मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मोमिन/ग़ाफ़िर-40 -سورتہ المومن
(क़िस्त 3)
देखिए कि बादशाह फ़िरओन के दरबार में मुहम्मदी अल्लाह क्या क्या नाटक खेल रहा है - - -
"दरबारी वज़ीर मोमिन ने अपनी तक़रीर जारी रखते हुए कहा कि ऐ बिरादराने क़ौम मुझे डर है कि बड़ी बड़ी क़ौमों जैसी बरबादी का दिन तुम पर भी आ जाएगा, जैसा कि क़ौम नूह, क़ौम आद, और क़ौम सुमूद वालों का हाल बना और उसके बाद भी बहुत से लोग बरबाद हो चुके, हालांकि अल्लाह अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने का इरादा नहीं रखता. ऐ बिरादराने क़ौम मुझको तुम पर एक ऐसे दिन के आ पड़ने का खौ़फ़ है जब बहुत चीख पुकार करोगे. वह दिन ऐसा होगा कि पीठ फेर कर भागोगे मगर अल्लाह से बचाने वाला तुम को कहीं भी न मिल सकेगा. याद रखो कि जिसे अल्लाह गुमराही में पड़ा रहने दे तो उसको राह पर कोई नहीं ला सकता."
सूरह मोमिन 40 आयत (30-33)
आसानी से समझा जा सकता है कि आयतें मुहम्मदी मक्र बयान करती हैं.
वह दरबारी मोमिन की आड़ में अपनी बात कर रहे है.
"फ़िरऔन बोला : ऐ हामान! मेरे लिए एक ऊँची इमारत बनाओ ताकि मैं ऊपर के रास्तों पर पहुँच कर देख सकूँ. आसमानों के रस्ते पर जाना चाहता हूँ, ताकि मूसा के माबूद को झाँक कर देख लूं. मैं तो इसे झूटा समझता हूँ. फ़िरऔन की ऐसी बुरी हरकत अपनी निगाह में बहुत अच्छी मालूम पड़ती थी, जिसके सबब सही रस्ते से उसको रोका गया और फ़िरऔन की हर तदबीर बेअसर और बेकार साबित हुई."
सूरह मोमिन 40 आयत (40-42)
मुहम्मदी अल्लाह अपनी ज़बान और कलाम का हक़ तक नहीं अदा कर पा रहा, जिसे मुसलमान अल्लाह का कलाम कहते हैं. इसे तमाम उम्र दोहराते रहते हैं.
कहता है - - -
"ताकि मैं ऊपर के रास्तों पर पहुँच कर देख सकूँ. आसमानों के रस्ते पर जाना चाहता हूँ, ताकि मूसा के माबूद को झाँक कर देख लूं."
ऐसे गाऊदी अल्लाह को मुसलमान ही गले उतार सकते हैं.
मोमिन वज़ीर कहता है - - -
"मेरी बात बहुत जल्द तुम को याद आकर रहेगी. तब बहुत पछताओगे अब मैं अपने मुआमले अल्लाह के सुपुर्द करता हूँ जो बन्दों को देख रहा है. अल्लाह ने उस मोमिन को उनके क़रीब के चक्कर से बचा लिया और अज़ाब ने आले फ़िरऔन पर बुरी तरह घेरा डाल दिया."
सूरह मोमिन 40 आयत (38-45)
ऐसे अल्लाह के चक्कर में मुसलमान क़ौम फंसी हुई है.
मुसलमानों! क्या बिकुल नहीं समझ पाते सच्चाई से तुम्हें परहेज़ है?
