Monday 1 October 2018

Soorah Sajda 32 Full

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह सजदा-32
(मुकम्मल)

"अलिफ़ लाम मीम"
सूरह सजदा-32आयत (1)
(मुहम्मदी अल्लाह का छू मंतर.)

"ये नाज़िल की हुई किताब है. इस में कुछ शुबहा नहीं कि ये रब्बुल आलमीन की तरफ़ से है."

अल्लाह बने हुए मुहम्मद का नज़ला है जो मुसलमानों को मरीज़ बनाए हुए है. रब्बुल आलमीन जो बे सर पैर की अहमक़ाना बातें करता है.

"वह आसमान से लेकर ज़मीन तक हर अम्र की तदबीर करता है. - - -

अल्लाह तदबीर यानी जतन  करता है ? 
पहले आप इसी क़ुरआनमें कह चुके हैं कि अल्लाह को जो काम करना होता है, वह बस "कुन" (हो जा) कहता है, बस वह "फ़याकून" (हो गया) हो जाता है.  दरोग़ आमोज़ याद दाश्त  न दारद 
(झूठे की याद दाश्त कमज़ोर होती है). 
आप निहायत बे शर्मी से अपने कलाम में तज़ाद (विरोध भास्) रखते हैं. 

फिर हर अम्र उसी के हुज़ूर में पहुँच जाएगा - - ,-

कहाँ स्टाक करता होगा इंसान के सारे कर्मों को?
एक दिन, दिन में जिसकी मिक़दार तुम्हारे शुमार के मुवाफ़िक़ एक हज़ार बरस होगी - - -
ये पुडिया छोड़े हुए एक हज़ार बरस से ज़्यादः हो गए आपको, 
और मुसलमान उसे अभी तक खोल नहीं पाए . 
ख़ुदा करे कि उनको अक़्ल-सलीम आए. 
वह समझ सकें कि उनको इस्लाम बरबाद किए हुए है.

वही है जानने वाला पोशीदा और ज़ाहिर चीजों का, ज़बर दस्त रहमत वाला है- - -
मगर इतना नहीं जानता कि अंडे में पोशीदा जान होती है जिसे वह कहता है कि "बेजान से जानदार निकलता है "

 उसने जो चीज़ बनाई ख़ूब बनाई - - -

जैसे तूफ़ान, ज़लज़ला, बीमारी आज़ारी, भूक, क़त्ल व् ग़ारत गरी, 
आप की पसंदीदा गिज़ा जिसका मज़ा जैशे-मुहम्मद, अल्क़ायदा, 
और तालिबान आज तक ले रहे हैं.

और इंसान की पैदाइश मिटटी से शुरू की, फिर इसकी नस्ल को ख़ुलासा एख़्तेलात (यौन सम्बन्ध) यानी एक बे क़द्र पानी से बनाया - - -

मुसलमानी से वह पानी निकलता है, जिससे मुसलमान होते हैं. 
बेश क़ीमती पानी (बीज) को बेक़द्र बना दिया जिसके दम पर आपने 11-11 बीवियां रखीं. 
और लौंडियाँ अलग से.

फिर इसके आज़ा दुरुत किए और इसमें अपनी रूह फूंकी - - -

अगर अल्लाह इंसानी आज़ा दुरुत न करता तो ? 
मछलियों के आज़ा दुरुत नहीं हैं तो भी व इकोरियम की ज़ीनत बनी हुई हैं.
और तुम को कान आँख और दिल दी, तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो."
सूरह सजदा-32आयत (3-9)

बस इतना ही आप जानते हैं? 
हाथ, पाँव, मुंह, कान, नाक जैसे हज़ारो आज़ा इंसानी जिस्म में मौजूद है. 
हाँ इंसानों को भेजा भी दिया है, शायद मुसलमानों को देना भूल गया.

"और अगर देखें तो अजब हाल देखेंगे कि क़यामत के दिन काफ़िर लोग अपने रब के सामने सर झुकाए खड़े होंगे कि ऐ मेरे परवर दिगार! कि मेरी आँखें और कान खुल गए हैं कि हम को फिर ज़मीन पर भेज दीजिए कि हम नेक काम किया करें, हम को पूरा यक़ीन आ गया है- - -"

क़यामत का यक़ीन ही मुसलमानों का सत्या नास किए हुए है.
 "और अगर हम को मंज़ूर होता तो हम हर शख़्स को यही रास्ता अता फ़रमाते लेकिन मेरी ये बात मुहक़्क़िक़ हो चुकी है कि हम जहन्नम को जिन्नात और इंसान दोनों से भर दूंगा."

अल्लाह काफ़िरों को जवाब देगा कि उसे अपने फ़ैसले में रद्दो-बदल मंज़ूर नहीं क्यूँकि इसकी तहक़ीक़ हो चुकी है?  
ग़ौर करें कि अल्लाह इसी एक जुमले में पहले जमा (बहु वचन) में है बाद में वाहिद (एक वचन) हो गया है. ये लग्ज़िशें क़ुरआन में आम है जो मुहम्मद के अन पढ़ होने की दलील है.
सूरह सजदा-32आयत (13)

"बस कि हमारी आयातों पर लोग ईमान लाते हैं कि उनको जब वह आयतें याद दिलाई जाती हैं तो वह सजदे में गिर पड़ते हैं और अपने रब की तस्बीह व् तमहीद करने लगते हैं और वह लोग तकब्बुर नहीं करते"
सूरह सजदा-32आयत (15)

मुहम्मद अल्लाह बनने की मुहिम में सरगर्म हैं, वह चाहते हैं कि ज़माना उनकी बातों पर इतना यक़ीन करने लगे कि उनको सजदा करे. 
आज भी ऐसे ख़ुद साख़ता वली देखे जा सकते हैं.    
        
"और इस शख़्स से ज़्यादा ज़ालिम कौन  होगा जिसको इसके रब की आयतें याद दिलाई जाएँ, फिर ये इस से मुँह फेरे. हम ऐसे मुजरिमों से बदला लेंगे."
मुहम्मदी अल्लाह को ये बात ज़ुल्म लगती है कि कोई उसकी बात को न माने. काश कि इस पर कभी कोई मुहम्मद पर ज़ुल्म करता तो वह ज़ुल्म के मअनी समझ जाते.
सूरह सजदा-32आयत (22)

"और वह लोग कहते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो ये ( क़यामत) कब होगा ? आप फ़रमा दीजिए कि इस फ़ैसले के दिन काफ़िरों का ईमान लाना नफ़ा बख़्श न होगा.और इनको मोहलत भी न मिलेगी"
सूरह सजदा-32आयत (30)
अय्यारी और झूट का पुलिंदा है ये क़ुरआन. 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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