Friday 24 January 2020

खेद है कि यह वेद है (7)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (7)

(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त (33)(5) 
हे इंद्र ! जो लोग स्वयं यज्ञ नहीं करते अथवा यज्ञ करने वालों का विरोध करते हैं, 
वह पीछे की ओर मुंह करके भाग रहे हैं. 
हे इंद्र ! तुम हरि नामक घोड़ों के स्वामी, युद्ध में पीठ न दिखलाने वाले तथा उग्र हो. 
यज्ञ न करने वालों को तुमने स्वर्ग आकाश तथा धरती से भगा दिया है.
*
पंडितों ने वेद श्लोक को रहस्य मय औए पवित्र बनाने के लिए इन का दुश्मन ख़ुद  बना रख्खा है. और यह दुश्मन है शूद्र, 
शूद्र अगर इन निरर्थक श्लोकों को सुन ले तो उसके कानों में पिघला हुवा शीशा पिला दिया जाए. इसके आलावा वह जानते थे कि इन दरिद्रों के पास है ही क्या कि यह हमारी यजमानी करें ? इनको तो मन्त्रों में लूट लेने की अर्ज़ी देवताओं को दी जाती है. 
हे अश्वनी कुमारो ! 
हमें तीन बार धन प्रदान करो. 
हमारे देव संबंधी यज्ञ में तीन बार आओ.
तीन बार हमारी बुद्दी की रक्षा करो 
तीन बार हमारे सौभग्य की रक्षा करो. 
हमें तीन बार अन्न दो. 
तुम्हारे तीन पहिए वाले रथ पर सूर्य पुत्री सवार है. 
(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त (34 )(5)  
मन्त्रों में विधवा विलाप है. 
निर्बला जैसे अपने पति से तीन तलाक़ न देने की गुहार लगती है, 
वैसे ही यह भिखारी इस सूक्त के बारहों श्लोक में तीन तीन की रट लगाईं हुई है.
क्या रख्खा है इन वेदों में ??
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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