Friday 27 November 2020

क़िस्सा-ए-मेराज


क़िस्सा-ए-मेराज 
हदीस 
बुख़ारी जदीद उर्दू - २२३ 
मुहम्मद ने अपनी ज़िन्दगी में जो सब से बड़ा झूट गढ़ा वह क़िस्सा-ए-मेराज था. 
उससे बड़ा सानेहा ये है कि मुसलमान इस झूट पर आज भी यक़ीन रखते हैं. 
ख़ुराफ़ाती ज़ेहन गढ़ता है कि - - -

मैं मक्का में था, यकायक मेरे कमरे की छत शक हुई और जिब्रील नाज़िल हुए. उन्हों ने मेरा सीना चाक करके पाक किया और एक तिशत (कटोरा) जो हिकमत और ईमान से लबरेज़ था, इससे मेरे सीने को पुर किया और सीने को बराबर कर दिया फिर मुझको आसमान की तरफ़ ले चले." 
जब आसमानी दुनिया के करीब पहुंचे. उन्हों ने दरवाज़ा खोलने की फ़रमाइश की. 
आवाज़ आई कौन है? 
जिब्रील ने कहा मैं जिब्रील. 
आवाज़ आई तुम्हारे साथ कौन है ? 
कहा मुहम्मद रसूललिलाह. 
उधर से जवाब आता इन्हें नबी बना कर मबऊस किया गया ? 
जिब्रील के हाँ - - - कहते ही दरवाज़ा खुल गया. 
हम आसमानी दुन्या पर पहुँचे, 
वहां हमने देखा, एक शख़्स को कि उसके दाहिने जानिब भी रूहें है और बाएँ जानिब भी रूहें हैं. 
वह दाएं जानिब देख कर ख़ुशी से हंस देता है और बाएँ जानिब देख कर ग़म से रो देता है. 
उन्हों ने मुझे देखते ही मरहबा कहा और मेरा इस्तक़बाल किया. 
बेटे और नबी के अलफ़ाज़ से मुझे पुकारा. 
मैंने जिब्रील से दरयाफ़्त किया ये कौन हैं? 
बतलाया आदम अलैहिस्सलाम हैं. 
इनकी दाएं जानिब जो इनकी औलादें हैं वह जन्नती हैं और बाएँ जानिब जो औलादें है, वह दोजखी. वह दाएँ के जन्नती औलादों को देख कर हंस देते हैं और बाएँ जानिब दोजख़ियों को देख कर रो देते हैं. 
इसके बाद हम दूसरे आसमान की जानिब चढ़े. 
वहां भी सबिक़ा नौअय्यत दरपेश हुई और दरवाज़ा खोल दिया गया. 
मुहम्मद कहते हैं वहां उन्हों ने आसमानों पर ने ईसा, मूसा और इब्राहीम अलैहिस्सलामान को देखा. 
मुहम्मद आसमान चढ़ते, जिब्रील अलैहिस्सलाम आसमानों का दरवाज़ा खटखटाते और ईसा, इदरीस. और इब्राहीम अलैहिस्सलामान से मिलते मिलाते और अपना ख़ैर मक़दम कराते पांचवीं आसमान पर पहुँच जाते है जहाँ उनकी मुलाक़ात मूसा से होती है. उनसे गुफ़्तुगू करने के बाद सातवें आसमान पर पहुँचते हैं, जहाँ उनकी मुलाक़ात चिलमन की आड़ में बैठे अल्लाह मियाँ से होती है. 
अल्लाह मियाँ  बैठे कुछ लिख रहे थे, उनके क़लम की सरसराहट मुहम्मद को सुनाई पड़ रही थी. 
अल्लाह मियाँ से दरपर्दा पचास रिकत नमाज़ों का तोहफ़ा मुसलमानों के लिए मुहम्मद को मिला. 
मुहम्मद लौटते हुए मूसा से फिर मिले और अपने तोहफ़े से मूसा को आगाही दी. मूसा ने उनको अल्लाह मियाँ के पास लौटाया कि जाओ, इतनी ज्यादा नमाज़ों को कम कराओ. मुहम्मद दो बार इसी तरह गए और लौटे.
बिल-आख़ीर पाँच रिकत मंज़ूर करा के वापस हुए. अल्लाह ने कहा अच्छा पांच बार पढो जिससे पचास रिकात का सवाब मिलेगा अब हमारे क़ौल में तब्दीली नहीं होगी. 
वापसी पर मूसा ने फिर मुहम्मद को समझाया कि तुम्हारी उम्मत के लिए यह भी बहुत ज़्यादः है, कम कराओ, देखो मुझे अपनी उम्मत से सबक़ लिया है कि अल्लाह के फ़रमान की पाबंद नहीं हो सकी.
मुहम्मद ने मूसा से कहा - - -
"अब मुझको अपने परवर दिगार से शर्म आती है, वापस न जाऊँगा" 
अलग़रज़ जिब्रील मुझे वहां से सदरतुल मुन्तेहा पर ले गए. 
मैंने मुख़्तलिफ़ रंगों से मुज़य्यन पाया जो मेरी समझ में नहीं आ सकते. 
वहां से मैं जन्नत में दाख़िल हुवा. 
वहां की मिटटी को देखा कि मुश्क है और मोतियों के हार वहां मौजूद हैं. 

*यह मेराजुन नबी का वाक़ेया तब हुवा था जब मुहम्मद मक्के में थे. 
इतने बड़े वाक़ेए का ज़िक्र हज़रत दस साल बाद मदीने में अपने मुंह लगे साथी अनस को सुनाते हैं.
वाज़ह हो कि एक बार और जिब्रील ने बचपन में इनका सीने को चीड फाड़ कर साफ़ और पाक किया था. जिब्रील को चाहिए था कि वह सीने की बजाए उनका  भेजा पाक साफ़ कराते जोकि झूट की गलाज़त से बदबू दार हो गया था.
मेराजुन नबी का वाक़ेया मुख़्तलिफ़ ओलिमा ने अपने अपने ढंग से मुसलमानों को परोसा है. कहते हैं कि मुहम्मद के इस तवील सफ़र में इतना ही वक़्त लगा था कि जब जिब्रील इनको सफ़र से उस शक हुए कमरे पर छोड़ा था तो दरवाज़े की कुण्डी हिल रही थी जिससे वह निकल कर गए थे और उनका तकिया अभी तक गरम था यानी पल झपकते ही आसमानी सफ़र से वापस आ गए थे.
कहते हैं कि मुहम्मद के साथी और दूसरे ख़लीफ़ा उमर ने मुहम्मद को आगाह किया था कि अगर आप ऐसी पुडिया छोड़ते रहे तो इस्लाम की मुहिम एक दिन छू हो जाएगी. फिर मुहम्मद ने उसके बाद इस क़िस्म की बाज़ी नहीं की. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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