Wednesday 31 October 2018

सूरह साफ़्फ़ात-37 - سورتہ الصافات Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
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सूरह साफ़्फ़ात-37 - سورتہ الصافات
क़िस्त -1


मुसलमानों को क़समें ख़ाने  की कुछ ज़्यादः ही आदत है,

 जो कि इसे विरासत में इस्लाम से मिली है. 
मुहम्मदी अल्लाह भी क़स्में ख़ाने  में पेश पेश है और इसकी क़समें अजीबो ग़रीब है. उसके बन्दे उसकी क़सम खाते हैं, तो अल्लाह जवाब में इनकी क़समें खाता है, मजबूर है कि उससे बड़ा कोई है नहीं कि जिसकी क़समें खा कर वह अपने बन्दों को यक़ीन दिला सके, 
उसके कोई माँ बाप नहीं कि जिनको क़ुरबान कर सके. 
इस लिए वह अपने मख़लूक़ और तख़लीक़ की क़समें खाता है. 
क़समें झूट के तराजू में पासांग (पसंघा) का काम करती हैं वर्ना 
ना का मतलब ना और हाँ का मतलब हाँ ही इंसान की क़समें होनी चाहिए. 
अल्लाह हर चीज़ का ख़ालिक़ है, सब चीज़ें उसकी तख़लीक़ है, 
जैसे कुम्हार की तख़लीक़ माटी के बने हांड़ी,कूंडे वग़ैरह हैं, 
अब ऐसे में कोई कुम्हार अगर अपनी हांड़ी और कूंडे की क़समें खाए तो कैसा लगेगा? 
और वह टूट जाएँ तो मुज़ायक़ा नहीं, कौन  इसकी सज़ा देने वाला है.
 क़ुरआन माटी की हांड़ी से ज़्यादः है भी कुछ नहीं.

 देखिए कि इस सूरह में मुहम्मद अल्लाह का रूप धारण करके क्या कहते हैं- - - 


"क़सम है उन फ़रिश्तों की जो सफ़ बांधे खड़े रहते हैं. फिर उन फ़रितों की जो बंदिश करने वाले हैं. फिर उन फ़रिश्तों की जो ज़िक्र की तिलावत करने वाले हैं. कि तुम्हारा माबूद (साध्य) एक है. वह परवर दिगार है, आसमानों और ज़मीन का. और जो कुछ उसके दरमियान है.

और परवर दिगार का है, तुलूअ करने वाले मवाक़े का,
हमीं ने रौनक दी है उस तरफ़ वाले आसमान को, एक अजीब आराइश के साथ और हिफ़ाज़त भी की है, हर शरीर शैतान से.
 और शयातीन आलमे-बाला की तरफ़ कान भी नहीं लगा सकते और हर तरफ़ मार धक्याय जाते हैं और उनके लिए दायमी अज़ाब होगा.
मगर जो शैतान कुछ ख़बर ले ही भागते हैं तो एक दहक़ता हुवा शोला उन्हें उनके पीछे लग लेता है."
सूरह साफ़्फ़ात -37 आयत (1-10)


क़ुरआन में क़स्मों का सिलसिला शुरू हो गया है जो हैरतनाकी तक पहुँचेगा. 

अल्लाह उन फ़रिश्तों की क़समें खा रहा है जो नमाज़ियों की तरह सफ़ बांधे खड़े रहते हैं. या फिर उन फ़रिश्तों की क़समें जो बंदिश करने में लगे हैं. मुहम्मदी अल्लाह ये नहीं बतलाता कि किन उमूर की बंदिश करते हैं, जब कि अल्लाह ख़ुद हर काम को इशारों पर करने की तनहा कूवत रखता है.
अल्लाह उन मुकामों की क़सम भी खाता है जहाँ से उसके मुताबिक़ सूरज, चाँद सितारे निकलते हैं.
इन मुकामों को रौनक देने के एलान के साथ साथ, वह इनको महफ़ूज़ रखने का दावा भी करता है. शैतान को ही अपने बाद क़ुदरत देने वाला अल्लाह इस से और इसके परिवार वालों से अपनी तख़लीक़ें बचाता भी रहता है.
ये आयतें आसमान पर तारे टूटते रहने के मंज़र को देख कर मुहम्मद ने गढ़ी है. 
इतने हिफ़ाज़ती इंतेज़ाम होने के बाद भी शैतान अल्लाह की प्लानिग की ख़बरें उड़ा ही लेता है जिसके पीछे एक दहक़ता हुवा शोला लग जाता है फिर भी शैतान बच निकलने में कामयाब हो जाता है, आगे पारों में है कि वह ख़बरें शैतान जादू गरों को दे देता है.
     
