Monday 12 November 2018

सूरह साद -38 - سورتہ ص Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
*****
सूरह साद -38 - سورتہ ص

(क़िस्त  1)

इस पूरी सूरह में मुहम्मद की ज़ेहनी बे एतदाली देखी जा सकती है. 
उनके कलाम को नीम पागल की बड़ बड़ कहा जा सकता है. 
इसे क़लम गीर करना जितना मुहाल होगा इस से ज़्यादः पढ़ने वाले को पचा पाना; उस वक़्त के लोगों ने मुहम्मद को जो शायरे दीवाना कहा था, 
उसके बाद कुछ नहीं कहा जा सकता.
बतौर नमूना कुछ आयतें पेश हैं - - -
"साद"
मुहम्मदी अल्लाह का छू मंतर

"क़सम है क़ुरआन की जो नसीहत से पुर है बल्कि ये कुफ़्फ़ार तअस्सुब (पक्ष पात) और मुख़ालिफ़त में हैं. इनसे पहले बहुत सी उम्मतों को हम हलाक़ कर चुके हैं, सो इन्हों ने बड़ी हाय पुकार की थी. और वह वक़्त ख़लासी का न था. और इन कुफ़्फ़ार क़ुरैश ने इस पर तअज्जुब किया कि इनके पास इनमें ही से कोई पैग़ामबर डराने वाला आ गया. और कहने लगे ये शख़्स साहिर और झूठा है. क्या ये सच्चा हो सकता है? क्या हम सब में से इसी के ऊपर कलाम इलाही नाज़िल होता है, बल्कि ये लोग मेरी वह्यी की तरफ़ से शक में हैं, बल्कि अभी उन्हों ने मेरे एक अज़ाब का मज़ा नहीं चक्खा "
सूरह साद - 38 आयत (1-8)
मुहम्मद की क़बीलाई लड़ाई थी जो बद क़िस्मती से बढ़ते बढ़ते आलिमी बन गई. 
हम मुसलमानाने आलम एक ही नहीं सारे अज़ाबों का मज़ा सदियों से चखते चले आ रहे हैं. अब तो चखने की बजाए छक रहे हैं.

"और हमारे बन्दे दाऊद को याद कीजिए जो निहायत क़ुदरत और रहमत वाले थे. वह बहुत रुजू करने वाले थे. हमने पहाड़ों को हुक्म दे रखा था कि उनके साथ सुब्ह ओ शाम तस्बीह किया करें. और परिंदों को भी, जमा हो जाते थे. सब उनकी वजेह से मशगू़ले ज़िक्र (ईश गान) हो जाते थे."
सूरह साद - 38 आयत (19-20)

दाऊद एक मामूली चरवाहा था और गोफ़न चलाने में माहिर था. 
एक सेना पति को गोफ़ने की मार से चित करने के बाद वह यहूदी एक लुटेरा डाकू बन गया था. फिलस्तीनियो में लूटमार करता हुवा एक दिन बादशाह बन गया. 
वह मुहम्मद की तरह ही शायर था. उसकी नज़्मों को ही ज़ुबूर कहते हैं. 
लम्बी उम्र पाई थी और बुढ़ापे में सर्दियों से परेशान रहता था. 
इलाज के लिए उसके मातहतों ने उसके लिए मुल्क की सबसे ख़ूबसूरत नव उम्र लड़की से शादी करवा दिया था. 
उसके मरने के बाद उसका लड़का उस लड़की का आशिक बन गया था 
जिसे दाऊद पुत्र सुलेमान ने धोके से मरवा दिया था. दाऊद आख़री उम्र के पड़ाव में बुत परस्त (मूर्ति पूजक) हो गया था. (तौरेत)
मुहम्मद पहाड़ों और परिंदों से उसके साथ तस्बीह करवा के पहाड़ ऐसा झूट गढ़ रहे हैं.
हमेशा की तरह बेज़ार करने वाला क़िस्सा मुहम्मदी अल्लाह का देखिए- - -
दो अफ़राद दीवार फान्द कर दाऊद के इबादत ख़ाने में घुस आते हैं, उनमें से एक कहता है कि आप डरें मत. हम दोनों भाई भाई हैं. आप हमारा फ़ैसला कर दीजिए. हम लोगों के पास सौ अशर्फियाँ हैं, मेरे पास एक और इसके पास 99 . ये कहता है ये भी मुझे दे डाल ताकि मेरी सौ पूरी हो जाएँ. दाऊद इसे ज़ुल्म क़रार देता हुवा कहता है, अकसर साझीदार ज़ुल्म करने लगते हैं.
इसके बाद मुहम्मद तबलीग़ इस्लाम करने लगते है और क़िस्सा अधूरा रह जाता है. "
सूरह साद - 38 आयत (22-24)
यूनुस की कहानी के बाद अल्लाह मुहम्मद के कान में फुसकता है 
कि अब अय्यूब की कहानी गढ़ो- - -

कलामे दीगराँ  - - -
"ए इलाही! इनके अन्दर खौ़फ़ पैदा कर, 
कौमे अपने आप को इंसान ही मानें"
"तौरेत"
(यहूदी मसलक)
इसे कहते हैं कलामे पाक 
*********


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment