Sunday 31 March 2019

खेद है कि यह वेद है (45)



खेद  है  कि  यह  वेद  है  (45)

उषा को जानते हुए जो मेघावी अग्नि कांतदर्शियों के मार्ग पर जाते हुए जगे थे, वही परम तेजस्वी अग्नि देवों को चाहने वाले लोगों द्वारा प्रज्वलित होकर अज्ञान के जाने के द्वार खोलते हैं.
तृतीय मंडल सूक्त 5 (1)

अग्नि की हमारी बस इतनी सी पहचान है कि यह हिन्दुओं को मालामाल करती है और मुसलमानों को दोज़ख़ में तडपा तडपा कर भूनती है. 
पंडित इस अग्नि महिमा को गाकर हलुवा पूरी उड़ाते हैं 
और मुल्ले इसके तुफैल में मुर्ग मुसल्लम डकारते हैं. 
यह दोनों जीव अग्नि के और कोई रूप जानते भी नहीं.
*

हे अत्यधिक प्रज्वलित अग्नि ! 
तुम उत्तम मन से जागो. 
तुम अपने इधर उधर फैलने वाले तेज के द्वारा हमें धन देने की कृपा करो. 
हे अतिशय द्योतमान अग्नि ! 
देवों को हमारे यज्ञं में लाओ. 
तुम देवों के मित्र हो. 
अनुकूलता पूर्वक देवों का यज्ञं करो. 
तृतीय मंडल सूक्त 4  (1 )

प्राचीन काल में ईरानी अग्नि पूजा करते थे. ज़रतुष्ट ईरानी पैग़म्बर हुवा करता था जिसके मानने वाले इस्लामी गलबा और हमलों से परेशान होकर भारत आ गए जो आज पारसी कहे जाते हैं. ईरान का पुराना नं फारस था, उसी रिआयत से फारसी हुए, फिर पारसी हो गए. पारसी आज भी अग्नि पूजा करते हैं. आर्यन भी ईरान के मूल निवासी हैं, दोनों अपने पूर्वजों की पैरवी में अग्नि पूजक हैं.
बेचारी अग्नि इस बात से बेखबर है कि वह पूज्य है या पापन??
जब तक हम पूरबी लोग अपनी सोच नहीं बदलते पश्चिम के बराबर नहीं हो सकते, भले ही स्वयंभू जगत गुरु बने रहें.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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