Friday 6 November 2020

मुज़बज़ब हैं मुसलमान

मुज़बज़ब हैं मुसलमान
       
भारत के मुस्तक़बिल क़रीब में मुसलमानों की हैसियत बहुत ही तशवीश नाक होने का अंदेशा है. अभी फ़िलहाल जो रवादारी बराए जम्हूरियत बरक़रार है, 
बहुत दिन चलने वाली नहीं. इनकी हैसियत बरक़रार रखने में वह हस्तियाँ है जिनको इस्लाम मुसलमान मानता ही नहीं और उन पर मुल्ला फ़तवे की तीर चलाते रहते हैं. 
उनमे मिसाल के तौर पर डा. ए पी. जे अब्दुल  कलाम, 
तिजारत में अज़ीम प्रेम जी, सिप्ला के हमीद साहब वग़ैरह, 
फ़िल्मी  दुन्या के दिलीप कुमार, आमिर ख़ान, शबाना आज़मी. और ए. आर. रहमान, फ़नकारों में जो अब नहीं रहे, फ़िदा हुसैन, बिमिल्ला ख़ान जैसे कुछ लोग हैं. 
आम आदमियों में सैनिक अब्दुल हमीद जैसी कुछ फ़ौजी हस्तियाँ भी हैं 
जो इस्लाम को फूटी आँख भी नहीं भाते. 
मैंने अपने कालेज को एक क्लास रूम बनवा कर दिया तो कुछ इस्लाम ज़दा कहने लगे की यही पैसा किसी मस्जिद की तामीर में लगाते तो क्या बात थी, 
वहीं उस कालेज के एक मुस्लिम टीचर ने कहा तुमने मुसलमानों को सुर्ख़रू कर दिया, अब हम भी सर उठा कर बातें कर सकते है.
कौन है जो सेंध लगा रहा है आम मुसलमानों के हुकूक़ पर?
कि सरकार को सोचना पड़ता है कि इनको मुलाज़मत दें या न दें?
आर्मी को सोचना पड़ता है कि इनको कैसे परखा जाय?
कंपनियों को तलाश करना पड़ता कि इनमें कोई जदीद तालीम का बंदा है भी? बनिए और बरहमन की मुलाज़मत को इनके नाम से एलर्जी है.
इसकी वजेह इस्लाम है और इसके ग़द्दार एजेंट जो तालिबानी ज़ेहन्यत रखते हैं. यह भी हमारी ग़लतियों से ख़ता के शिकार हैं. 
हमारी ग़लती ये है कि हम भारत में मदरसों को फलने फूलने का अवसर दिए हुए है जहाँ वही पढ़ाया जाता है जो क़ुरआन में है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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