Wednesday 13 March 2019

सूरह नबा- 78 = سورتہ النبا (अम्मा यता साएलूना)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह नबा- 78 = سورتہ النبا
(अम्मा यता साएलूना)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

 "ये लोग किस चीज़ का हल दरियाफ़्त करते हैं,
उस बड़े वाक़ेए का जिसका ये इख़्तेलाफ़ करते हैं ,
हरगिज़ ऐसा नहीं, इनको अभी मालूम हुवा जाता है,
(दोबारा)
हरगिज़ ऐसा नहीं, इनको अभी मालूम हुवा जाता है,
क्या हमने ज़मीन को फ़र्श और पहाड़ को मेखें नहीं बनाईं?
और हमने ही तुमको जोड़ा जोड़ा बनाया,
और हमने ही तुम्हारे सोने को राहत की चीज़ बनाया.
और हमने ही रात को पर्दा की चीज़ बनाया,
और हमने ही दिन को मुआश का वक़्त बनाया,
और हम ही ने तुम्हारे ऊपर सात मज़बूत आसमान बनाए,
और रौशन चराग़ बनाया,
और हम ही ने पानी भरे बादलों से कसरत से पानी बरसाया,
ताकि हम पानी के ज़रीया ग़ल्ला और सब्ज़ी और गुंजान बाग़ पैदा करें.
बेशक फ़ैसले के दिन का मुअय्यन वक़्त है."
सूरह नबा 78  आयत  (1-17 )

"हमने हर चीज़ को लिख कर ज़ब्त कर रखा है, सो मज़ा चक्खो हम तुम्हारी सज़ा बढ़ाते जाएंगे{काफ़िरों से अल्लाह का वादा}अल्लाह से डरने वालों के लिए बेशक कामयाबी है यानी बाग़ और अंगूर और नव ख़्वास्ता नव उम्र औरतें और लबालब भरे हुए जाम ए शराब. वहाँ न कोई बेहूदः बातें सुनेंगे और न झूट. ये काम बदला मिलेगा जो कॉफ़ी इनआम होगा रब की तरफ़ से." सूरह नबा 78  आयत  (27 -36 )

 नमाजियों !
तुम्हारा अल्लाह तुमको ग़लत इत्तेला देता है कि ये ज़मीन फ़र्श की तरह समतल है और पहाड़ उस पर खूंटों की तरह ठुके हुए हैं ताकि ये तुमको लेकर हिले दुले ना.
हक़ीक़त ये है कि तुम्हारी धरती गोल है जिसे तुम टी वी पर हर रोज़ कायनात में गर्दिश करते हुए देख सकते हो. 
ज़मीन अपने गोद में पहाड़ और समंदर कैसे लिए हुए है, इसे तुम अपने बच्चे से पूछ सकते हो अगर वह तअलीम जदीद ले रहा हो वर्ना अगर वह मदरसे का पामाल तालिब इल्म है तो तुम्हारी अगली नस्ल भी ज़ाया गई.
तुम अगर थोड़े से तअलीम याफ़्ता हो या तुम में फ़िक्र की कुछ अलामत है 
तो इन आयतों वाली नमाज़ पढ़ ही नहीं सकते.
ईसाई भो मुसलमानों की तरह ही धरती को गोल न मान कर समतल मानते थे, मगर चार सौ साल पहले आलिम ए फ़ल्कियात, गैलेलिओ के इन्किशाफ़ के बाद , हुज्जत करते हुए वह ज़मीन को गोल मानने लगे हैं.
क्या तुम चार सौ साल और लोगे सच को सच मानने के लिए? 'इसमें पहाड़ों के खूटे ठुके हुए हैं ताकि ये तुमको लेकर हिले दुले न' जैसी जिहालत भरी नमाज़ कब तक पढ़ते रहोगे?
रह गई ज़मीन पर क़ुदरत की बख़्शी हुई नेमतें, तो इसको कौन बेवक़ूफ़ नहीं मानता. ये किसी छुपे हुए फ़नकार की तख़लीक़ है, 
उसे ख़ुदा, ईश्वर या गाड कोई भी नाम दो, 
मगर इसे क़ुरआनी अल्लाह का नाम नहीं दिया जा सकता, 
क्यूंकि वह कठ मुल्ला है.
इसके अलावा तुम पूरा यक़ीन कर सकते हो कि 
तुमको मरने के बाद कोई सज़ा या जज़ा नहीं है.
ज़िन्दगी ख़ुद एक आज़ार भरी सौग़ात है, मौत इसका अंजाम है.
मरने के बाद कोई सज़ा, कोई ताक़त ऐसी नहीं जो तुम पर थोपे.
मुहम्मद इस लिए तुमको डराते हैं कि 
तुम इनको कम ओ बेश ख़ुदा की तरह मानते हो. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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