Monday 29 October 2018

सूरह यासीन-36 -سورتہ یاسین (क़िस्त - 2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह यासीन-36 -سورتہ یاسین
(क़िस्त - 2)

"हम ने एक कश्ती पर लोगों को सवार किया और वह पानी को चीरती हुई रवाँ हो गई. हम चाहते तो इसे पानी में ग़र्क़ कर देते और वह सब के सब मर जाते, मगर जब वह मंज़िल पर बा हिफाज़त आ जाते हैं तो तब भी हमारी क़ुदरत के क़ायल नहीं होते."
सूरह यासीन -36 आयत (43)

अल्लाह के मुंह से ऐसी घटिया बातें ? 
यह तो किसी कम ज़र्फ़ इंसान की ही लगती हैं.
ये इस्लाम की कागज़ की कश्ती है जिस पर मुसलमान सवार हुए हैं, 
हर वक़्त ख़ौफ़-ख़ुदा में मुब्तिला रहते है.

"और जब कहा जाता है कि अल्लाह ने तुम को जो कुछ दिया है उसमें से कुछ ख़र्च क्यूं नहीं करते, तो कुफ़्फ़ार मुसलमानों से कहते हैं कि क्या हम ऐसे लोगों को खाने  को दें जिनको कि अगर अल्लाह चाहे तो बेहतर खाना दे दे."
सूरह यासीन -36 आयत (47)

यह आयत गवाह है कि इस्लाम का शुरूआती दौर ख़ैरात खो़रों का हुवा करता था.
कुफ़्फ़ार का बेहतर जवाब था उस वक़्त के उभरते इस्लामी गुंडों को.
आज भी ये मज़हबी ऊधम के लिए चंदा उन्हीं से वसूलते हैं 
जिनकी रातें ग़ारत करते है.

"ये लोग कहते हैं कि ये वादा कब पूरा होगा (अल्लाह के क़यामत का वादा) अगर तुम सच्चे हो? ये लोग बस एक आवाज़ सख़्त   के मुन्तज़िर हैं, जो इन को आलेगी और ये सब बाहम लड़ते रहे होंगे. सो न वासीअत करने की फ़ुर्सत होगी न अपने घर वालों के पास लौट कर वापस जा सकेगे. और तब सूर फूँका जायगा और व सब क़ब्रों से निकल कर अपने रब की तरफ़ जल्दी जल्दी चलने लगेंगे. कहेगे कि हाय हमारी कम बख्ती! हम को हमारी क़ब्रों से किसी ने उठाया, ये वही है जिसका रहमान ने वादा किया था और पैग़मबर सच कहते थे."
सूरह यासीन -36 आयत (49-52)

कई बार  क़ुरआन में ये बात आती है लोग पूछते हैं कि 
"ये वादा कब पूरा होगा".
इसकी सच्चाई ये है कि लोग उस वक़्त मुहम्मद की चिढ़ बनाए हुए थे 
मियाँ  'क़यामत कब आएगी? 
वो वादा कब पूरा होगा?- - - "
ये सुनने के लिए कि देखें, इस बार दीवाने ने क़यामत का ख़ाका क्या तैयार किया है.
अफ़सोस कि पागल दीवाने की वह बड़ बड़ आज मुसलमानों की क़िस्मत बन चुकी है.

"फिर उस दिन किसी पर ज़रा ज़ुल्म न होगा, तुमको बस उन्हीं कामों का बदला मिलेगा जो तुमने किए थे. अहले जन्नत बे शक उस दिन अपने मशग़लों में ख़ुश दिल होंगे. वह और उनकी बीवियाँ सायों में, मसह्रियों पर तकिया लगाए बैठे होंगे. इनके लिए वहाँ पर मेवे होंगे और जो कुछ माँगेंगे मिलेगा. और इनको परवर दिगार मेहरबान की तरफ़ से सलाम फ़रमाएगा."
सूरह यासीन -36 आयत (53-58)

लअनत भेजिए उस जन्नत पर जिसमें आदमी हाथों पर हाथ धरे मसेह्रियों पर बैठा रहे. 
उस तवील ज़िन्दगी को जीने का न कोई मक़सद हो न उसकी मंज़िल.

