Tuesday 5 March 2019

खेद है कि यह वेद है - - -27

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (27)

यजमान अपने वीर पुत्रों की सहायता से हिसक शत्रु की हिंसा करे. 
वह गाय रूप धन का विस्तार करता है 
एवं स्वयं ही सब कुछ समझता है. 
ब्राह्मणस्पति जिस जिस यजमान को मित्र के रूप में स्वीकार कर लेते हैं, 
वह अपने पुत्र तथा पौत्र से भी अधिक दिनों तक जीता है. 
द्वतीय मंडल सूक्त 25 (2)

ब्राह्मण हमेशा शांति प्रिय होता है, बस दूसरों को लड़ने लड़ाने का आशीष देता है. यजमान के पुत्रों को दुश्मनों से लड़ने की कामना करता है. 
वेद मन्त्रों से पता चलता है कि वैदिक काल का सब से बड़ा धन गाय ही हुवा करती थीं, जो खाने के लिए मांस, पीने के लिए दूध और पहिनने के लिए खाल दिया करती थीं.
ब्राह्मण इन वेद मन्त्रों का खुलासा नहीं बतलाता कि 
इसका भेद देव को बेहतर पता है.
  ब्राह्मणस्पति जिन यजमानों को पसंद करते हैं, 
उनको उनके पुत्र और पौत्र से भी लंबी आयु देते हैं, 
पता नहीं यह वंशो के लिए वरदान है या अभिशाप. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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