Thursday 8 November 2018

Hindu Dharm Darshan 243



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (47)
>अर्जुन ने कहा - - - 
हे कृष्ण ! 
आपने मुझ से जो कुछ कहा है, 
उसे मैं पूर्णतया सत्य मानता हूँ . 
हे प्रभु ! 
न तो देव गण न असुर गणही आपके स्वरूप को समझ सकते हैं.
** हे परमपुरुष ! 
हे सब के उदगम हे समस्त प्राणियों के स्वामी !
हे देवों के देव  हे ब्रह्माण्ड के प्रभु !
हे ब्रह्माण्ड के प्रभु !
निःसंदेह एक मात्र आप ही अपने को अपनी अंतरंगाशक्ति से जानने वाले हैं. 
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -  10 - श्लोक -14 15 
>एक मात्र प्राणी अर्जुन ही भगवान के हत्थे चढ़ा कि उसको भगवान् चट गए. अर्जुन ने सारथी इस लिए उनको बनाया था कि शायद कुछ युद्ध कौशल उनमे हो, एक भी दांव पेच उसे न बतला सके, सिवाय अपनी महिमा बखान करने के. अपने भगवनत्व का घड़ा सारा का सारा अर्जुन के सर उंडेल दिया. उसने तंग आकर कृष्ण जी को ताड के झाड पर चढ़ा दिया. 
महाराज ! मेरा पिंड छोड़ो, 
"निःसंदेह एक मात्र आप ही अपने को अपनी अंतरंगाशक्ति से जानने वाले हैं." 

और क़ुरआन कहता है - - - 
>''और अगर आप के रब को मंज़ूर होता तो सब आदमियों को एक ही तरीका का बना देते और वह हमेशा इख्तेलाफ़ करते रहेंगे. मगर जिस पर आप के रब की रहमत हो.और इसने लोगों को इसी वास्ते पैदा किया है और आप के रब की बात पूरी होगी कि मैं जहन्नम को जिन्नात और इन्सान दोनों से भर दूंगा.
सूरह हूद -११, १२-वाँ परा आयत (११६-११९)
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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