Tuesday 10 November 2020

कट्टरता बेवक़ूफ़ी होती है


कट्टरता बेवक़ूफ़ी होती है   
            
मुस्लिम अपनी आस्था के तहत ऊपर की दुन्या में मिलने वाली जन्नत के लिए 
इस दुन्या की ज़िंदगी को संतोष के साथ ग़ुज़ार देंगे. 
ग़ैर मुस्लिमों को मज़दूर, मिस्त्री, राज, नाई, भिश्ती और 
मुलाज़िम सस्ते दामों में मिलते रहेंगे.
मुस्लिम कट्टरता बेवक़ूफ़ी होती है जो इन्सान को एक बार में ही क़त्ल करके 
हमेशा के लिए उसके फ़ायदे से बंचित कर देती है , 
इसके बर अक्स हिन्दू कट्टरता बुद्धिमान होती है 
जो इन्सान को दास बना कर रखती है , 
न मरने देती है न मुटाने देती है. 
यह मानव समाज को धीरे धीरे अछूत बना कर, उनका एक वर्ग बना देती है 
और ख़ुद स्वर्ण हो जाती है. 
पाँच हज़ार साल से भारत के मूल बाशिदे और आदि वासी इसकी मिसाल हैं.
इन दोनों कट्टरताओं को मज़हब और धर्म पाले रहते है, 
जिनको मानना ही मानव समाज की हत्या या फिर उसकी ख़ुद कुशी है.
इसके आलावा क़ुरआन के मुख़ालिफ़ कम्युनिस्ट और पश्चिमी देश भी है 
जो पूरे क़ुरआन को ही जला देने के हक़ में है, 
इन देशों में धर्म ओ मज़हब की अफ़ीम नहीं बाक़ी बची है, 
इस लिए वह पूरी मानवता के हितैषी हैं.
भारतीय मुसलमानो के दाहिने खाईं है, तो बाएँ पहाड़. 
उसका मदद गार कोई नहीं है, 
बैसे भी मदद मोहताजों को चाहिए. 
वह मोहताज नहीं, अभी भी ताक़त हासिल कर सकते है, 
उन्हें बेदारी की ज़रुरत है, 
हिम्मत करके मुस्लिम से हट कर मोमिन हो जाएँ..
***    
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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