Wednesday 4 November 2020

मुजरिम आस्थाएँ+जो सत्य नहीं वह मिथ्य है.


मुजरिम आस्थाएँ   
    
जिस तरह आप कभी कभी ख़ुदाए बरतर की ज़ात में ग़र्क़ होकर 
कुछ जानने की कोशिश करते हैं, 
इसी तरह कभी मुहम्मद की ज़ात में ग़र्क़ होकर कुछ तलाश करने की कोशिश करें. अभी तक बहैसियत मुसलमान उनकी ज़ात में जो पाया है, 
शऊरी तौर पर देखा जाए तो वह सब दूसरों के मार्फ़त है.  
इनके क़ुरआन और इनकी हदीस में ही सब कुछ उजागर है. 
आपके लिए मुहम्मद की पैरवी कल भी ज़हर थी और आज भी ज़हर है. 
इंसानियत की अदालत में आज सदियों बाद भी इन पर मुक़दमा चलाया जा सकता है, जिसमे बहेस मुबाहिसे के लिए मुहज्ज़ब समाज के दानिशवरों को दावत दी जाय.
 इनका फ़ैसला यही होगा की इस्लाम और क़ुरआन पर यक़ीन रखना 
क़ाबिले जुर्म अमल होगा.
आज न सही एक दिन ज़रूर ऐसा वक़्त आएगा कि मज़हबी ज़ेहन रखने वाले 
तमाम मजहबों के अनुयाइयों को सज़ा भुगतना होगा 
जिसमे पेश पेश होंगे मुसलमान.
धर्म व् मज़हब द्वारा निर्मित ख़ुदा और भगवान दुर्गन्ध भरे झूट हैं, 
इसके विरोध में सच्चाई सुबूत लिए खड़ी है. 
मानव समाज अभी पूर्णतया बालिग़ नहीं हुवा है, 
यह अभी अर्ध विकसित है, 
इसी लिए झूट का बोल बाला है और सत्य का मुँह काला है. 
जब तक ये उलटी बयार बहती रहेगी, 
मानव समाज सच्ची खुशियों से बंचित रहेगा.   
***
जो सत्य नहीं वह मिथ्य है. 
         
क़ुदरत ने ये भूगोल रूपी इमारत को वजूद में लाने का जब इरादा किया 
तो सब से पहले इसकी बुनियाद "सच और ख़ैर" की कंक्रीट से भरी. 
फिर इसे अधूरा छोड़ कर आगे बढ़ती हुई मुस्कुराई कि 
मुकम्मल इसको हमारी रख्खी हुई बुनियाद करेगी. 
वह आगे बढ़ गई कि उसको कायनात में अभी बहुत से भूगोल बनाने हैं. 
उसकी कायनात इतनी बड़ी है कि कोई बशर अगर लाखों रौशनी साल 
(light years ) की उम्र भी पाए तब भी उसकी कायनात के फ़ासले को 
किसी विमान से तय नहीं कर सकता, 
तय कर पाना तो दूर की बात है, 
अपनी उम्र को फ़ासले के तसव्वुर में सर्फ़ करदे 
तो भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाएगा  .
क़ुदरत तो आगे बढ़ गई इन दो वारिसों "सच और ख़ैर" के हवाले करके 
इस भूगोल को कि यही इसे बरक़रार रखेंगे जब तक ये चाहें. 
भूगोल की तरह ही क़ुदरत ने हर चीज़ को गोल मटोल पैदा किया  
कि ख़ैर के साथ पैदा होने वाली सादाक़त ही इसको जो रंग देना चाहे दे. 
क़ुदरत ने पेड़ को गोल मटोल बनाया कि इंसान की 
"सच और ख़ैर" की तामीरी अक़्ल इसे फर्नीचर बना लेगी, 
उसने पेड़ों में बीजों की जगह फर्नीचर नहीं लटकाए. 
ये ख़ैर का जूनून है कि वह क़ुदरत की उपज को इंसानों के लिए 
उसकी ज़रुरत के तहत लकड़ी की शक्ल बदले.
तमाम ईजादें ख़ैर (परोकार) का जज़्बा ही हैं कि आज इंसानी जिंदगी 
कायनात के दूसरे सय्यारों तक पहुँच गई है, 
ये जज़्बा ही एक दिन इंसानों को ही नहीं बल्कि हैवानों को भी उनके हुक़ूक़ दिलाएगा.
जो सत्य नहीं वह मिथ्य है. 
दुन्या हर तथा कथित धर्म अपने कर्म कांड और आडम्बर के साथ मिथ्य हैं , 
इससे मुक्ति पाने के बाद ही क़ुदरत का धर्म अपने शिखर पर आ जाएगा 
और ज़मीन पाक हो जाएगी.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment