Friday 31 May 2019

सूरह काफ़िरून 109 = الکافرون سورتہ

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह काफ़िरून 109 = الکافرون سورتہ
(कुल्या अय्योहल कफ़िरूना)


एक बार मक्का के मुअज़ज़िज़ कबीलों ने मिलकर मुहम्मद के सामने एक तजवीज़ रखी, कि आइए हम लोग मिल कर अपने अपने माबूदों की पूजा एक ही जगह अपने अपने तरीकों से किया करें, ताकि मुआशरे में जो ये नया फ़ितना खड़ा हुआ है, उसका सद्दे-बाब हो. इससे हम सब की भाई चारगी क़ायम रहेगी, सब के लिए अम्न ओ अमान रहेगा. 
बुत परस्तों (मुशरिकीन) की यह तजवीज़ माक़ूल थी जो आजकी जदीद क़द्रों की तरह ही माक़ूल है, मगर मुहम्मद को यह बात गवारा न हुई. यह पेश कश मुहम्मद को रास न आई क्यूँकि यह इनके तबअ से मेल नहीं खा रही थी. मुहम्मद को अम्न ओ अमान पसंद न था, इसनें जंग, लूट मार और शबख़ून कहाँ? वह तो अपने तरीकों को दुन्या पर लादना चाहते थे. अपनी रिसालत पर ख़तरा मसूस करते हुए उन्होंने अपने हरबे के मुताबिक़ अल्लाह की वह्यी उतरवाई, 
मंदार्जा ज़ेल सियासी आयतें मुलाहिज़ा हों- - - 

"आप कह दीजिए कि ऐ काफ़िरो! 
न मैं तुम्हारे माबूदों की परिस्तिश करता हूँ, 
और न तुम मेरे माबूदों की परिस्तिश करते हो, 
और न मैं तुम्हारे माबूदों की परिस्तिश करूँगा, 
और न तुम मेरे माबूद की परिस्तिश करोगे. 
तुमको तुम्हारा बदला मिलेगा और मुझको मेरा बदला मिलेगा." 
सूरह काफिरून 109 - आयत (1 -6 ) 

नमाज़ियो !
अल्लाह के पसे पर्दा उसका ख़ुद साख़ता रसूल अपने अल्लाह से अपनी मरज़ी उगलवा रहा है.. . . . 
आप कह दीजिए, जैसे कि नव टंकियों में होता है. 
अल्लाह को क्या क़बाहत है कि ख़ुद मंज़रे आम पर आकर ख़ुद अपनी बात कहे ? 
या ग़ैबी आवाज़ नाज़िल करे. इस क़दर हिकमत वाला अल्लाह क्या गूंगा है ?  कि आवाज़ के लिए उसे किसी बन्दे की ज़रुरत पड़ती है ? 
यह क़ुरआन  साज़ी मुहम्मद का एक ड्रामा है 
जिस पर तुम आँख बंद करके भरोसा करते हो. 
सोचो, लाखों सालों से क़ायम इस दुन्या में, हज़ारों साल से क़ायम इंसानी तहज़ीब में, क्या अल्लाह को सिर्फ़ 2 2  साल 4 महीने ही बोलने का मौक़ा मिला ?
कि वह शर्री मुहम्मद को चुन कर, तुम्हारी नमाज़ों के लिए क़ुरआन बका?
अगर आज कोई ऐसा अल्लाह का रसूल आए तो? 
उसके साथ तुम्हारा क्या सुलूक होगा?
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment