Tuesday 21 January 2020

खेद है कि यह वेद है (4)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (4)

प्रथम मंडल  - सूक्त (युक्त पूर्ण वाक्य)- 1 
मैं अग्नि की स्तुति (गुनगान) करता हूँ . यह यज्ञ का पुरोहित दानादि गुणों से भुक्त, यज्ञ में देवों को बुलाने वाला एवं यज्ञ के फल रूपी रत्नों को धारण करने वाला है.(1)
प्राचीन ऋषियों ने अग्नि की स्तुति की थी, वर्तमान ऋषि भी उसकी स्तुति करते हैं, वह अग्नि देवों को इस यज्ञ में बुलाता हैं. (2)
अग्नि की कृपा से यजमान को धन मिलता है. उसी की कृपा से धन बढ़ता है. उस धन से यजमान यश प्राप्त करता है एवं अनेक वीर पुरुषों को अपने यहाँ रखता है.(3)
हे अग्नि जिस यज्ञ की तुम चारों ओर से रक्षा करते हो, उसमे राक्षस आदि हिंसा नहीं कर सकते, वही यज्ञ देवताओं को तृप्त देने स्वर्ग को जाता है. (4)
हे अग्नि देव! तुम दूसरे देवों के साथ इस यज्ञ में आओ. तुम यज्ञ के होता, बुद्धी संपन्न, सत्यशील, एवं परम कीर्ति वाले हो.(5)
हे अग्नि! तुम यज्ञ में हवि (हवन में प्रयोग होने वाला द्रव्य) देने वाले यजमान का जो कल्याण करते हो, वह वास्तव में तुम्हारी ही प्रसंनता का साधन बनता है.(6)
हे अग्नि! हम सच्चे ह्रदय से तुम्हें रात दिन नमस्कार करते हैं और प्रतिदिन तुम्हारे समीप आते हैं. (7)
हे अग्नि! तुम प्रकाश वान, यज्ञ की रक्षा करने वाले और कर्म फल के द्योतक हो, 
तुम यज्ञशाला में बढ़ने वाले हो. (8)
हे अग्नि! जिस प्रकार पिता पुत्र को सरलता से लेता है, उसी प्रकार हम भी तुम्हें सहज ही प्राप्त कर सकें. तुम हमारा कल्याण करने के लिए, हमारे समीप निवास करो.(9)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

इन वेद मन्त्रों में कहीं कोई तत्व है ? कोई मूल्य है ? 
किनको यह हवन में आमंत्रित करता है ? 
जो अपने विशाल रूप में आ जाए तो इनका पंडाल स्वाहा हो जाए 
और साथ में यह भी. 
ग़ौर करें कि आप बीसवीं सदी में आगए हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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