Wednesday 22 January 2020

खेद है कि यह वेद है (5)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (5)

प्रथम प्रथम मंडल   सूक्त  11
सागर के समान विस्तृत, रथ के स्वामियों में श्रेष्ट, अन्यों के स्वामी एवं सब के पालक इंद्र को हमारी स्तुतियों ने बढ़ाया है. (1)
हे बल के स्वामी इंद्र ! तुम्हारी मित्रता पाकर हम शक्ति शाली एवं निरभय बने. 
तुम अपराजित विजेता हो. हम तुम्हें नमस्कार करते हैं. (2)
इंद्र द्वारा किए गए पुराकालीन दान प्रसिद्ध हैं. यदि ये स्तुति कर्ताओं को गाय युक्त एवं शक्ति पूर्ण अन्न दान करें तो सब प्राणियों की रक्षा हो सकती है (3) 
इंद्र ने पुरभेदनकारी, युवा, अमित तेजस्वी, सभी यज्ञों के धारण करता यज्ञ धारक एवं अनेक व्यक्तियों द्वारा स्तुति रूप में जन्म लिया. (4)  
हे वज्र धर इंद्र ! तुमने गायों को अपहरण करने वाले बल असुर की गुफा का द्वार खोल दिया था. बलासुर द्वारा सताए हुए देवों ने उस समय निडर होकर तुम्हें घेर लिया था. (5)
हे शूर इंद्र !निचोड़े हुए सोमरस के गुणों का वर्णन करता हुआ मै तुम्हारे धन दानो से प्रभावित होकर वापस आया हूँ. हे स्तुति पात्र ! यज्ञ कर्ता तुम्हारे समीप उपस्थित होने एवं तुम्हारी कार्य कुशलता को जानते थे. (6)
हे इंद्र ! तुमने छल द्वारा मायावी शष्णु का नाश किया है. इस बात को जो मेघावी लोग जानते हैं, तुम उनकी रक्षा करो. (7)
शक्ति द्वारा विश्व के स्वामी बनने वाले की स्तुति प्रार्थियों ने की हैं. इंद्र के धन देने के ढ़ंग को हज़ारों अथवा हज़ार से भी अधिक हैं.(8)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
पुजारी इंद्र की महिमा गान करके उनको बतलाता है कि तुम में क्या क्या ख़ूबियाँ हैं जिनको कि शायद तुम भूल गए हो. 
इंद्र देवता को वह बतलाता है कि वह छल विद्या के भी माहिर हैं . 
देव और छली  ?
क्या देवता इन मक्खन बाजों की बातों में आकर मानव कल्याण कर सकते हैं ? 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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