Monday 13 May 2019

सूरह क़ारिया - 101 = سورتہ القاریہ

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


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सूरह क़ारिया - 101 = سورتہ القاریہ
(अल्क़ारेअतो मल्क़ारेअतो)

यह क़ुरआन का तीसवाँ और आख़िरी पारा है. इसमें सूरतें ज़्यादः तर छोटी छोटी हैं जो नमाज़ियों को नमाज़ में ज़्यादः तर काम आती हैं. 
बच्चों को जब क़ुरआन शुरू कराई जाती है तो यही पारा पहला हो जाता है. इसमें 78 से लेकर114 सूरतें हैं जिनको (ब्रेकेट में लिखे ) उनके नाम से पहचान जा सकता है कि नमाज़ों में आप कौन सी सूरत पढ़ रहे हैं 
और ख़ास कर याद रखें कि क्या पढ़ रहे हैं.

एक बच्चे ने बाग़ में बैठे हुए कुछ बुजुर्गों से आकर पूछा कि 
क्या उनमें से कोई उसके एक सवाल का जवाब दे सकता है?
छोटा बच्चा था, लोगों ने उसकी दिलजोई की, बोले पूछो.
बच्चे ने कहा एक बिल्ली अपने बच्चे के साथ सड़क पार कर रही थी कि 
अचानक एक कार के नीचे आकर मर गई, मगर उसका बच्चा बच गया, 
बच्चे ने आकर अपनी माँ के कान में कुछ कहा और वहां से चला गया. 
आप लोगों में कोई बतलाए कि बच्चे ने अपनी माँ के कान में क्या कहा होगा ?
बुड्ढ़े अपनी अपनी समझ से उस बच्चे को बारी बारी जवाब देते रहा जिसे बच्चा ख़ारिज करता रहा. थक हर कर बुड्ढों ने कहा , अच्छा भाई  हारी, तुम ही बतलाओ क्या कहा होगा?
बच्चे ने कहा उसने अपनी माँ के कान में कहा था "मियाऊँ"
आलिमान दीन की चुनौती है कि क़ुरआन का सही मतलब समझना हर एक की बस की बात नहीं, वह ठीक ही समझते है कि मियाऊँ को कौन समझ सकता है? 
मुहम्मद के मियाऊँ का मतलब है "क़यामत ज़रूर आएगी"
देखिए कि उम्मी मुहम्मद सूरह में आयतों को सूखे पत्ते की तरह खड़खडाते हैं. 
सूखे पत्ते सिर्फ़ जलाने के काम आते हैं. 
वक़्त का तकाज़ा है कि सूखे पत्तों की तरह ही 
इन क़ुरआनी आयतों को जला दिया जाए - - - 

"वह खड़खड़ाने वाली चीज़ कैसी कुछ है, वह खड़खड़ाने वाली चीज़,
वह खड़खड़ाने वाली चीज़ कैसी कुछ है वह खड़खड़ाने वाली चीज़,
और आपको मालूम है कैसी कुछ है वह खड़खड़ाने वाली चीज़,
जिस रोज़ आदमी परेशान परवानों जैसे हो जाएगे.
और पहाड़ रंगीन धुनी हुई रूई की तरह हो जाएगे,
फिर जिस शख़्स  का पल्ला भरी होगा,
वह तो ख़ातिर ख़्वाह  आराम में होगा,
और जिसका पल्ला हल्का होगा,
तो उसका ठिकाना हाविया होगा,
और आपको मालूम है, वह हाविया क्या है?
वह एक दहक़ती हुई आग है."
सूरह अलक़ारिआ 101- आयत (1 -1 1 )

 नमाज़ियो !
इस सूरह को अपनी मादरी ज़बान में हिफ़्ज़ करो 
उसके बाद एक हफ़्ते तक अपनी नमाज़ों में मादरी ज़बान में पढ़ कर देखो, 
अगर तुम उस्तुवार पसंद हो तो तुम्हारे अन्दर एक नया नमाज़ी नमूदार होगा. 
वह मोमिन की राह तलाश करेगा, जहाँ सदाक़त और उस्तुवारी है.
नमाज़ के लिए जाना है तो ज़रूर जाओ, 
उस वक़्फ़े में वजूद की गहराई में उतरो, 
ख़ुद को तलाश करो. 
जब अपने आपको पा जाओगे तो वही तुम्हारा अल्लाह होगा. 
उसको संभालो और अपनी ज़िन्दगी का मक़सद तुम ख़ुद मुक़र्रर करो.
तुम्हें इन नमाज़ों के बदले 'मनन चिंतन' की ज़रुरत है. 
इस धरती पर आए हो तो इसके लिए ख़ुद को इसके हवाले करो, 
इसके हर जीव की ख़िदमत तुम्हारी ज़िन्दगी का मक़सद होना चाहिए, 
इसे कहते हैं ईमान, 
जो झूट का इस्तेमाल किसी भी हालत में न करे. 
तुम्हारे क़ुरआन में मुहम्मदी झूट का अंबार है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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