Monday 15 October 2018

सूरह फ़ातिर-35 -سورتہ فاطر (क़िस्त -1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह फ़ातिर-35 -سورتہ فاطر
(क़िस्त -1) 

तारीख़ अरब के मुताबिक़ बाबा ए क़ौम  इब्राहीम के दो बेटे हुए  
इस्माईल और इसहाक़. 
छोटे इसहाक़ की औलादें बनी इस्राईल कहलाईं जिन्हें यहूदी भी कहा जाता है. इन में नामी गिरामी लोग पैदा हुए, मसलन यूफुफ़, मूसा, दाऊद, सुलेमान और ईसा वग़ैरह और पहली तारीख़ी किताब मूसा ने शुरू की तो उनके पैरो कारों ने साढ़े चार सौ सालों तक इसको मुरत्तब करने का सिलसिला क़ायम रखा. 
लौंडी जादे हाजरा (हैगर) पुत्र इस्माइल की औलादें इस नाम व से महरूम रहीं जिनमें मुहम्मद भी आते हैं. 
इस्माइलियों में हमेशा ये क़लक़ रहता कि काश हमारे यहाँ भी कोई पैग़मबर होता कि हम उसकी पैरवी करते. 
इन रवायती चर्चा मुहम्मद के दिल में गाँठ की तरह बन्ध गई कि क़ौम में पैग़ामरी की जगह ख़ाली है.
मदीने की एक उम्र दराज़ बेवा मालदार ख़ातून ख़दीजा ने मुहम्मद को अपने साथ निकाह की पेश काश की. वह फ़ौरन राज़ी हो गए कि बकरियों की चरवाही से उन्हें छुट्टी मिली और आराम के साथ रोटी का ज़रीया मिला. 
इस राहत के बाद वह रोटियाँ बांध कर ग़ार ए हिरा में जाते और अल्लाह का रसूल बन्ने का ख़ाका तैयार करते.
इस दौरान उनको जिंसी तकाजों का सामान भी मिल गया था और छह अदद बच्चे भी हो गए, साथ में ग़ार ए हिरा में आराम और प्लानिंग का मौक़ा भी मिलता कि रिसालत की शुरूवात कब की जाए, कैसे की जाए, 
आगाज़, हंगाम और अंजाम की कशमकश में आख़िर कार एक रोज़ फैसला ले ही लिया कि गोली मारो सदाक़त, सराफ़त और दीगर इंसानी क़दरों को. ख़ारजी तौर पर समाज में वह अपना मुक़ाम जितना बना चुके हैं, वही काफ़ी है.
एक दिन उन्हों ने अपने इरादे को अमली जामा पहनाने का फैसला कर ही डाला. अपने क़बीले क़ुरैश को एक मैदान में इकठ्ठा किया, 
भूमिका बनाते हुए उन्हों ने अपने बारे में लोगों की राय तलब की, 
लोगों ने कहा तुम औसत दर्जे के इंसान हो कोई बुराई नज़र नहीं आती, सच्चे, ईमान दार, अमानत और साबिर तबा शख़्स हो. 
मुहम्मद  ने पूछा अगर मैं कहूँ कि इस पहाड़ी के पीछे एक फ़ौज आ चुकी है, तो यक़ीन कर लोगे? 
लोगों ने कहा कर सकते हैं इसके बाद मुहम्मद ने कहा - - -
मुझे अल्लाह ने अपना रसूल चुना है.
ये सुन कर क़बीला भड़क उट्ठा. 
कहा तुम में कोई ऐसे आसार, ऐसी ख़ूबी और अज़मत नहीं कि तुम जैसे जाहिल गँवार को अल्लाह पयंबरी के लिए चुनता फिरे.
मुहम्मद के चाचा अबू लहेब बोले,
 "माटी मिले, तूने इस लिए हम लोगों को यहाँ बुलाया था? 
सब के सब मुँह फेर कर चले गए. 
मुहम्मद की इस हरकत और जिसारत से क़ुरैशियों  को बहुत तकलीफ़ पहुंची मगर मुहम्मद मैदान में कूद पड़े तो पीछे मुड कर न देखा.
बाद में वह क़ुरैशियों के बा असर लोगों से मिलते रहे और समझाते रहे 
कि अगर तुमने मुझे पैग़मबर मान लिया और मैं कामयाब हो गया तो तुम बाक़ी क़बीलों में बरतर होगे, 
मक्का ज़माने में बरतर होगा 
और अगर नाकाम हुवा तो ख़तरा सिर्फ़ मेरी जान को होगा. 
इस कामयाबी के बाद, बदहाल मक्कियों को हमेशा हमेश के लिए रोटी सोज़ी का सहारा मिल जाएगा.
मगर क़ुरैश अपने माबूदों (पूज्य) को तर्क करके मुहम्मद को अपना माबूद बनाए जाने को तैयार न हुए.

