Tuesday 19 March 2019

खेद है कि यह वेद है (37)


खेद  है  कि  यह  वेद  है  (37)

हे द्रविणोदा ! वे घोड़े तृप्त हों जिनके द्वारा तुम आते हो.
हे वनों के स्वामी ! तुम किसी की हिंसा न करते हुए दृढ बनो.
हे शत्रुपराभवकारी !तुम नेष्टा के यज्ञ आकर ऋतुओं के साथ सोम पियो. 
द्वतीय मंडल सूक्त 37 (3)

समझ में नहीं आता कि कौन सी उपलब्धियाँ हैं वेद में जो मानवता का उद्धार कर रही होम. बस देवों को खिलाने पिलाने की दावत हर दूसरे वेद मन्त्र में है. 
खुद बामन्ह का पेट गणेश उदर जैसा लगता है कि इसके लिए हवि की हर वक़्त ज़रुरत होती है. 

* हे बुद्धिमान अग्नि ! 
इस यज्ञ स्थल में देवों को बुला कर उनके निमित यज्ञ करो.
हे देवों को बुलाने वाले अग्नि !
तुम हमारे हव्य की इच्छा करते हुए तीन स्थानों पर बैठो , 
उत्तर वेदी पर रख्खे हुए सोमरूप मधु को रवीकर करो.
एवं अगनीघ्र के पास से अपना हिस्सा लेकर तृप्त बनो.
द्वतीय मंडल सूक्त 36(4)

बुद्धू राम अग्नि को बुद्धमान बतला रहे हैं. 
आग का बुद्धी से क्या वास्ता ?  
देव को महाराज हुक्म देते हैं कि अपना हिस्सा ही लेना , 
कोई मनमानी नहीं करना. 
यह है इनका मस्तिष्क स्तर.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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