Sunday 10 March 2019

खेद है कि यह वेद है (31)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  

हे ध्यावा पृथ्वी !
यज्ञ करने के इच्छुक एवं तुम्हें प्रसन्न करने के लिए प्रयत्न शील 
मुझ स्तोता की रक्षा करो. 
सब की अपेक्षा उत्कृष्ट अन्न वाले 
एवं अनेक लोगों द्वारा प्रशंसित तुम्हाती स्तुति में 
अन्न प्राप्ति की अभिलाषा से विशाल स्तोत्रों द्वारा करूँगा.
द्वतीय मंडल सूक्त 32 (1)

मेरे बचपन में मुझे याद है भिखारी गले में झोली लटकाय दर दर पिसान माँगा करते थे. कुत्ते उनको देख कर भौंकते और भगाते. शेख शादी कहते हैं कि कुत्ता इस लिए भिखारी पर भौंकता है कि उसका एक टुकड़े से पेट भर जाता है, 
भिखारी की झोली कभी भी नहीं भारती. 
कुत्ता एक टुकड़े के बदले रात भर बस्ती की रखवाली करता है और भिखारी भीख मांग कर सुख सुविधा को भोगता है. 
यह पूरा वेद भिखारी नामः है. हवि यानी खैरात. 

*

हे समान रूप से प्रसन्न देवो ! 
इस समय जनपदों मेंअन्न की खोज में गए हुए हमारे रथ को गति शील बनाओ.
क्योकि इस रथ से जुड़े हुए घोड़े अपनी गतियों से मार्ग तय करते हैं 
एवं उठी हुई धरती पर अपने खुरों से बहुत तेज़ चल सकते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 31(2)

लगता है वैदिक काल की सब से बड़ी समस्या अन्न हुवा करता था. अन्न प्राप्ति के लिए प्रोहित यज्ञ का आयोजन किया करते थे. उनके बस की बात न रही होगी कि हल और फावड़ा उठाएं, धरती का सीना चीर कर अन्न उपजाएं. काहिल और हराम खोर जो ठहरे.
यह मानसिक अपंग भी हुवा करते थे. यह बात इनकी रचना बतलाती है कि घोड़ों को पैरों से नहीं, खुरों से दौडाते हैं. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान



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