"सो क्या तुम नहीं समझते ये जहन्नम है जिसका तुमसे वादा किया जाया करता था, आज अपने कुफ़्र के बदले इसमें दाख़िल हो जाओ. आज हम उनके मुँह पर मोहर लगा देंगे, आज उनके हाथ हम से कलाम करेंगे और उनके पाँव शहादत देंगे, जो कुछ लोग करते थे और अगर हम चाहते तो उनकी आँखों को हम मालिया मेट कर देते तो वह रस्ते की तरफ़ दौड़ते फिरते सो उनको कहाँ नज़र आता."
सूरह यासीन -36 आयत (53-58)

हाथ और पाँव कलाम करेंगे और गवाही देंगे, 
इसकी ज़रुरत क्या होगी जब अल्लाह ने मुँह दे रक्खा है? 
अल्लाह अगर चाहता तो " उनकी आँखों को हम मालिया मेट कर देते तो वह रस्ते की तरफ़ दौड़ते फिरते सो उनको कहाँ नज़र आता." 
सजा यहीं तक होती तो बेहतर होता.

"और हम जिसको उम्र ज़्यादः दे देते हैं उसको तबई हालत में उल्टा कर देते हैं, सो क्या लोग नहीं समझते."
सूरह यासीन -36 आयत (68)

मुहम्मद आयतें चुकरने से पहले अगर सोच लिया करते तो क़ुरआन बहुत मुख़्तसर हो जाता और उनकी उम्मत के लिए बात बात पर रुसवा न होना पड़ता.
कह रहे हैं कि उम्र दराज़ी अल्लाह अज़ाबियों को देता है जब कि लोग उससे उम्र दराज़ करने की दुआ मांगते हैं. 
उलटी सीढ़ी बातों का यह क़ुरआन.

"और हम ने आप को शायरी का इल्म नहीं दिया है और आपके लिए शायाने शान भी नहीं है. वह तो महेज़ नसीहत है. और आसमानी किताब है जो एहकाम को ज़ाहिर करने वाली है, ताकि ऐसे लोगों को डरावे जो ज़िंदा होऔर ताकि काफ़िरों पर हुज्जत साबित हो जाए."
सूरह यासीन -36 आयत  (69-70)

शायर तो तुम थे ही ये उस वक़्त का इतिहास बतलाता है, 
शायर नहीं बल्कि मुत-शायर (अधूरे शायर) 
पूरी कि पूरी क़ुरआन गवाह है इस बात की. 
तुम्हारी तलवार ने तुम्हारी मुत-शायरी को क़ुरआन बना दिया.

"क्या आदमी को मालूम नहीं कि हम ने उसको नुतफ़े से पैदा किया तो वह एलानिया एतराज़ पैदा करने लगा और उसने हमारी शान में एक अजीब मज़मून बयान किया और अपने असल को भूल गया. कहता है हड्डियों को जब वह बोसीदा हो गईं, कौन ज़िन्दा करेगा? जवाब दे दीजिए कि उनको ज़िंदा करेगा, जिसने अव्वल बार में इसको पैदा किया हैऔर वह सब तरह का पैदा करना जानता है."
सूरह यासीन -36 आयत (78-79)

कौन कमबख़् त आदमी कहता है कि वह अपने बाप के नुतफ़े से नहीं, अलबत्ता तुम जैसे बने रसूल ज़रूर इस से परे दिखलाई देते हो. 
अजीब मज़मून तुम्हारा सुर्रा है कि इंसान क़ब्रों से उठ पडेगा.

''जब वह किसी चीज़ को पैदा करना चाहता है तो उसका मामूल तो ये है कि उस चीज़ को कह देता है,'' हो जा'', वह हो जाती है."
सूरह यासीन -36 आयत (83)

बस कि मुसलमान पैदा करने में नाकाम हो रहा है अल्लाह. 
उसका मामूल तो ये है .
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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