Friday 30 November 2018

सूरह हा मीम सजदा -41 - سورتہ حا میم السجدہ क़िस्त 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह हा मीम सजदा -41 - سورتہ حا میم السجدہ
क़िस्त 2  

ज़ालिम अल्लाह क़ुरआन में कहता है - - - 
"तुम अपने काले करतूत करते वक़्त ये तो न करते थे कि अपने कान आँख और खाल से अपनी हरकत छुपा सकते. लेकिन तुम ज़्यादः तर इस गुमान में रहे कि वह बहुत कुछ जो तुम करते रहे अल्लाह को मालूम नहीं."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (22)
ए मुहम्मद तेरे अल्लाह ने शर्म से मुँह छुपा लिया था जब तू अपनी बहू जैनब के साथ काले करतूत कर रहा था ? 

"और हम ने इसके लिए कुछ साथ रहने वाले शयातीन मुक़र्रर कर रखे थे सो इन्हों ने इनके अगले पिछले आमाल इनकी नज़र में मुस्तःसिन कर रखे थे और इनके लिए भी अल्लाह का कौल पूरा होके रहा.जो इनके पहले जिन और इंसान हो गुज़रे है बेशक वह भी ख़सारे में रहे."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (25)

यह आयत मेरे क़ौल की सदाक़त बयान करती है कि अल्लाह और शैतान आपस में भाई भाई हैं और दोनों एक हैं. 
जब अल्लाह ही शैतान से काम कराता है तो इंसान दो तो तरफ़ा मार झेल रहा है. मुहम्मद एक बेवक़ूफ़ साज़िशी का नाम है, 
जिसे नादान मुसलमान समझ नहीं पाते.

"और कहते हैं इस क़ुरआन को सुनो मत और इसके बीच ही शोर कर दिया करो. ऐसे काफ़िरों को हम बड़ा सख़्त मज़ा चखाएंगे और उनके बुरे कामों का भर पूर सज़ा उनको देंगे,"
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (26-27)

मुहम्मद की असली हालत ये सूरह बतला रही है कि किस क़दर लाख़ैरे और बेहया ज़ात थी उनकी. जाहिलों की पुश्त पनाही उसके बाद माले ग़नीमत की लालच से ये जिहालत की आयतें इबादत की बन गईं .

"और मिन जुमला इसकी निशानियों में एक ये है कि तू ज़मीन को देखता है कि दबी दबी पड़ी है, फिर जब हम पानी बरसाते हैं तो ये उभरती और फूलती है, हमने इस ज़मीन को ज़िंदा कर दिया वही मुर्दों को ज़िंदा करेगा. बे शक वह हर चीज़ पर क़ादिर है."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (29)

ज़मीन का मुशाहिदा न किसानों के लिए किया न मज़दूरों के लिए, 
जिनका तअल्लुक़ ज़मीन से है. 
अपने लाल बुझककड़ी दिमाग से इंसानों की फ़सल ज़मीन से उगा रहे हैं.

"और ये बड़ी बा वक़अत किताब है जिसमें ग़ैर वाकई बात न आगे से आ सकती है न इसके पीछे की तरफ़ से. ये अल्लाह हकीम महमूद की तरफ़ से नाज़िल किया गया है और अगर हम इसे अजमी  क़ुरआन बनाते तो यूँ कहते कि इसकी आयतें साफ़ साफ़ क्यूँ बयान नहीं की गईं. ये क्या बात है कि अजमी क़ुरआन और अरबी रसूल ? आप कह दीजिए कि ये क़ुरआन ईमान वालों के लिए राह नुमा और शिफ़ा है. और जो ईमान नहीं लाते उनके लिए डाट लगा दी गई है."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (41-44) 

बार उम्मी अपना तकिया कलाम क़ुरआन में दोहराते हैं 
"न आगे से आ सकती है न इसके पीछे की तरफ़ से." 
अल्लाह का नया नाम किसी तालीम याफ़्ता ने सुझाया 
"अल्लाह हकीम महमूद" 
अस्ल में क़ुरआन तौरेत और यहूदियत की चोरी है मगर इसमें झूट और जिहालत की आमेज़िश कर दी गई.
मालूम हो कि जब उस्मान ग़नी क़ुरआन को तरतीब देने पर आए तो इसके आगे से, पीछे से,ऊपर से और नीचे से 50% आयतें निकल कर कूड़ेदान में डाल दी गईं थी. 
कि आप की आयतें इन्तेहाई दर्जे हिमाक़त की थी और कराहियत की भी थीं. 
अरबी और अजमी की बातें कितनी झोलदार हैं.
कितना मामूली फ़िक्र का रसूल है जो कहता है 
"जो ईमान नहीं लाते उनके लिए डाट लगा दी गई है."

"बहुत जल्द हम अपनी निशानियाँ उनके चारो तरफ़ दिखलाएँगे और ख़ुद इनके अन्दर भी, यहाँ तक कि इनके लिए ये इक़रार किए बग़ैर कोई चारा न होगा कि ये  क़ुरआन हक़ है. क्या तुम्हारे लिए ये काफ़ी नहीं कि तुम्हारा परवर दिगार हर हर चीज़ पर ख़ुद गवाह है. आगाह हो जाओ कि इसने हर चीज़ को अपने घेरे में ले रखा है."
सूरह हा-मीम-सजदा - 41 आयत  (53-54)  
पहली बार मुहम्मद डरा धमका नहीं रहे बल्कि आगाह कर रहे हैं मगर एक झूट के साथ. क़ुदरत की निशानियाँ तो चारो तरफ़ रौशन हैं जो इन्हें नज़र नहीं आतीं, 
नज़र कुछ आता है तो किज़्ब और झूट.    
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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