Thursday 16 January 2020

वैदिक युग की आमद आमद


खेद ही कि यह वेद है 

वैदिक युग की आमद आमद 

मैं अपने हिन्दू पाठकों को बतलाना चाहता हूँ कि 
कम बुरा इस्लाम, अधिक बुरे हिंदुत्व से कुछ बेहतर है. 
यह बात अलग है कि बहु संख्यक की आवाज़ अल्प संख्यक पर भारी पड़ रही है 
मगर सत्य की आवाज़ दबी हुई जब उभरती है तो हर तरफ़ सन्नाटा छा जाता है .
इसका जीता जगता सुबूत यह है कि हमेशा की तरह आज भी कम बुरा इस्लाम, 
हिन्दुओं को अपनी तरफ़ खींच रहा है, 
अल्ला रखखा रहमान से लेकर शक्ति कपूर तक सैकड़ों संवेदन शील लोग देखे जा सकते हैं , 
जबकि कोई अदना मुसलमान भी नहीं मिलेगा 
जो इस्लाम के आगे हिंदुत्व को पसंद करके हिन्दू बन गया हो .
कुछ मुख़्तसर सी बातें देखी - - -
एक अल्लाह की पूजा और बेशुमार भगवानो की पूजा ? 
कौन आकर्षित करता है अवाम को ? 
ऐसी ही बहुत सी समाजी बुराइयाँ मुसलमानों में कम है, हिन्दुओं से . 
मसलन शराब और दूसरे नशा .
त्योहारों को ही लीजिए,
*दीपावली आई तो रौशनी कर के बिजली घर को आफ़त में डाल दिय जाता है , 
पटाख़े से जान माल और पर्यावरण को नुक़सान, 
जुवा खेलना भी त्यौहार का महूरत है .
*होली को ख़ुद हिन्दुओं में संजीदा हिन्दू पसंद नहीं करते . 
अंधेर है कि होली में अमर्यादित गालियां गाई जाती हैं , 
रंग गुलाल को नाक से फांका जाता है .
*दर्शन और स्नान के नाम पर पंडों की दासता .
इन तमाम बुराइयों से मुसलमान अलग दूर नज़र आता है. 
अपने त्योहारों को भी पाक साफ़ रखता है और कोई पंडा बंधन नहीं .
फिर एक बार वैदिक युगीन हिंदुत्व के हाथों में सत्ता आ गई है. 
हिंदुत्व का दबाव जितना बढेगा, 
इस्लाम को भारत में उतना ही फलने फूलने का अवसर मिलेगा. 
कहीं ऐसा न हो कि संघ परिवार का सपना देखते ही देखते चकना चूर हो जाए. 
 कोई समाजी इन्कलाब आए और भारत का नक़्शा ही बदल जाए .
नेहरु का हिदोस्तान सही दिशा में जा रहा था, 
धर्म रहित मर्यादाएं विकसित हो रही थीं . 
याद नहीं कि हमने कभी उनको या उनके साथियों को टीका लगा देखा हो , 
आज सारी की सारी सरकारी मिशनरी टीका और बिंदिया से सुसज्जित दिखाई देती हैं . 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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