Thursday 2 July 2020

शर्म से डूब मरो


शर्म से डूब मरो                 

एक थे बाबा इब्राहीम. 
यहूदियों, ईसाइयों, मुसलमानों 
(और शायद ब्रह्मा आविष्कारक आर्यन के भी) 
के मुश्तरका मूरिसे आला 
(मूल पुरुष) अब्राम, अब्राहम, इब्राहीम, ब्राहम. (और शायद ब्रह्म भी) 
बाबा इब्राहीम.
बहुत पुराना ज़माना था, अभी लौह युग भी नहीं आया था, 
हम उनका बाइबिल प्रचलित पहला नाम अब्राहम लिखते हैं कि 
वह पथर कटे क़बीले के ग़रीब बाप तेराह के बेटे थे, 
बाप तेराह बार बार बेटे अब्राहम से कहता कि 
बेटा! हिजरत करो, (विदेश जाना)
हिजरत में बरकत है, 
हो सकता है तुम को एक दिन वहाँ दूध और शहद वाला देश रहने को मिले. 
आख़िर एक दिन बाप तेराह की बात अब्राहम को लग ही गई, 
अब्राहम ने सामान ए सफ़र बांधा, 
जोरू सारा को और भतीजे लूत को साथ किया और तरके-वतन (खल्देइया) 
से बाहर निकला.
ख़ाके-ग़रीबुल वतनी छानते हुए मिस्र के बादशाह फ़िरअना के दरबार वह तीनो पहुँचे, 
माहौल का जायज़ा लिया. 
बादशाह ने दरबार आए मुसाफ़िरों को तलब किया, 
तीनों उसकी ख़िदमत में पेश हुए, 
अब्राहम ने सारा को अपनी बहन बतला कर 
ग़रीबुल वतनी से नजात पाने का हल तय किया, 
जबकि वह उसकी चचा ज़ाद बहन थी भी, 
सारा हसीन थी, बादशाह ने सारा को मन्ज़ूर ए नज़र बना कर 
अपने हरम में शामिल कर लिया.
एक मुद्दत के बाद जब यह राज़ खुला तो बादशाह ने अब्राहम की ख़बर ली 
मगर सारा की रिआयत से उसको कुछ माल मता देकर महल से बहार किया. 
उस माल मता से अब्राहम और लूत ने भेड़ पालन शुरू किया 
जिससे वह एक दिन मालदार चरवाहे बन गए. 
सारा को कोई औलाद न थी, 
उसने बच्चे की चाहत में अब्राहम की शादी अपनी मिसरी ख़ादिमा हाजरा से करा दी, जिससे इस्माईल पैदा हुआ, 
मगर इसके बाद ख़ुद सारा हामला हुई और उससे इस्हाक़ पैदा हुआ.
इसके बाद सारा और हाजरा में ऐसी महा भारत हुई कि 
अब्राहम को सारा की बात माननी पड़ी,  
वह हाजरा को उसके बच्चे इस्माइल के साथ बहुत दूर सेहरा बियाबान में छोड़ आया.

अब्राहम को उसके इलोही ने ख़्वाब में दिखलाया कि 
वह अपने छोटे बेटे इस्हाक़ की क़ुरबानी दे, 
वह इस्हाक़ को लेकर पहाड़ियों पर चला गया 
और आँख पर पट्टी बाँध कर उसे हलाल कर डाला 
मगर वह जब पट्टी आँख से उतारता है तो बच्चे की जगह मेंढा पाता है 
और इस्हाक़ सही सलामत सामने खड़ा होता है. (तौरात) 

मैं अब इस्लामी अक़ीदत से अबराम को '' हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम'' लिखूंगा 
जिनका सहारा लेकर मुहम्मद अपने दीन को दीने-इब्राहीमी कहते हैं.
सब से पहले, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीन जुर्म ख़ास - - - 
पहला जुर्म 
यह झूट कि उन्होंने अपनी बीवी सारा को बादशाह के सामने अपनी बहन बतलाया और उसको बादशाह की ख़ातिर हरम के हवाले किया.
दूसरा जुर्म 
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का दूसरा जुर्म कि अपनी बीवी हाजरा और बच्चे इस्माईल को दूर बिया बान सेहरा में मर जाने के छोड़ आए.
तीसरा जुर्म 
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर तीसरा जुर्म झूट का कि उन्हों ने अपने बेटे इस्हाक़ को हलाल किया था. 
दर असल उन्हों ने हलाल तो किया था मेंढे को ही मगर झूट की ऐसी बुन्याद डाली कि सदियों तक उस पर ख़ूनी जुर्म का अमल होता रहा.

ख़ुद मुहम्मद के दादा अब्दुल मुत्तलिब मनौती की बुन्याद पर मुहम्मद के बाप अब्दुल्ला को क़ुर्बान करने जा रहे थे मगर चाचाओं के आड़े आने पर सौ ऊँटों की क़ुर्बानी देकर अब्दुल्ला की जान बची. 
सोचिए कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के एक झूट पर हज़ारों सालों में कितनी जानें चली गई होंगी. 
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम झूट बोले, 
इस्हाक़ का मेंढा बन जाना ग़ैर फ़ितरी बात है, 
अगर अल्लाह मियाँ भी रूप धारण करके, आकर गवाही दें तो 
मेडिकल साइंस इस बात को नहीं मानेगी. 
अक़ीदा जलते तवे पर पैजामें जलाता रहे. 
ऐसे अरबी झूठे और मुजरिम पर हम नमाज़ों के बाद दरूद ओ सलाम भेजते हैं- - - 
अल्ला हुम्मा सल्ले . . . 
अर्थात 
''ऐ अल्लाह मुहम्मद और उनकी औलादों पर रहमत भेज जिस तरह तूने रहमत भेजी थी इब्राहीम और उनकी औलादों पर.बे शक तू तारीफ़ किया गया है, तू बुज़ुर्ग है."
मुसलमानों ! 
अपने बाप दादाओं के बारे में सोचो जिनको तुमने अपनी आँखों से देखा है कि उनहोंने किन किन मुसीबतों का सामना करके तुमको बड़ा किया है और उन बुजुगों को भी ज़ेहन में लाओ जिनका ख़ूने-अक़दस तुम्हारे रगों में दौड़ रहा है और जिनको तुमने देखा भी नहीं, हज़ारों साल पहले 
या फिर लाखों साल पहले 
कैसी कैसी मुसीबतों का सामना करते हुए 
तूफ़ानों से, सैलाबों से, दरिंदों से 
पहाड़ी खोह और जंगलों में रह कर तुमको बचाते हुए 
आज तक ज़िन्दा रक्खा है 
क्या तुम उनको फ़रामोश करके मुहम्मद की ग़ुम राहियों में पड़ गए हो ? 
अब्राहम की यहूदी नस्लों के लिए और अरबी क़ुरैशियों के लिए 
दिन में पाँच बार दरूद ओ सलाम भेजते हो? 
शर्म से डूब मरो. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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