Monday 4 March 2019

सूरह मुद्दस्सिर- 74 = سورتہ المدسثر (मुकम्मल)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह मुद्दस्सिर- 74 = سورتہ المدسثر
(मुकम्मल)

"ऐ कपड़े में लिपटने वाले! उट्ठो, फिर डराओ, अपने रब की बड़ाइयाँ बयान करो और कपड़ों को पाक रखो, और बुतों से अलग रहो, और किसी को इस गरज़ से मत दो
 कि ज़्यादः मावज़ा चाहो."

मुसलामानों! ये तुम्हारे अल्लाह की सात बातें हैं. अगर कुछ तुम्हारे पल्ले पड़ा हो तो इक्कीसवीं सदी को बतला दो. अपनी भद्द मत पिटवाओ. तुम्हारा रसूल कपड़े में लिपटा हुवा नंगा है, इसे देख सको तो देखो.

"मुझ को और उस शख़्स  को रहने दो, जिसको हमने अकेला पैदा किया है, इसको कसरत से माल दिया और पास रहने वाले बेटे, और हर तरह का सामान मुहय्या कर दिया,  फिर भी इस बात की हवस रखाता है कि और ज़्यादः दूं ."

मुहम्मद अल्लाह बने हुए किसी की मेहनत की कमाई को देख नहीं सकते, 
जले जा रहे हैं कि उसके मॉल के हिस्सेदार वह ख़ुद क्यूँ नहीं बन सकते. 
नहीं चाहते कि वह और मालदार हो जाए,
इंसानों का बद ख़्वाह , इंसानों का पैग़म्बर बना फिरता है.

"हरगिज़ नहीं, वह हमारी आयातों का मुख़ालिफ़ है. इसको अनक़रीब दोज़ख के पहाड़ों पर चढ़ाऊँगा. इस शख़्स ने सोचा, फिर एक तजवीज़ की, सो इस पर अल्लाह की मार कैसी बात की तजवीज़ की, फिर देखा, मुँह बनाया, और ज़्यादः मुँह बनाया
फिर मुँह फेरा और तकब्बुर किया., फिर बोला ये तो जादू है, मन्कूल, ये तो आदमी का कलाम है. मैं इसको जल्द दोज़ख में दाख़िल कर दूंगा."

मदीने का वलीद बिन मुगीरा एक अरबी था जो समाज में अपनी मज़बूत पकड़ रखाता था, अल्लाह के रसूल को ख़ातिर में नहीं लाता, न उनके कलाम को. मुहम्मद उसका कुछ उखाड़ नहीं पाते तो अल्लाह के नाम पर उसे कोस रहे हैं. 
ऐसे मक्र के पुतले को किस तरह लोगों ने झेला होगा?
उसके मकरूह तरीक़े कार को आज मुसलमान अपने ऊपर मुसल्लत किए हुए है. 
हर समाज में मिनी मुहम्मद बैठा हराम रिज़क़ पैदा कर रहा है. भेड़ चाल अवाम इनका शिकार हा रहे हैं.

"और हमने दोज़ख के कारकुन सिर्फ़ फ़रिश्ते बनाए हैं,
और हमने जो उनकी तादाद ऐसी रखी है जो काफ़िरों की गुमराही का ज़रीआ हो.
तो इस लिए ताकि अहले किताब और मोमनीन शक न करें,
और ताकि जिन लोगों के दिलों में मरज़ है वह और काफ़िर कहने लगें,
 कि इस अजीब मज़मून से अल्लाह का क्या मक़सूद है?

"इस तरह अल्लाह जिसको चाहता है गुमराह कर देता है,
और जिसको चाहता है हिदायत देता है,
और तुम्हारे रब के लश्करों को बजुज़ रब कोई नहीं जानता.
और दोज़ख सिर्फ़ आदमियों के नसीब के लिए है.
बिल तहक़ीक़ क़सम है चाँद की,
और रात की जब वह जाने लगे,
 और सुब्ह की जब वह रौशन हो.
वह दोज़ख भारी चीज़ है जो इंसान के लिए बड़ा डरावना है,
जो आगे बढ़े इसके लिए भी और
जो पीछे हटे इसके लिए भी."

मुसलमानों! 
देखो तुम्हारा अल्लाह शैतान की तरह बन्दों को गुमराह भी करता है. लोग पूछते हैं कि इस कलाम से अल्लाह की मुराद क्या है? तो मुहम्मद उनको अपने कलाम का मक़सद तो कुछ बतला नहीं पाते मगर जो मुँह में आता है, बकते रहते हैं .
क़स्मो की किस्में  देखें,
शुक्र है उम्मत अल्लाह  की नक़्ल में ऐसी क़समें नहीं खाती वर्ना इसी दुन्या में उनको पागल करार दे दिया जाता. मगर ऐसी क़समें खाने वाले को अपना अल्लाह बनाए हुए है. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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