Friday 17 May 2019

सूरह अस्र - 103 = سورتہ العصر

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह अस्र - 103 = سورتہ العصر
(वलअसरे  इन्नल इनसाना)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

"क़सम है ज़माने की,
कि इंसान बड़े ख़सारे में है,
मगर जो लोग ईमान लाए और उन्हों ने अच्छे कम किए 
और एक दूसरे को हक़ की फ़ह्माइश करते रहे 
और एक दूसरे को पाबंदी की फ़ह्माइश करते रहे"
सूरह  अस्र 103 आयत (103)

नमाज़ियो !
आज जदीद क़द्रें आ चुकी हैं कि 'बिन माँगी राय' मत दो, 
क़ुरआन कहता है," एक दूसरे को हक़ की फ़ह्माइश करते रहो"
हक़ नाहक़ इंसानी सोच पर मुनहसर करता है, 
जो तुम्हारे लिए हक़ का मुक़ाम रखता है, 
वह किसी दूसरे के लिए नाहाक़ हो सकता है. 
उसको अपनी नज़र्याती राय देकर, फ़र्द को महेज़ आप छेड़ते हैं, 
जो कि बिल आख़ीर तनाज़िए का सबब बन सकता है.
इन्हीं आयातों का असर है कि मुसलामानों में तबलीग़ का फैशन बन गया है 
और इसकी जमाअतें बन गई हैं. यही तबलीग़ (फ़ह्माइश) जब जब शिद्दत अख़्तियार करती है तो जान लेने और जान देने का सबब बन जाती है 
और इसकी जमाअतें तालिबानी हो जाती हैं.
इस्लाम हर पहलू से दुश्मने-इंसानियत है. 
अपनी नस्लों को इसके साए से बचाओ.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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