Friday 3 May 2019

सूरह आदियात 100 = سورتہ العادیات

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह आदियात 100 = سورتہ العادیات
(वलआदेयाते ज़बहन)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

नमाज़ियो!
ज़मीन हर वक़्त हिलती ही नहीं बल्कि बहुत तेज़ रफ़्तार से अपने मदार पर घूमती है. इतनी तेज़ कि जिसका तसव्वुर भी क़ुरआनी अल्लाह नहीं कर सकता. अपने मदार पर घूमते हुए अपने कुल यानी सूरज का चक्कर भी लगती है. अल्लाह को सिर्फ़ यही ख़बर है कि ज़मीन में मुर्दे ही दफ्न हैं 
जिन से वह बोझल है. तेल. गैस और दीगर मदनियात से वह बे ख़बर है. 
क़यामत से पहले ही ज़मीन ने अपनी ख़बरें पेश कर दी है 
और पेश करती रहेगी मगर अल्लाह के आगे नहीं, साइंसदानों के सामने.
धर्म और मज़हब सच की ज़मीन और झूट के आसमान के दरमियाँ में मुअललक फार्मूले है.ये पायाए तकमील तक पहुँच नहीं सकते. 
नामुकम्मल सच और झूट के बुनियाद पर क़ायम मज़हब, 
बिल आख़िर गुमराहियाँ हैं. 
अर्ध सत्य वाले धर्म दर असल अधर्म है. 
इनकी शुरूआत होती है, ये फूलते फलते है, उरूज पाते है और ताक़त बन जाते है, फिर इसके बाद शुरू होता है इनका ज़वाल, 
ये शेर से गीदड़ बन जाते है, फिर चूहे. 
ज़ालिम अपने अंजाम को पहुँच कर मज़लूम बन जाता है. 
दुनया का आख़िरी मज़हब, मज़हबे इंसानियत ही हो सकता है 
जिस पर तमाम क़ौमों को सर जोड़ कर बैठने की ज़रुरत है.

देखिए पैग़म्बर अल्लाह के नाम पर कैसी कैसी बेहूदा आयतें गढ़ते हैं, वह भी अल्लाह को क़समें खिला खिला कर. 

"क़सम है उन घोड़ों की जो हाफ़्ते हुए दौड़ते हैं,
फिर टाप मार कर आग झाड़ते हैं,
फिर सुब्ह के वक़्त तख़्त ओ ताराज करते हैं,
फिर उस वक़्त ग़ुबार उड़ाते हैं,
फिर उस वक़्त जमाअत में जा घुसते हैं,
बेशक आदमी अपने परवर दिगार का बड़ा नाशुक्रा है,
और इसको ख़ुद भी इसकी ख़बर है,
और वह माल की मुहब्बत में बड़ा मज़बूत है,
क्या इसको वह वक़्त मालूम नहीं जब जिंदा किए जाएँगे, जितने मुर्दे कब्र में हैं. और आशकारा हो जाएगा जो कुछ दिलों में है,
बेशक इनका परवर दिगार इनके हाल से, उस रोज़ पूरा आगाह है."
नमाज़ियो !
इन आयतों को एक सौ एक बार गिनते हुए पढो, 
शायद तुमको अपनी दीवानगी पर शर्म आए. 
तुम बेदार होकर इन घोड़ों की ख़ुराफ़ातें जो जंग से वाबिस्ता हैं, 
से अपने आप को छुड़ा सको. 
आप को कुछ नज़र आए कि आप की नमाज़ों में घोड़े 
अपने टापों की नुमाइश कर रहे हैं. 
मुहम्मद अपने जेहादी प्रोग्रामों को बयान कर रहे हैं, 
जैसा कि उनका तरीक़ा ए ज़ुल्म था कि वह अलल सुब्ह 
पुर अमन आबादी पर हमला किया करते थे. 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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