Sunday 19 May 2019

खेद है कि यह वेद है (58)

खेद  है  कि  यह  वेद  है  (58)

गाय के सामान आने वाली उषा के पश्चात् अध्वर्यु आदि की समिधाओं द्वारा अग्नि प्रज्वलित होते हैं.
अग्नि की शिखाएं महान हैं.
अग्नि विस्तृत शाखाओं वाले वृक्ष के सामान आकाश की ओर बढ़ते हैं .
पंचम मंडल सूक्त 1

पोंगा पंडित की उपमा देखिए प्रातः काल के मद्धम आगमन को गाय के आगमन से जोड़ता है. इसके आने के बाद यज्ञ में जलने वाली लकड़ियाँ प्रज्वलित होती हैं.
आग की लपटें महान है ?
कैसे??
यह लपटें विस्तृत शाखाओं वाले वृक्ष के सामान आकाश की ओर बढ़ती हैं .
बस मंत्र ख़त्म
पैसा हजम
हो गया मन्त्र पूरा.

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हे शोभन धन के स्वामी अग्नि !
तुम यज्ञ में महान एवं संतान युक्त धन के स्वामी हो.
हे बहुधन संपन्न अग्नि !
हमें अधिक मात्रा वाला, सुख कारक एवं कीर्ति दाता धन प्रदान करो.
तृतीय मंडल सूक्त 1 (6)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

पंडित जी देवों को मस्का मार रहे हैं, उनका गुनगान कर रहे हैं, अपने कल्पित देवों की महिमा उनको बतला रहे हैं. इसी तरह मुसलमान अपने तसव्वुर किए हुए अल्लाह को मुखातिब करता है, तू रहीम है, तू करीम है, तू हिकमत वाला है, तू मेरे लिए सब  कुछ कर सकता है. दोनों में फर्क इतना है कि यह सीधे अपने ख्याली अल्लाह से मुखातिब है  और वह देवों और मानव के दरमियाँ दलाल बैठाए हुए है.
दोनों अपने कल्पित शक्ति से बगैर मेहनत का फल मांग रहे हैं. कुदरत के बख्शे हुए हाथों की सलामती और उसमे बल की दुआ कोई नहीं मांग रहा.
अग्नि साहिबे-औलाद ? अर्थात "संतान युक्त "
कैसे हो सकता है कि आग के भी संतान हो ?
पंडित जी "रूपी" लगा लगा कर सब को रूप वान कर देते हैं.
न परिश्रम करते हैं न अपने नस्लों को परिश्रम की शिक्षा देते नज़र आते हैं.
कपटी कुटिल मनुवाद इन

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. अग्नि शब्द से संबोधन किसको ?? ओउम अग्निमीले पुरोहीतं ,यज्ञस्य देव मृत्विजम, होतारं रत्न धात्मम। ऋग वेद प्रथम मंडल प्रथम सूक्त, प्रथम मंत्र , कृपया अपनी सड़ी बुद्धि का इस्तेमाल मुत शायरी वाली किताब पर लगाये और अपने प्यारे अल्लाह की शोभा में लिखते रहे

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