Thursday 21 March 2019

खेद है कि यह वेद है (39



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (39)

कपडे बुनने वाली नारी जिस प्रकार कपडे लपेटी है, 
उसी प्रकार रात बिखरे हुए प्रकाश को लपेट लेती है. 
कार्य करने में समर्थ एवं बुद्धिमान लोग अपना काम बीच में ही रोक देते हैं. 
विराम रहित एवं समय का विभाग करने वाले सविता देव के उदित होने तक लोग शैया छोड़ते हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 38(4)
*वाह पंडित जी ! क्या लपेटा है.
कुरआन में भी कुछ ऐसे ही रात और दिन को अल्लाह लपेटता है. 
नारी कपडे को लपेट कर सृजात्मक काम करती है 
और रात बिखरे हुए प्रकाश को लपेट कर नकारात्मक काम करती है. 
यह विरोधाभाषी उपमाएं क्या पांडित्व का दीवालिया पन तो नहीं? 
इस सूक्त से एक बात तो साफ़ होती है कि वेद की आयु उतनी ही है कि जब इनसान कपडा बुनना और उसे लपेट कर रखने का सकीका सीख गया था, 5-6 हज़ार वर्ष पुरानी नहीं.

हे अस्वनी कुमारो ! 
तुम दोनों होटों के सामान मधुर वचन बोलो, 
दो स्तनों के सामान हमारे जीवन रक्षा के लिए दूध पिलाओ, 
नासिका के दोनों छिद्रों के सामान हमारे शरीर रक्षक बनो. 
एवं कानो के सामान हमारी बात सुनो.  
द्वतीय मंडल सूक्त 39(6)

पंडित जी महाराज दोनों होटों से ही कटु वचन भी बोले जाते है. 
कब तक स्तनों के दूध पीते रहोगे ? अब बड़े भी हो जाओ.
हाथ, पैर, आँखें और अंडकोष भी दो दो होते हैं 
इनको भी अपने मंतर में लाओ. 
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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