Saturday 21 November 2020

ऐ ईमान वालो!


ऐ ईमान वालो! 

''ऐ ईमान वालो! जब तुम काफ़िरों के मुक़ाबिले में रू बरू हो जाओ तो इन को पीठ मत दिखलाना और जो शख़्स इस वक़्त पीठ दिखलाएगा, अल्लाह के गज़ब में आ जाएगा और इसका ठिकाना दोज़ख होगा और वह बुरी जगह है. 
सो तुम ने इन को क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ने इनको क़त्ल किया 
और आप ने नहीं फेंकी (?) , 
जिस वक़्त आप ने फेंकी थी, 
मगर अल्लाह ने फेंकी 
और ताकि मुसलामानों को अपनी तरफ़ से उनकी मेहनत का ख़ूब एवज़ दे. 
अल्लाह तअला ख़ूब सुनने वाले हैं.''
 (अल्लाह की यह फेंक अल्लाह ही जनता है )
सूरह -इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत (१५-१६-१७)

मज़ाहिब ज़्यादः तर इंसानी ख़ून के प्यासे नज़र आते हैं ख़ास कर इस्लाम और यहूदी मज़हब. इसी पर उनकी इमारतें खड़ी हुई हैं धर्म ओ मज़हब को भोले भाले लोग इनके दुष प्रचार से इनको पवित्र समझते हैं और इनके जाल में आ जाते हैं. तमाम धार्मिक आस्थाओं का योग मेरी नज़र में एक इंसानी ज़िन्दगी से कमतर होता है. 
गढ़ा हुवा अल्लाह मुहम्मद की क़ातिल फ़ितरत का खुलकर मज़हिरा करता है. 
आज की जगी हुई दुनिया में अगर मुसलामानों के समझ में यह बात नहीं आती तो वह अपनी क़ब्र अपने हाथ से तैयार कर रहे हैं. 
क़ुरआन में अल्लाह फेंकता है यह कोई अरबी इस्तेलाह रही होगी मगर आप हिदी में इसे बजा तौर पर समझ लें कि अल्लाह जो फेंकता है वह दाना फेंकने की तरह है, बण्डल छोड़ने की तरह है और कहीं कहीं ज़ीट छोड़ने की तरह.
नोट :-
मेरे हिंदी लेख ख़ास कर उन मुस्लिम नव जवानो के लिए होते हैं जो उर्दू नहीं जानते. अगर इसे ग़ैर मुस्लिम भी पढ़ें तो अच्छा है, हमें कोई एतराज़ नही, 
बस इतनी ईमान दारी के साथ कि अपने गरेबान में मुंह डाल कर देखें 
कि कहीं उनके धर्म में भी कोई मानवीय मूल्य आहत तो नहीं होते. धन्यवाद


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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