Thursday 25 October 2018

सूरह फ़ातिर -35 (क़िस्त - 3)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह फ़ातिर -35 
(क़िस्त - 3)  

अल्लाह क़ुरआन में बकता है कि - - -
"आप तो सिर्फ़ डराने वाले हैं, हमने ही आपको हक़ देकर ख़ुश ख़बरी सुनाने वाला और डराने वाला भेजा है. और कोई उम्मत ऐसी नहीं हुई जिसमे कोई डर सुनाने वाला नहो."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (24)

या अल्लाह अब डराना बंद कर कि हम सिने बलूग़त को पहुँच चुके हैं.
डराने वाला, डराने वाला, पूरा  क़ुरआन डराने वाला से भरा हुवा है. 
पढ़ पढ़ कर होंट घिस गए है. क्या जाहिलों की टोली में कोई न था 
कि उसको बतलाता कि डराने वाला बहरूपिया होता है. 
'आगाह करना' होता है जो तुम कहना चाहते हो.
मुजरिम अल्लाह के रसूल ने, 
इंसानों की एक बड़ी तादाद को डरपोक बना दिया है, 
या तो फिर समाज का गुन्डा.

"वह बाग़ात में हमेशा रहने के लिए जिसमे यह दाख़िल होंगे, इनको सोने का कंगन और मोती पहनाए जाएँगे और पोशाक वहाँ इनकी रेशम की होगी और कहेंगे कि अल्लाह का लाख शुक्र है जिसने हम से ये ग़म दूर किए. बेशक हमारा परवर दिगार बड़ा बख़्श  ने वाला है."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (33-34)

सोने के कँगन होंगे, हीरों के जड़ाऊ हार, मोतियों के झुमके और चांदी की पायल जिसको पहन कर जन्नती छमा छम नाचेंगे, 
क्यूँ कि वहाँ औरतें तो होंगी नहीं.

"और जो लोग काफ़िर है उनके लिए दोज़ख़ की आग है. न तो उनको क़ज़ा आएगी कि मर ही जाएँ और न ही दोज़ख़ का अज़ाब उन पर कम होगा. हम हर काफ़िर को ऐसी सज़ा देते हैं और वह लोग चिल्लाएँगे कि ए मेरे परवर दिगार! हमको निकाल लीजिए, हम अच्छे काम करेंगे, ख़िलाफ़ उन कामों के जो किया करते थे. क्या हमने तुम को इतनी उम्र नहीं दी थी कि जिसको समझना होता समझ सकता और तुम्हारे पास डराने वाला नहीं पहुँचा था? तो तुम मज़े चक्खो, ऐसे ज़ालिमों का मदद गार कोई न होगा."
सूरह फ़ातिर -35 आयत  (36-37)

ऐसी आयतें बार बार  क़ुरआन में आई हैं, आप बार बार ग़ौर करिए कि मुहम्मदी अल्लाह कितना बड़ा ज़ालिम है कि उसकी इंसानी दुश्मन फ़रमानों को न मानने वालों का हश्र क्या होगा? माँगे मौत भी न मिलेगी और काफ़िर अन्त हीन काल तक जलता और तड़पता रहेगा. 
मुसलमान याद रखें कि अल्लाह के अच्छे कामों का मतलब है उसकी गुलामी बेरूह नमाज़ी इबादत है और उसे पढ़ते रहने से कोई फिकरे इर्तेक़ा या फिकरे- नव  दिमाग में दाख़िल ही नहीं हो सकती और ज़कात की भरपाई से क़ौम  भिखारी की भिखारी बनी रहेगी और हज से अहले-मक्का की परवरिश होती रहेगी.
मुसलमानों कुछ तो सोचो अगर मुझको ग़लत समझते हो तो क़ुदरत ने तुम्हें दिलो दिमाग़ दिया है. 
इस्लाम मुहम्मद की मकरूह सियासत के सिवा कुछ भी नहीं है.

"आप कहिए कि तुम अपने क़रार दाद शरीकों के नाम तो बतलाओ जिन को तुम अल्लाह के सिवा पूजा करते हो? या हमने उनको कोई किताब भी दी है? कि ये उसकी किसी दलील पर क़ायम हों. बल्कि ये ज़ालिम एक दूसरे निरी धोका का वादा कर आए हैं."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (40)

और आप भी तो लोगों के साथ निरी धोका कर रहे हैं, 
अल्लाह के शरीक नहीं, दर पर्दा अल्लाह बन गए हैं, 
इस गढ़ी हुई क़ुरआन को अल्लाह की किताब बतला कर क़ुदरत को पामाल किए हुए हैं. इसकी हर दलील कठ मुललई की क़ाबित है.

"और इन कुफ़्फ़ार (क़ुरैश) ने बड़े ज़ोर की क़सम खाई थी कि इनके पास कोई डराने वाला आवे तो हम हर उम्मत से ज़्यादः हिदायत क़ुबूल करने वाले होंगे, फिर इनके पास जब एक पैगंबर आ पहुंचे तो बस इनकी नफ़रत को ही तरक़्क़ी हुई - - - सो क्या ये इसी दस्तूर के मुन्तज़िर हैं जो अगले काफ़िरों के साथ होता रहा है, सो आप कभी अल्लाह के दस्तूर को बदलता हुवा न पाएँगे. और आप अल्लाह के दस्तूर को मुन्तक़िल होता हुवा न पाएँगे."

सूरह अहज़ाब में अल्लाह ने वह आयतें मौक़ूफ़ (स्थगित करना या मुल्तवी करना) कर दिया था और मुहम्मद ने कहा था कि उसको अख़्तियार है कि वह जो चाहे करे. 
पहली आयत में अल्लाह का दस्तूर ये था कि बहू या मुँह बोली बहू के साथ निकाह हराम है, फिर वह आयतें मौक़ूफ़ हो गईं. नई आयतों में अल्लह ने मुँह बोली बहू के साथ निकाह को इस लिए जायज़ क़रार दिया ताकि मुसलमानों पर इसकी तंगी ना रहे. मुहम्मदी अल्लाह का मुँह है या जिस्म का दूसरा खंदक ? 
वह कहता है कि "और आप अल्लाह के दस्तूर को मुन्तक़िल होता हुवा न पाएँगे." अल्लाह ने अपना दस्तूर फर्जी फ़रिश्ते जिब्रील के मुँह में डाला, 
जिब्रील मुहम्मद के मुँह में उगला और मुहम्मद इस दस्तूर को मुसलमानों के कानों में टपकाते हैं.

मुसलमानों! मोमिन को समझो, परखो, तोलो,खंगालो, फटको और पछोरो  
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है 
चमन में जाके होता है कोई तब दीदा वर पैदा.
मेरी इस जिसारत की क़द्र करो. इस्लामी दुन्या कानों में रूई ठूँसे बैठी है,
हराम के जने कुत्ते ओलिमा तुम्हें ज़िंदा दरगोर किए हुवे हैं,
तुम में सच बोलने और  सच सुनने की सलाहियत ख़त्म हो गई है.
तुमको इन गुन्डे आलिमो ने नामर्द बना दिया है.
जिसारत करके मेरी हौसला अफ़ज़ाई  करो जो तुम्हारा शुभ चिन्तक और ख़ैर ख्वाह है.
मैं मोमिन हूँ और मेरा मसलक ईमान दारी है,
इस्लाम अपनी शर्तों को तस्लीम कराता है जिसमें ईमान रुसवा होता है,
मेरे ब्लॉग पर अपनी राय भेजो भले ही गुमनाम हो.
 अगर मेरी बातों में कुछ सदाक़त पाते हो तो.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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