Friday 16 November 2018

सूरह ज़ुमर-39 -سورتہ الزمر क़िस्त -1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह ज़ुमर-39 -سورتہ الزمر
क़िस्त -1

"यह नाज़िल की हुई किताब है अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाले की तरफ़ से "
सूरह ज़ुमर 39 आयत (1)

नाज़िल और ग़ालिब यह दोनों अल्फाज़ मकरूह हैं 
अगर रहमान और रहीम, वह ख़ालिक़ ए कायनात कोई है तो. 
नाज़िल वह शै होती है जो नाज़ला हो. वबाई हालत में कोई आफ़त ए नाज़ला होती है.
ग़ालिब वह सूरतें होती हैं जिसका वजूद पर ग़लबा हो,  
जो हठ धर्मी और ना इंसाफी का एक पहलू होता है. 
अल्लाह अगर बन्दों को नाज़ला और ग़लबा में रखता है तो 
वह ख़ालिक़ हो ही नहीं सकता.
क़ुदरत तो हर शै को उसके वजूद में आने के लिए मददगार होती है. 
वजूद का मज़ा लेकर वह उसे फ़ना की तरफ़ माइल कर देती है.
इस्लाम, का अल्लाह और इसका रसूल मख़लूक़ के लिए नाज़ला और ग़लबा ही हैं. इसमें रह कर क़ुदरत  की बख़्शी हुई नेमतों से महरूमी है . 

"अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मख़लूक़ में से जिसको चाहता है मुंतख़िब फ़रमाता है. वह पाक है और ऐसा है जो वाहिद है, ज़बरदस्त है."
सूरह ज़ुमर 39 आयत (4) 

ईसा को ख़ुदा का बेटा कहने वाले ईसाइयों पर वार करते हुए क़ुरआन में बार बार कहा गया है कि 
"लम यलिद वलम यूलद" 
न वह किसी का बाप है और न किसी का बेटा. अब मुहम्मद कह रहे है 
"अगर अल्लाह किसी को औलाद बनाने का इरादा करता है तो ज़रूर अपनी मख़लूक़  में से जिसको चाहता है मुंतख़िब फ़रमाता है."
क़ुरआन तज़ाद (विरोधाभास) का अफ़साना है. 
मुहम्मद ख़ुद इस बात के इमकानात की सूरत पैदा कर रहे हैं 

"और तुम्हारे नफ़े के लिए आठ नर मादा चार पायों को पैदा किये और तुम्हें माँ के पेट में एक कैफ़ियत के बाद दूसरी कैफ़ियत में बनाता है, तीन तारीखों में. ये है अल्लाह तुम्हारा रब, इसी की सल्तनत है. इसके सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं. सो तुम कहाँ फिरे चले जा रहे हो?"
सूरह ज़ुमर 39 आयत (6)

 क़ुरआन के ख़िलाफ़ अब इससे ज़्यादः और क्या सुबूत हो सकता है कि यह किसी अनपढ़,मूरख और कठ मुल्ले की पोथी है.
वह सिर्फ़ आठ चौपायों की ख़बर रखता है, उसे इस बात की कहाँ ख़बर है कि एक एक चौपायों की सौ सौ इक्साम हो सकती हैं. 
हमल में इंसान की तीन सूरतें भी उसके जिहालत का सुबूत है, 
पिछले बाबों में इसका ज़िक्र आ चुका है.

"ऐ बन्दों! मुझ से डरो. और जो लोग शैतान की इबादत करने से बचते हैं, अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जे होते हैं, वह मुस्तहक़ ख़ुश ख़बरी सुनाने के हैं, सो आप मेरे इन बन्दों को ख़ुश ख़बरी सुना दीजिए जो इस कलाम को कान लगा कर सुनते हैं, फिर उसकी अच्छी अच्छी बातों पर चलते हैं, यही हैं जिन को अल्लाह ने हिदायत की. और यही हैं जो अहले अक़्ल  हैं."
सूरह ज़ुमर 39 आयत (17-18)

कोई ख़ुदा यह कह सकता है क्या?
दर पर्दा मुहम्मद ही अल्लाह बने हुए हैं ये बात जिस दिन 
आम मुसलमानों की समझ में आ जाएगी इसी दिन उनको अपने बुजुगों 
के साथ ज़ुल्म ओ सितम के घाव नज़र आ जाएँगे.
 क़ुरआन में एक बात भी अच्छी नहीं है अगर कोई है तो 
वह आलमी सच्चाइयों की सूरत है.

मुसलमानों ! क़ुरआन तुम्हें सिर्फ़ गुमराह करता है .

"लेकिन जो लोग अपने रब से डरते हैं उनके लिए बाला ख़ाने है. जिन के ऊपर और बाला ख़ाने हैं, जो बने बनाए तय्यार हैं. इसके नीचे नहरें चल रही हैं, ये अल्लाह ने वादा किया है. अल्लाह वादा ख़िलाफ़ी नहीं करता. क्या तूने इस पर कभी नज़र नहीं की कि अल्लाह ने आसमान से पानी बरसाया फिर इसको ज़मीन के सोतों में दाख़िल कर देता है, फिर इसके ज़रीए से खेतियाँ करता है जिसकी कई क़िस्में हैं, फिर वह खेती बिलकुल ख़ुश्क हो जाती है सो इनको तू ज़र्द देखता है, फिर इसको चूरा चूरा कर देता है. इसमें अहले अक़्ल के लिए बड़ी इबरत है.
सूरह ज़ुमर 39 आयत (20-21)

ए उम्मी! आजकल तेरे बाला ख़ाने से लाख गुना बेहतर इंसानी पाख़ाने बन गए हैं. हज़ारों ख़ाने वाली सैकड़ों मंज़िल की इमारतें खड़ी होकर तुझे मुँह चिढ़ा रही हैं. 
तूने मुसलमानों पर हराम कर रखी हैं, इंसानी काविशों की बरकतें 
तूने तो सिर्फ़ अपने ख़ानदान क़ुरैश की बेहतरी तक सोचा था, 
अब तो हर एक बिरादरी में एक कठ मुल्ला, मुहम्मद बना बैठा है. 
उनके ऊपर मौलानाओं की टोली फ़तवा लिए बैठी है, 
और इससे भी कोई बाग़ी हुआ तो मफ़िया सरग़ना सर काटने को तैयार है.

कलामे दीगराँ  - - - 
"जो कुछ भी पूरी सच्चाई से नहीं कहा जा सकता, 
वह तक़रीर ए बोसीदा है, 
इस बुराई से नाकाम होना बद तरीन जहन्नम में जाना है."
'दाव' 
(चीनी धर्म)
इसे कहते हैं कलाम पाक 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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