Thursday 5 November 2020

फ़िर्क़े और बिरादरी

फ़िर्क़े और बिरादरी   '
              
क़बले-इस्लाम अरब में मुख़्तलिफ़ फ़िरक़े हुवा करते थे जिसके बाक़ियात 
ख़ास कर उप महाद्वीप में आज भी पाए जाते हैं. 
इनमें क़ाबिले ज़िक्र नीचे दिए जाते हैं ---
1- काफ़िर ---- यह क़दामत पसंद होते थे जो 
पुरखों के प्रचीनतम धर्म को अपनाए रहते थे. 
सच पूछिए तो यही इंसानी आबादी हर पैग़मबर और रिफ़ार्मर का रा-मटेरियल हुवा करते हैं. 
बाक़ियात में इसका नमूना आज भी भारत में मूर्ति पूजक और भांत भांत अंध विश्वाशों में लिप्त हिन्दू है.
ऐसा लगता है चौदह सौ साला पुराना अरब पूर्व में भागता हुआ भारत में आकर ठहर गया हो और थके मांदे इस्लामी तालिबान, अल क़ायदा और जैशे मुहम्मद उसका पीछा कर रहे हों.
2- मुशरिक ---- जो अल्लाह वाहिद (एकेश्वर) के साथ साथ 
दूसरी सहायक हस्तियों को भी ख़ातिर में लाते हैं. 
मुशरिकों का शिर्क जनता की ख़ास पसंद है. 
इसमें हिदू मुस्लिम सभी आते है, गोकि मुसलमान को मुशरिक कह दो तो 
मारने मरने पर तुल जाएगा मगर वह बहुधा ख्वाजा अजमेरी का मुरीद होता है, 
पीरों का मुरीद होता है जो की इस्लाम के हिसाब से शिर्क है. 
आज के समाज में रूहानियत के क़ायल हिन्दू हों या 
मुसलमान थोड़े से मुशरिक ज़रूर होते हैं.
3- मुनाफ़िक़ ---- वह लोग जो बज़ाहिर कुछ, और बबातिन कुछ और, 
दिन में मुसलमानों के साथ और रात में काफ़िरों के. 
ऐसे लोग हमेशा रहे हैं जो दोहरी ज़िंदगी का मज़ा लूटते रहे हैं. 
मुसलमानों में हमेशा से कसरत से मुनाफ़िक़ पाए जाते हैं.
4- मुंकिर ----- मुंकिर का लफ्ज़ी मतलब है, इंकार करने वाला 
जिसका इस्लामी करन करने के बाद इस्तेलाही मतलब किया गया है कि 
इस्लाम क़ुबूल करने के बाद उस से फिर जाने वाला मुंकिर होता है. 
बाद में आबाई मज़हब इस्लाम को तर्क करने वाला भी मुंकिर कहलाया.
5-मजूसी ----- आग, सूरज और चाँद तारों के पुजारी. ज़रथुष्टि की उम्मत.
6-मुल्हिद ------ (नास्तिक) हर दौर में ज़हीनों को ढोंगियों ने उपाधियाँ दीं हैं. 
मुझे इन पर फ़ख़्र है कि इंसान की यह ज़ेहनी परवाज़ बहुत पुरानी है.
7- इनके आलावा यहूदी और ईसाई क़ौमे तो मद्दे मुक़ाबिल इस्लाम थीं ही 
जो क़ुरआन में छाई हुई हैं.
इस के बाद शिया सुन्नी जैसे 72 मुसलमानी फ़िरक़े इस्लाम की देन हैं 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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