Monday 20 January 2020

खेद है कि यह वेद है (3)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (3)

हवन करने के लिए ब्रह्मण अपने पोंगा पंडित लगाते हैं, 
यह ब्रह्मण के निठल्ले कपूत होते हैं जो राज काज में निपुणता से परे माने जाते हैं. 
यह समाज में हवन यज्ञ का माहौल बनाए रहते हैं. 
यजमान (हवन का भार उठाने वाला) को पटाया करते हैं, 
हवन की उपयोगता को समझाते है कि इस से वायु मंडल शुद्ध, सुरक्षीत और सुशोभित रहता है. यह पोंगे सैकड़ों देवताओं को यजमान के घर में मन्त्र उच्चारण से  बुलाते हैं जैसे देवता गण इनके मातहत हों.  
यह हराम खोर यजमान से सोमरस तैयार कराते हैं 
औए फिर देवताओं को आमंत्रित करते हैं कि आओ अश्वनी कुमारो ! 
सोमरस तैयार है, आकर पियो.
सोमरस शराब नहीं होती, क्योंकि यह पत्थर से कूट कर 
फिर कपडे से छान कर बनाई जाती है. 
यह ग़ालिबन भांग और चरस होती है जिसके दीवाने शंकर जी हुवा करते थे. 
यह सोमरस देवताओं के नाम पर नशा खो़री का जश्न हुवा करता था.

ऋग वेद में नामित देव गण - - - 
इंद्र देवता, अग्नि देवता, वायु देवता, अश्वनी कुमार, मरुदगण, रितु देवता, ब्राह्मणस्पति देवता, वरुण देवता, ऋभुगण देवता एवं 
सविता, पूषा, उषा, सूर्य, सोम विश्वेदेव, रात्रि , भावयव्य, मित्र, विष्णु ऋभु, मारूत, ध्यावा पृथ्वी जल देवता गण आदि. इन देवताओं के कोई न कोई ईष्ट होता है, इनकी वल्दियत दर्ज दर्जा है अगर आप इसे कल्पित मानते हैं. 
आदि.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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