Sunday 19 July 2020

अल्लाह क्या है ?

अल्लाह क्या है ?            
   
अल्लाह एक वह्म, एक ग़ुमान है.
अल्लाह का कोई भी ऐसा वजूद नहीं जो मज़ाहिब बतलाते हैं.
अल्लाह एक अंदाजा है, एक अंदेशा नुमा खौ़फ़ है.
अल्लाह एक अक़ीदा है जो विरासत या ज़ेह्नी ग़ुलामी के मार्फ़त मिलता है.
अल्लाह हद्दे ज़ेहन है या अक़ली कमज़ोरी की अलामत है,
अल्लाह अवामी राय है या फिर दिल की चाहत,
कुछ लोगों की राय है कि 
अल्लाह कोई ताक़त है जिसे सुप्रीम पावर भी कह जाता है?
अल्लाह कुछ भी नहीं है. 
ग़ुनाह और बद आमाली कोई फ़ेल नहीं होता ?
अगर आपके फ़ेल से किसी का कोई नुक़सान न हो. 
इन बातों का यक़ीन करके अगर कोई शख़्स मौजूदा 
इंसानी क़द्रों से बग़ावत करता है तो वह 
बद आमाली की किसी हद के क़रीब सकता है.
ऐसे कमज़ोर इंसानों के लिए अल्लाह को मनवाना ज़रूरी है.
वैसे अल्लाह के मानने वाले भी ग़ुनहगारी की तमाम हदें पर कर जाते हैं.
बल्कि अल्लाह के यक़ीन का मुज़ाहिरा करने वाले और अल्लाह की 
अलम बरदारी करने वाले सौ फ़ीसद दर पर्दा बेज़मिर मुजरिम देखे गए हैं.
बेहतर होगा कि बच्चों को दीनी तअलीम देने की बजाय उन्हें  
अख़लाक़यात पढ़ाई जाए, 
वह भी जदीद तरीन इंसानी क़द्रें जो मुस्तक़बिल क़रीब में उनके लिए फ़ायदेमंद हों.
मुस्तक़बिल बईद में इंसानी क़द्रों के बदलते रहने के इमकानात हुवा करते है.
आजका सच कल झूट साबित हो सकता हैं, 
आजकी क़द्रें कल की ना क़दरी बन सकती है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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