"तो आप उन लोगों से पूछिए कि वह लोग बनावट में ज़्यादः सख़्त हैं या हमारी पैदा की हुई ये चीजें? हमने इन लोगों को चिपकती हुई मिटटी से पैदा किया है बल्कि आप तअज्जुब करते हैं और ये लोग तमसख़ुर करते हैं. और वह लोग ऐसे थे कि जब उन से कहा जाता था कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद ए बर हक़ नहीं, तो तकब्बुर किया करते थे और कहा करते थे कि क्या हम अपने मअबूदों को एक शायरे दीवाना की वजेह से छोड़ दें.
जो लोग ख़ास किए हुए बन्दे हैं उनके लिए गिज़ाएँ और मेवे हैं और वह लोग बड़ी इज्ज़त से आराम के साथ बागों में तख़्तों पर आमने सामने बैठे होंगे. इनके पास ऐसा जामे शराब लाया जायगा जो बहती हुई शराब से भरा जायगा . सफेद होगी, पीने वालों को लज़ीज़ होगी. न इसमें दर्दे सर न अक़लों में फ़ितूर आयगा. और इनके पास नीची निगाह वाली बड़ी बड़ी आँखों वाली होंगी, गोया वह बैज़े हो जो छुपे हुए रखे हों."
सूरह साफ़्फ़ात -37 आयत (11-49)


अल्लाह बन्दों को चैलेज करता है कि वह उनसे बड़ा कारीगर है. 

बन्दे जवाब दें तो दे सकते है कि तूने ज़र्रात बनाए, हमने उनसे आइटम बम बनाया. जिससे सारी दुन्या को तवानाई मिलती है, 
तू क्या ऐसा कर सकता है? 
तूने दरख़्त बनाया हमने उनसे फ़र्नीचर बनाया, क्या तू ऐसा कर सकता है? 
हम इंसान आज हवा में उड़ रहे हैं जिसको ज़माना देखता है, 
तू, तेरे फ़रिश्ते, तेरे पैग़ामबर  कभी उड़ते हुए देखे गए हैं?
मेरी लड़ाई अल्लाह से नहीं है, वह है तो हुवा करे, जब कभी सामने आएगा देख लेंगे, मेरी लड़ाई उन लोगों से है जो अल्लाह के नाम का धंधा करते हैं.
एक और नया शोशा कि 
"हमने  इन लोगों को चिपकती हुई मिटटी से पैदा किया है" 
ऐसी बातों पर कौन न हँसेगा?
मैं बार बार कहता आया हूँ कि मुहम्मद टूटी फूटी शायरी करते थे जिसका सुबूत ये  क़ुरआन है, 
इसे बज़ोर तलवार अल्लाह का कलाम मनवा लिया गया.
जन्नती शराबी होंगे देखिए कि शायरे दीवाना को न शराब की तारीफ़ आती है, न पीने पिलाने का सलीक़ा, बहती हुई नदियों से भरी जाएगी, दूध की तरह सफ़ेद होगी.
अय्याशी के लिए बड़ी बड़ी आँखों वाली मगर निगाह नीची किए होंगी? 
तब क्या लुत्फ़ आएगा. (हूरें) होंगी जैसे चूजों की तरह जो अंडे से बहार निकलते हैं.
कई परिदों के चूजे तो घिनावने होते है.
अक़्ल  का बौड़म अल्लाह का रसूल.


कलामे दीगराँ - - -

"नफ़्स परस्त शख़्स के अन्दर बियाबान में भी ख़ुराफ़ात पैदा हो जाएँगी. 
घर में रहते हुए नफ़्स पर क़ाबू रखना एक जेहाद है. 
जो लोग भले काम करते हैं और अपने नफ़्स पर क़ाबू रखते हैं 
उनके लिए घर ही इबादत गाह है."
'पदम् श्री खंड'
(हिन्दू धर्म) 
इसे कहते हैं कलामे पाक
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नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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