Friday 9 November 2018

सूरह साफ़्फ़ात-37 - سورتہ الصافاتQ 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह साफ़्फ़ात-37 - سورتہ الصافات
क़िस्त  2

"और इन से एक कहने वाला कहेगा कि मेरा एक साथी था. कहा करता था कि क्या तू  बअस (अल्लाह की और से नियुक्तियाँ) के मुअतक़िदीन (आस्थावान) में से है ? क्या जब हम मर जाएगे तो, मिट्टियाँ और हड्डियाँ हो जाएगे? तो क्या हम जज़ा, सज़ा दिए जाएँगे? इरशाद होगा कि क्या तुम झाँक कर देखना चाहोगे, तो वह शख़्स झाँकेगा तो वह उसको बीच जहन्नम में देखेगा. कहेगा अल्लाह की क़सम, तू मुझे तबाह ही करने वाला था"
सूरह साफ़्फ़ात -37 आयत (51-56)

 क़ुरआन की इस बेहूदा कसरत पर कभी कभी ख़ुद मुझे शर्म आती है, 
यह मुसलमानों को क्या दे सकती हैं ? 
जिसके लिए वह मरने मारने के लिए तैयार रहते हैं.

"हमने उस दरख़्त को ज़ालिमों के लिए मूजिबे इम्तेहान बनाया. वह एक दरख़्त है ज़कूम, जो दोज़ख़ के गढ़ों में से निकलता है. इसके फल ऐसे हैं जैसे साँप के फन, तो दोज़खी इस को खाएँगे. और इसी से अपना पेट भरेंगे. फिर इन्हें खौलता हुवा पानी, पीप मिला कर पिलाया जायगा."
सूरह साफ़्फ़ात -37 आयत (63-67)

ऐसे अल्लाह को झाड़ू मारो जो अपने ही बन्दों को साथ ऐसा सुलूक करता है.
"बेशक यूनुस भी पैग़मबरों में से थे. जब वह भाग कर भरी हुई कश्ती के पास पहुँचे तो वह शरीके क़ुरअ न हुए, तो यहीं वह मुलजिम में ठहरे. फिर इन्हें मछली ने साबित निगल लिया और ये अपने आपको मलामत कर रहे थे. गर वह तस्बीह करने वाले न होते तो क़यामत तक मछली के पेट में पड़े रहते. और हम ने उन पर एक बेलदार दरख़्त भी उगा दिया और हम ने उनको एक लाख से भी ज़्यादः आदमियों पर पैग़ामबर  बना कर भेजा"
सूरह साफ़्फ़ात -37 आयत (139-147) 

यूनुस की कहानी भी तौरेत से ली गई है. वहाँ इनको तीन दिनों तक मगर मछ के पेट से ज़िंदा निकला जाता है. यहाँ मछली के पेट में क़यामत तक रहने की बात है, मुहम्मद उनके जिस्म पर बेलदार झाड़ उगा देते हैं, 
ये कमाल की पुडिया है. मज़हबी किताबों में सभी कुछ कल्पित होता है.

"और हाँ! हमने फ़रिश्तों को क्या औरत बनाया है? और वह देख रहे थे, ख़ूब सुन रहे थे कि वह अपनी सुख़न तराशी से कहते हैं कि अल्लाह साहिबे औलाद है और वह यक़ीनन झूठे है.क्या अल्लाह ने बेटों के मुक़ाबिले में बेटियाँ ज़्यादः पसंद कीं ? तुम को क्या हो गया, तुम कैसा हुक्म लगाते हो?"
सूरह साफ़्फ़ात -37 आयत (154)

ईसाइयों पर इलज़ाम है कि वह फ़रिश्तों को जिन्सियात से मुबर्रा, अल्लाह की मख़लूक़  मानते है, मुहम्मद इसे औरत होना समझते हैं. वह कहते हैं कि कोई मौजूद था, देख और सुन रहा था कि औरत साबित करे. जैसे इनको सब के सामने अल्लाह ने पैग़ामबर  मुक़र्रर किया हो, जैसा कि अज़ानों में एलान होता है 
''अशहदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह"
मुसलमान कहते हैं कि उनके नबी को लडकियां पसँद थीं. यहाँ अल्लाह की तरफ़ इशारा बतला रहा है कि मुहम्मद लड़का पसँद करते थे जिस से वह महरूम रहे.

"और उन लोगों ने अल्लाह में और जिन्नात में रिश्ते दारियां क़रार दिए है. और जिन्नात हैं, ख़ुद उनका अक़ीदा है कि वह गिरफ़तार होंगे. अल्लाह इन बातों से पाक है.जो ये बयान करते हैं."
सूरह साफ़्फ़ात -37 आयत (160)

मुहम्मद की ये बेहूदः बकवास कोई सम्त नहीं देती 
कि अपने मज़हब को मानते हैं या जिन्नातों के अक़ीदे को. 
कौन कहता है कि जिन्नात अल्लाह के रिश्तेदार हैं.

"और हमारे ख़ास बन्दे यानी पैग़मबरों के लिए पहले ही ये मुक़र्रर हो चुका है कि बेशक वही ग़ालिब किए जाएँगे. और हमारा ही लश्कर ग़ालिब रहता है, तो आप थोड़े ज़माने तक सब्र करें."
सूरह साफ़्फ़ात -37 आयत (173-74)

डंडे लाठी और तलवार के ज़ोर पर कुछ दिनों के लिए ग़ालिब ज़रूर हो गए थे मगर उसके बाद इतिहास बतलाता है कि हर जगह मग़लूब हो. 
अपना मुल्क रखते हुए भी दूसरे मुल्कों के रहम करम पर हो.

कलाम ए दिगराँ 
'दुन्या का ख़ुश तरीन इंसान वह है जो किसी का ऋणी न हो"
'महा भारत'
हिदू धर्म
इसे कहते हैं कलामे पाक
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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