Tuesday 27 November 2018

Hindu Dharm Darshan 250



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (54)
भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं - - -
> प्रक्रति तथा जीवों को अनादि समझना चाहिए. 
उनके विकार तथा गुण प्रकृतिजन्य हैं.
>>इस प्रकार जीव प्रकृति के तीनों गुणों का भोग करता हुवा 
प्रकृति में ही जीवन बिताता है. 
यह उस प्रकृति के साथ उसकी संगति के कारण है. 
इस तरह उसे उत्तम तथा अधम योनियाँ मिलती रहती हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय -13   श्लोक - 20 -22 
*कभी कभी मन तरंग वास्तविकता को स्वीकार ही कर लेता है, 
हज़ार उसका मन पक्ष पाती हो. 
गीता के  यह श्लोक पूरी गीता की कृष्ण भक्ति को कूड़े दान में फेंकता है, 
भले ही गीता पक्ष  कोई " तात्पर्य " परस्तुत करता हो.  
श्लोक के इसी विन्दु को विज्ञान मानता है जो परम सत्य है. 
हम सभी जीवधारी इस "प्रकृतिजन्य" पर आधारित हैं. 
धर्मो और धर्म ग्रंथों ने केवल मानव को फिसलन में डाल दिया है. 
या यह कहा जा सकता है कि मानव स्वभाव ही फिसलन को पसंद करता है.
और क़ुरआन कहता है - - - 
"हमने कुरान को आप पर इस लिए नहीं उतरा कि आप तकलीफ उठाएं बल्कि ऐसे शख्स के नसीहत के लए उतारा है कि जो अल्लाह से डरता हो" 
सूरह ताहा २० आयत २-३ 
ऐ अल्लाह ! तू अगर वाकई है तो सच बोल तुझे इंसान को डराना भला क्यूं अचछा लगता है ?क्या मज़ा मज़ा आता है कि तेरे नाम से लोग थरथरएं ? गर बन्दे सालेह अमल और इंसानी क़द्रों का पालन करें जिससे कि इंसानियत का हक अदा होता हो तो तेरा क्या नुकसान है? तू इनके लिए दोज्खें तैयार किए बैठा है, तू सबका अल्लाह है या कोई दूसरी शय ? 
तेरा रसूल लोगों पर ज़ुल्म ढाने पर आमादा रहता है. तुम दोनों मिलकर इंसानियत को बेचैन किए हुए हो. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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