Monday 19 November 2018

सूरह ज़ुमर-39 -سورتہ الزمرक़िस्त -2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह ज़ुमर-39 -سورتہ الزمر
क़िस्त 2 

"अल्लाह ने बड़ा उम्दा कलाम नाज़िल फ़रमाया है जो ऐसी किताब है कि बाहम मिलती जुलती है, बारहा दोहराई गयी है. जिस से उन लोगों को जो अपने रब से डरते हैं, बदन काँप  उठते हैं. फिर उनके बदन और दिल अल्लाह की तरफ़ मुतवज्जह हो जाते हैं, ये अल्लाह की हिदायत है, जिसको चाहे इसके ज़रीए हिदायत करता है.और जिसको गुमराह करता है उसका कोई हादी नहीं."
सूरह ज़ुमर 39 आयत (23)

उम्मी ने अपने अल्लम ग़ल्लम किताब को तौरेत, ज़ुबूर और इंजील के बराबर साबित करने की कोशिश की है जिनके मुक़ाबिले में क़ुरआन कहीं ठहरता ही नहीं. 
जब तक मुसलमान इसके फ़रेब में क़ैद रहेंगे दुनिया के ग़ुलाम बने रहेंगे. 
दुनिया बेवक़ूफ़ का फ़ायदा उठती है उसको बेवक़ूफ़ी से छुटकारा नहीं दिलाती.

''हाँ! बेशक तेरे पास मेरी आयतें आई थीं, तूने इन्हें  झुटलाया और तकब्बुर किया और काफ़िरों में शामिल हुवा. आप कह दीजिए कि ए जाहिलो ! क्या फिर भी तुम मुझ से ग़ैर अल्लाह की इबादत करने को कहते हो? और इन लोगों ने अल्लाह की कुछ अज़मत न की, जैसी अज़मत करनी चाहिए थी. हालांकि सारी ज़मीन इसकी मुट्ठी में होगी, क़यामत के दिन और तमाम आसमान लिपटे होंगे इसके दाहिने हाथ में. वह पाक और बरतर है उन के शिर्क से "
सूरह ज़ुमर 39 आयत (59-68)

दुन्या का बद तरीन झूठा नाम निहाद पैग़ामबर अपने जाल में फँसे मुसलमानों कैसे कैसे मक्र से डरा रहा है. 
इसे किसी ताक़त का डर न था, 
अल्लाह तो इसकी मुट्ठी में था. 
तख़रीब का फ़नकार था, मुतफ़न्नी की ज़ेहनी परवाज़ देखे कि कहता है 
"ज़मीन इसकी मुट्ठी में होगी, क़यामत के दिन और तमाम आसमान लिपटे होंगे इसके दाहिने हाथ में." 
क्यूंकि बाएँ हाथ से अपना पिछवाडा धो रहा होगा इसका अल्लाह.

"और सूर में फूँक मार दी जायगी और होश उड़ जाएँगे तमाम ज़मीन और आसमान वालों के, मगर जिसको अल्लाह चाहे. फिर इसमें दोबारा फूँक मार दी जायगी, अचानक सब के सब खड़े हो जाएँगे और देखने लगेंगे और ज़मीन अपने रब के नूर से रौशन हो जाएगी और नामा ए आमाल रख दिया जायगा और उन पर ज़ुल्म न होगा और हर शख़्स को इसके आमाल का पूरा पूरा बदला दिया जायगा. और सबके कामों को ख़ूब जानता है और जो काफ़िर हैं वह जहन्नम की तरफ़ हाँके जाएँगे गिरोह दर गिरोह बना कर, यहाँ तक कि जब दोज़ख़ के पास पहुँचेंगे तो इसके दरवाज़े खोल दिए जाएंगे और इनमें से दोज़ख़ के मुहाफ़िज़ फ़रिश्ते कहेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम ही में से कोई तुम्हारे पैग़ामबर नहीं आए थे? जो लोगों को तुम्हारे रब की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे. और तुम को तुम्हारे इन दिनों के आने से डराया करते थे. काफ़िर कहेंगे हाँ आए तो थे मगर अज़ाब का वादा काफ़िरों से पूरा होके रहा. फिर कहा जायगा कि जहन्नम के दरवाज़े में दाख़िल हो जाओ और हमेशा इसी में रहो."
सूरह ज़ुमर 39 आयत (68-72)

