Monday 27 May 2019

सूरह माऊन - 107 = سورتہ الماعوں

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह माऊन - 107 = سورتہ الماعوں 
(अरायतललज़ी योकज्ज़ेबो बिद्दीन)


ज़कात और नमाज़ का भूखा और प्यासा मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - - 
"क्या आपने ऐसे शख़्स  को नहीं देखा जो रोज़े-जज़ा को झुट्लाता है, 
सो वह शख़्स  है जो यतीम को धक्के देता है, 
वह मोहताज को खाना खिलने की तरग़ीब नहीं देता, 
सो ऐसे नमाजियों के लिए बड़ी ख़राबी है, 
जो अपनी नमाज़ को भुला बैठे हैं, 
जो ऐसे है कि रिया करी करते हैं, 
और ज़कात बिलकुल नहीं देते."
सूरह माऊन - 107 आयत (1-7)

देखो और समझो कि तुम्हारी नमाज़ों में झूट, मक्र, सियासत, नफ़रत, जेहालत, कुदूरत, ग़लाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढ़ने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. 
ये ज़बान ए ग़ैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, 
चाहे उसमे फ़ह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फ़ाज़, तौर तरीक़े और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, ग़र्क़ ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सज़ाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफ़रत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की ख़ैर  ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक़ में होगा.
नमाज़ियो ! 
मुहम्मद की सोहबत और साए में मुसलमान होकर रहने से बेहतर था 
कि इंसान आलम-ए-कुफ़्र में रहता. 
मुहम्मद हर मुसलमान के पीछे पड़े रहते थे, न ख़ुद कभी इत्मीनान से बैठे और न अपनी उम्मत को चैन से बैठने दिया.
इनके चमचे हर वक़्त इनके इशारे पर तलवार खींचे खड़े रहते थे 
"या रसूल्लिल्लाह ! हुक्म हो तो गर्दन उड़ा दूं" 
आज भी मुसलमानों को अपनी आक़बत पर ख़ुद एतमादी नहीं है. 
वह हमेशा ख़ुद को अल्लाह का मुजरिम और गुनाहगार ही माने रहता है. 
उसे अपने नेक आमाल पर कम और अल्लाह के करम पर ज़्यादः भरोसा रहता है. मुहम्मद की दहकाई हुई क़यामत की आग ने मुसलामानों की शख़्सियत कुशी कर रखी है. 
क़ुदरत की बख़्शी हुई तरंग को मुसलमानों से इस्लाम ने छीन लिया है.
नमाज़ियो ! सजदे से सर उठाकर अपनी नमाज़ की नियतों को तोड़ दो और ज़िदगी की रानाइयों पर भी एक नज़र डालो. ज़िन्दगी जीने की चीज़ है, 
इसे मुहम्मदी ज़ंजीरों से आज़ाद करो.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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