"मरने के बाद इन्हें सुब्ह ओ शाम आग पर पेश किया जाता है और जिस दिन क़यामत क़ायम होगी, हुक्म होगा कि फ़िरऔन और उसके साथ वालों को सख़्त अज़ाब में दाख़िल करो. भयानक होगा वह मंज़र जब आग में गिरने के बाद ये लोग आपस में झगड़ रहे होंगे. तब दबा कर रक्खे गए लोग अपने बड़ों से कहेंगे, तुम्हारे कहने पर चलते थे , फिर क्या तुम मुझ पर से इस आग के अज़ाब को कुछ कम करा सकोगे? बड़े कहेंगे हमको तुमको सभी को इस जहन्नम में पड़े रहना है कि अल्लाह अपने बन्दों के दरमियान फैसला कर चुका है. दोज़खी लोग दोज़ख़ के दरोगा से कहेंगे, अपने रब से दुआ करो कि किसी एक दिन के वास्ते तो हम को इस अज़ाब से हल्का करदे . जवाब में दोज़ख़ के अफ़सरान बोलेंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम्हारे रसूल इस अज़ाब की चेतावनी देने नहीं आए ? बोलेंगे कि हाँ ! वह तो बराबर हमको डराते रहे . जहन्नम के अफ़सर कहेंगे कि बस अब बात ख़त्म हुई, तुम ख़ुद दुआ कर लो और काफ़िरों की दुआ क़तई क़ुबूल नहीं होगी."
सूरह मोमिन 40 आयत (47-50)
"मरने के बाद इन्हें सुब्ह ओ शाम आग पर पेश किया जाता है"
ताकि उन्हें ताज़ा रखा जा सके ?
"जब आग में गिरने के बाद ये लोग आपस में झगड़ रहे होंगे."
गोया गंदे पानी में गिरा दिए गए हों.
इस्लाम अपने बड़े बुजुर्गों की बातों को न मानने का पैग़ाम दे रहा है.
ये आयतें मुसलमानों की घुट्टी में पिलाई हुई है, इन हराम जादे ओलिमा ने
जिसे कि एक बच्चा भी तस्लीम करने में बेजारी महसूस करे.
"कयामत आकर रहेगी लेकिन बहुत से लोग ऐसी बेशक ख़बर पर भी यक़ीन नहीं करते."
"ऐसी बेशक ख़बर पर भी यक़ीन नहीं करते."
उम्मी की बेशक ख़बरें मुसलमानों का ही यक़ीन हो सकती हैं.
"अल्लाह ने तुम्हारे लिए रात बनाया ताकि तुम इसमें सुकून और राहत हासिल कर सको और दिन इस लिए कि तुमको अच्छी तरह दिखाई दे,
बे शक अल्लाह तो लोगों पर फ़ज़ल फ़रमाने वाला है लेकिन बहुत से लोग शुक्र ही नहीं करते."
बे शक अल्लाह तो लोगों पर फ़ज़ल फ़रमाने वाला है लेकिन बहुत से लोग शुक्र ही नहीं करते."
मुसलमानों!
रात और दिन ज़मीन पर सूरज की रौशनी है जो हिस्सा सूरज के सामने रहता है वहाँ दिन होता है, बाक़ी में रात, इतनी तालीम तो आ ही गई होगी.
अब देखने के लिए दिन की ज़रुरत नहीं पड़ती इसे भी तुम रौशन हो चुके हो. अपने दिमागों को भी रौशन करो.
मुहम्मदी अल्लाह के दुश्मन क़ौमों ने रातों को भी दिन से ज़्यादः रौशन कर लिया है. मुहम्मदी अल्लाह की हर बात ग़लत साबित हो चुकी है.
मुसलमान झूट के अंधेरों में मुब्तिला है,
"वही तो है जो तुम्हारी पैदाइश मिटटी से करता है, फिर उसे फुटकी बूँद बना देता है, फिर उसको लहू के लोथड़े यानी लहू की फुटकी में तब्दील फ़रमाता है, फिर तुमको बच्चा बना कर बाहर निकालता है, फिर तुम हो कि अपनी जवानी तक पहुँचाए जाते हो, फिर बहुत बूढ़े भी हो जाते हो. कुछ तो अपना वक़्त हो जाने पर जवानी या बुढ़ापा के पहले ही मर जाते हैं, और बाक़ी बहुत से अपने अपने वक़्त तक बराबर पहुँचते रहते हैं. इन हालात को ध्यान में रख कर अक़्ल से काम लो."
सूरह मोमिन 40 आयत (59-67)
अक़्ल से काम लो और उम्मी की जनरल नालेज पर तवज्जो दो.
इंसान की पैदाइश के सिलसिले में ये उम्मी का गया हुवा ये नया राग है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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