क़यामत की ये नई मंज़र कशी है. न कब्रें शक हुईं, न मुर्दे उट्ठे, न कोई हौल न हंगामा आराई. लगता है ज़िन्दों में ही यौम हिसाब है.
सूर की अचानक आवाज़ सुन कर लोग चौंकेंगे, 
उनके कान खड़े हुए तो दोबारा आवाज़ आई, वह ख़ुद खड़े हो गए, 
ज़मीन अपने रब की रौशनी से रौशन हो गई, 
बड़ा ही दिलकश नज़ारा होगा. गवाहों के सामने लोगों के आमाल नामे बांटे जाएँगे, किसी पर कोई ज़ुल्म नहीं हुवा. 
बस काफ़िर दोज़ख़ की जानिब हाँके जाएंगे. 
दोज़ख़ के दरवाज़े पर खड़ा दरोगा उनसे पूछता है, 
अमा यार क्या तुम्हारे पास तुम ही में से कोई तुम्हारे पैग़ामबर नहीं आए थे? 
जो लोगों को तुम्हारे रब की आयतें पढ़ पढ़ कर सुनाया करते थे. 
और तुम को तुम्हारे इन दिनों के आने से डराया करते थे.
काफ़िर कहेंगे आए तो थे एक चूतिया टाईप के, 
उनकी मानता तो मेरी दुन्या भी ख़राब हो जाती.

अगर आप के पास वक़्त है तो पूरी ईमान दारी के साथ, 
फ़ितरत को गवाह बना कर इन क़ुरआनी आयतों का मुतालिआ करें. 
मुतराज्जिम की बैसाखियों का सहारा क़तई न लें, ज़ाहिर है वह उसकी बातें हैं, अल्लाह की नहीं. 
मगर, अगर आप ग़ैर फ़ितरी बातो पर यक़ीन रखते हैं कि 2+2=5 हो सकता है तो आप कोई ज़हमत न करें और अपनी दुन्या में महदूद रहें.
मुसलमानों के लिए इस से बढ़ कर कोई बात नहीं हो सकती कि क़ुरआन को अपनी समझ से पढ़ें और अपने ज़ेहन से समझें. 
जिस क़दर आप समझेंगे, क़ुरआन बस वही है. 
जो दूसरा समझाएगा वह झूट होगा. 
अपने शऊर, अपनी तमाज़त और अपने एहसासात को हाज़िर करके मुहम्मद की तहरीक को परखें. 
आपको इस बात का ख़याल रहे कि आजकी इंसानी क़द्रें क्या हैं, 
साइंसटिफ़िक टुरुथ क्या है. 
मत लिहाज़ करें मस्लेहतों का, सदाक़त के आगे. बहुत जल्द सच्चाइयों की ठोस सतह पर अपने आप को खडा पाएँगे.
आप अगर मुआमले को समझते हैं तो आप हज़ारों में एक हैं, 
अगर आप सच की राह पर गामज़न हुए तो हज़ारों आपके पीछे होंगे. 
इंसान को इन मज़हबी खुराफ़ात से नजात दिलाइए.  

कलामे दीगराँ
"हुकूकुल इबाद, 
ख़ैर ओ ख़ैरात, 
कुवें और तालाबों की तामीर, 
गाय बैल और कुत्ते जैसे फ़ायदे मंद जानवरों का पालन, 
मियाँ और बीवी का एक दूसरे पर यक़ीन, 
अनाज का भरपूर पैदा वार, 
ऐश ओ अय्याशी से दूर, 
पराए माल और पराई औरत पर नज़रे बद नहीं, 
ग़ुस्सा लालच, हसद, चोरी झूट और शराब से दूर रहो. 
मेहनत, सदाक़त और तालीम के क़रीब रहो."
   "ज़र्थुर्ष्ट "
पारसी धर्म
इसे कहते हैं कलाम पाक 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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