम से कम, सज़ा देने वाले को तो आप पसंद नहीं ही करेगे. 
यह आप पर मुनहसर है कि आप जैसा अल्लाह चाहें अख़्तियार करें. 
जी हाँ! यही तो इंसान का ज़ाती मुआमला हो जाता है कि वह अपने को किस पसंद दीदा दोस्त के हवाले करता है. 
दोस्त कोई ज़ात पाक भी हो सकता है, 
दोस्त कोई ख़याल-ए-नादिर भी हो सकता है. 
दोस्त आपकी महबूबा भी हो सकती है 
और आप का हुनर भी. 
दोस्त आप की पूजा भी हो सकती है और आपकी इबादते-लाहूत भी. 
दोस्त कैसा भी हो सकता है मगर क़ुरआनी अल्लाह को दोस्त बनाना किसी साज़िश का शिकार हो जाना है.
ज़लज़ले और आतश फ़िशां निज़ाम क़ुदरत के तहत मुक़र्रर है जो किसी काफ़िर या मुस्लिम आबादी को देख कर नहीं आते, 
न उनका उस टुकाची अल्लाह से कोई सरोकार है जो मुहम्मद ने गढ़े हैं. खुलकर ऐसे अल्लाह से बग़ावत कीजिए जो क़ौम को जुमूद में किए हुए है. 


''जिस रोज़ तुम इसको देखोगे, तमाम दूध पिलाने वालियाँ अपने बच्चों को दूध पिलाना भूल जाएँगी और तमाम हमल वालियाँ अपना हमल डाल देंगी और तुझको लोग नशे के आलम में दिखाई देंगे. हालांकि वह नशे में न होंगे मगर अल्लाह का अज़ाब है सख्त़.'' 

सूरह हज 22 (आयत-2-3)

क़बीलाई बन्दे मुहम्मद तमाज़त और मेयार को ताक़ पर रख कर गुफ़्तगू कर रहे हैं. क़यामत का बद तरीन नज़ारा को वह किस घटिया हरबे से  बयान कर रहे है कि जिसमे औरत ज़ात रुसवा हो रही है. 
और मर्द शराब के नशे में बद मस्त अपनी औरतों की रुस्वाइयाँ देख रहे होगे. 


''हमने तुमको मिटटी से बनाया फिर. नुतफ़े से, फिर  ख़ून के लोथड़े से फिर ख़ून की बोटी से पूरी होती है और अधूरी भी, ताकि हम तुम्हारे सामने ज़ाहिर कर दें. हम गर्भ में जिसको चाहते हैं एक मुद्दत ए मुअय्यना तक ठहराए रखते हैं, फिर तुम को बच्चा बना कर हम बाहर लाते हैं. फिर ताकि तुम अपनी भरी जवानी तक पहुँच जाओ और बअजे तुम में वह भी हैं जो निकम्मी उम्र तक पहुंचे जाते हैं. - - - और क़यामत आने वाली है, इसमें ज़रा शुबहा नहीं और अल्लाह क़ब्र वालों को दोबारह पैदा करेगा.''

सूरह हज 22 (आयत-5-7) 

एक बार फिर मुहम्मदी अल्लाह अपने हुनर और हिकमत को दोहराता है कि उसने जो कुछ इंसानी वजूद की शुरूआत अपनी आँखों से मुश्तअमल होते हुए देखा है. यानी मुहम्मद अपना ज़ाती मुशाहिदा बयान करते हैं जो मेडिकल साइंस में जेहालत कही जायगी. इन्हीं लग्वियात को ओलिमा कुराने-हकीम की बातें कहते हैं. 
पुनर जन्म की फ़िलासफ़ी एक कशिश तो रखती है मगर ये सदियों क़ब्र में पड़े रहना और उसके बाद उठाए जाना बड़ा बोरियत वाला अफ़साना है. क्या मज़ाक़ है अल्लाह अपने कारनामों का यक़ीन ज़ोरदार तरीक़े से दिलाता है.
 
''जो शख़्स  अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जरी होंगी, हमेशा हमेशा इनमें रहें. ये बड़ी कामयाबी है, अल्लाह तअला जो इरादः करता है, कर गुज़रता है '' 
सूरह हज 22 (आयत-14)

मुसलामानों!
 अल्लाह तअला कोई इंसानी ज़ेहन का बाँदा जैसा नहीं है, वह अगर कुछ है तो इन बातों से बाला तर होगा. वह बज़ाहिर लगता है बहुत बारीक, मगर है बहुत साफ़. हर जगह नज़र आता है मगर बिना किसी रंग रूप का. उसकी कोई ज़बान नहीं है, न उसका कोई कलाम. ज़बान होती तो बोलता ही रहता, सिर्फ़ चौदह सौ साल पहले मुहम्मद से बात करने के बाद उसके मुँह को लक़वा नहीं मार गया होता, उसके बाद उसकी बोलती बंद है. 
बार बार मुहम्मद तुम से नहरों वाली जन्नत की बात करते हैं जो कि तुमको अगर मिल जाय तो घर, घर न रह जाय बल्कि खेत और ताल तलय्या बन जायगा . 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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