Sunday 5 July 2020

क़ुदरत के क़ानून

क़ुदरत के क़ानून 

क़ुदरत के कुछ अटल क़ानून हैं. 
इसके कुछ अमल हैं और हर अमल का रद्दे अमल, 
इस सब का मुज़ाहिरा और नतीजा है सच, 
जिसे क़ुदरती सच भी कहा जा सकता है.
क़ुदरत का क़ानून है 2+2=4 इसके इस अंजाम 4 के सिवा 
न पौने चार हो सकता है न सवा चार. 
क़ुदरत जग जाहिर (ज़ाहिर) है और तुम्हारे सामने मौजूद है.
क़ुदरत को पूजने की कोई लाजिक नहीं हो सकती, कोई जवाज़ नहीं, 
मगर तुम इसको इससे हट कर पूजना चाहते हो, 
इस लिए होशियारों ने इसका ग़ायबाना बना दिया है. 
उन्हों ने क़ुदरत को माफ़ौक़ुल फ़ितरत (अलौकिक) शक्ल देकर 
अल्लाह और भगवन वग़ैरा बना दिया है. 
तुम्हारी चाहत की कमज़ोरी का फ़ायदा ये समाजी कव्वे उठाया करते है. 
तुम्हारे झूठे पैग़मबरों ने क़ुदरत की वल्दियत भी पैदा कर रखा है 
कि सब उसकी क़ुदरत है.  
दर असल दुन्या में हर चीज़ क़ुदरत की ही क़ुदरत है, 
जिसे समझाया जाता है कि इंसानी ज़ेहन रखने वाला, 
उस अल्लाह की क़ुदरत है.
क़ुदरत कहाँ कहती है कि तुम मुझको तस्लीम करो, पूजो और मुझसे डरो? 
क़ुदरत का कोई अल्लाह नहीं और अल्लाह की कोई क़ुदरत नहीं. 
दोनों का दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं. 
क़ुदरत ख़ालिक़ भी है और मख़लूक़ भी. 
वह मंसूर की माशूक भी है और राबिया बसरी का आशिक़ भी. 
भगवानों, रहमानों और शैतानों का उस के साथ दूर का भी रिश्ता नहीं है. 
देवी देवता और अवतार पयंबर तो उससे नज़रें भी नहीं मिला सकते. 
क़ुदरत के अवतार बने जो पयंबर हैं, सब झूटे हैं.
उसके मद्दे मुक़ाबिल खड़े हुए उसके खोजी हमारे साइंसटिस्ट हैं, 
जिनकी शान है उनकी फ़रमाए हुए मज़ामीन और उनके नतायज 
जो मख़लूक़ को सामान ए ज़िंदगी देते हैं. 
मजदूरों को मशीने देते है और किसानो को नई नई भरपूर फ़सलें. 
यही मेहनत कश इस कायनात को सजाने और संवारने में लगे हुए हैं. 
सच्चे फ़रिश्ते यही हैं.
तुम अपने गरेबान में मुँह डाल कर देखो कि कहीं तुम भी तो 
इन अल्लाह फ़रोशो के शिकार तो नहीं?
क़ुदरत को सही तौर पर समझ लेने के बाद, 
इसके हिसाब से ज़िंदगी बसर करना ही जीने का सलीक़ा है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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