इस हक़ीक़त के बाद क़ुरआन की आयातों को परखें.

"तमाम तर हम्द अल्लाह तअला को लायक़ है जो आसमानों और ज़मीनों को पैदा करने वाला है. जो फ़रिश्तों को पैग़ाम रसा बनाने वाला है, जिनके दो दो तीन तीन और चार चार पर दार बाजू हैं, जो पैदाइश में जो चाहे ज़्यादः कर देता है. बे शक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (1)

तमाम हम्द उन हस्तियों की होनी चाहिए जिनहों ने इंसान और इंसानियत के किए कुछ किया हो. 
जो मुसबत ईजादों के मूजिद हों. 
उन पर लअनतें हों जिन्हों ने इंसानी ख़ून से नहाया हो .
ईसाइयों के फ़रिश्ते न नर होते हैं न नारी और उनका कोई जिन्स भी नहीं होता, अलबत्ता छातियाँ होती हैं जिस को मुहम्मदी अल्लाह कहता है ये लोग तब मौजूद थे जब वह पैदा हुए कि उनको औरत बतलाते हैं. 
तअने देता है कि अपने लिए तो बेटा और अल्लाह के लिए बेटी?
मुहम्मद हर मान्यता का धर्म का विरोध करते हुए अपनी बात ऊपर रखते हैं, चाहे वह कितनी भी धांधली ही क्यूं न हो. 
ख़ुद फ़रिश्तों के बाज़ू गिना रहे हैं, जैसे अपनी आँखों से देखा हो. 

"अल्लाह जो रहमत लोगों के लिए खोल दे, सिवाए इसके कोई बंद करने वाला नहीं और जिसको बंद कर दे, सो इसके बाद इसको कोई जारी करने वाला नहीं - - - ए लोगो ! तुम पे जो अल्लाह के एहसान हैं, इसको याद करो, क्या अल्लाह के सिवा कोई ख़ालिक़ है जो तुमको ज़मीन और आसमान से रिज़्क पहुँचाता हो. इसके सिवा कोई लायक़-इबादत नहीं. अगर ये लोग आप को झुट्लाएंगे तो आप ग़म न करें क्यूंकि आप से पहले भी बहुत से पैग़ामबर झुट्लाए जा चुके हैं."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (2-4)

अभी तक कोई अल्लाह खोजा नहीं जा सका, 
दुन्या को वजूद में आए लाखों बरस हो गए. 
अगर वह मुहम्मदी अल्लाह है तो निहायत टुच्चा है, 
जिसे नमाज़ रोज़ों की शदीद ज़रुरत है. 
किसी भी इंसान पर वह एहसान नहीं करता बल्कि ज़ुल्म ज़रूर करता है 
कि आज़ाद रूह किसी पैकर के ज़द में आकर ज़िन्दगी पर थोपी गई मुसीबतें झेलता है. 

"ए लोगो! अल्लाह का वादा ज़रूर सच्चा है, सो ऐसा न हो कि ये दुन्यावी ज़िन्दगी तुम्हें धोके में डाल रखे और ऐसा न हो कि तुम्हें धोकेबाज़ शैतान अल्लाह से धोके में डाल दे. ये शैतान बेशक तुम्हारा दुश्मन है, सो तुम इसको दुश्मन समझते रहो. वह तो गिरोह को महेज़ इस लिए बुलाता है कि वह दोंनों दोज़खियों में शामिल हो जाएँ."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (5-6)

अल्लाह और शैतान दोनों ही इन्सान को दोज़ख़ में डालने का बेड़ा उठाए हुए हैं. शैतान लड़ता है कि अल्लाह इंसानों का दुश्मन नंबर वन है, 
तभी तो किसी वरदान की तरह दोज़ख़ रसीदा करने का वादा करता है,
ऐसे अल्लाह को जूते मार कर घर (दिल) से बाहर करिए, 
और शैतान नंबर दो को समझने की कोशिश करिए 
जिसकी बकवास ये क़ुरआन है.
उम्मी फ़रमाते हैं "धोकेबाज़ शैतान अल्लाह से धोके में डाल दे."
मुतराज्जिम अल्लाह की इस्लाह करते हैं.

कलामे दीगराँ - - -
"जन्नत और दोज़ख़ दोनों इंसान के दिल में होते हैं."
"शिन्तो"
  जापानी पयम्बर   
इसे कहते हैं कलाम पाक 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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