Friday 26 October 2018

सूरह यासीन-36 -سورتہ یاسین (क़िस्त -1)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह यासीन-36 -سورتہ یاسین


(क़िस्त -1)

 क़ुरआन की ये चर्चित सूरह है. इस की चर्चा ये है कि ये बहुत ही बा बरकत आयत है. मुसलमान इसे कागज़ पर मुल्ला से लिखवा के पानी में घोल कर पीते हैं. इस की अबजत लिखवा कर गले में तावीज़ बना कर पहनते हैं. इस  के तुगरा दीवार पर लगा कर घरों को आवेज़ां करते हैं.
मैं एक हार्ट स्पेशलिस्ट के पास ख़ुद को दिखलाने गया, उन्हों ने मुझे नाम से मुस्लिम जान कर दीवार पर सजी सूरह यासीन को बुदबुदाने के बाद मेरा मुआएना किया. 
वह मुस्लिम अवाम का जज़्बाती इस्तेसाल करते हैं. 
ऐसे ही एक हिन्दू डाक्टर के पास गया तो मुझे देखने से पहले हाथों को जोड़ कर ॐ नमस् शिवाय का जाप किया. 
ये हिदू और मुसलमान दोनें डाक्टर पक्के ठग हैं. अवाम बेदार नहीं हुई कि समझे कि मेडिकल साइंस का आस्थाओं से क्या वास्ता है.

"यासीन"
मोह्मिल (अर्थ हीन) लफ्ज़ है, मुहम्मदी अल्लाह का रस्मी छू मंतर समझें.

"क़सम है क़ुरआन ए बा हिकमत की! कि बेशक आप मिन जुमला पैग़ामबर के हैं."
सूरह यासीन -36 आयत (2-3)

उम्मी मुहम्मद जब कोई नया लफ्ज़ या लफ्ज़ी तरकीब को सुनते है तो उसे दोहराया करते हैं, जैसे कि अकसर जाहिलों में होता है कि वह लफ्ज़ बोलने के लिए बोलते हैं. यहाँ मुहम्मद ने "मिन जुमला" को जाना है जो कि क़ुरआन में कई बार दोहराने के लिए इसे बोले हैं. 'मिन जुमला' कारो बारी अल्फाज़ हैं जिसके मतलब होते हैं 'टोटली' यानी 'कुल जोड़'. तर्जुमान इसमें मंतिक भिड़ाते रहते हैं.
मुहम्मद मुतलक जाहिल थे और ये है जिहालत की अलामत है. 
कहते हैं - - - 
"आप मिन जुमला पैग़म्बर के हैं."
इसी ज़माने की एक हदीस है कि इस उम्मी ने कहा
"काफ़िरों की औरतें और बच्चे मिन जुमला काफ़िर होते है, शब ख़ून में अगर ये मारे जाएँ तो कोई अज़ाब नहीं."
यहाँ से अल्लाह को क़समें ख़ाने  का दौरा पड़ेगा तो आप देखेंगे कि वह किन किन चीजों की क़समें खाता है. वह क़समों की क़िस्में भी बतलाएगा, जिससे मुसलमान फैज़याब हुवा करते हैं. वह  क़ुरआन ए बा हिक्मत की क़सम खा रहा है जिसमें कोई हिकमत ही नहीं है. 
ख़ुद अपनी तारीफ़ अपने मुंह से कर रहा है?
कितने भोले भाले जीव हैं ये मुसलमान कि मुआमले को कुछ समझते ही नहीं.

"सीधे रस्ते पर हैं, ये क़ुरआन, अल्लाह ज़बरदस्त की तरफ़ से नाज़िल किया गया है. कि आप ऐसे लोगों को डराएँ कि जिनके बाप दादे नहीं डराए गए थे, सो इससे ये बेख़बर  हैं."
सूरह यासीन -36 आयत (4-6)

जो डरे वह बुज़दिल होता है. ख़ुद डर का शिकार होता है. 
अल्लाह अगर है तो वह डराने का मतलब भी न जानता होगा 
और अगर जानते हुए बन्दों को डराता है तो वह अल्लाह नहीं शैतान है.

"इनमें से अकसर लोगों पर ये बात साबित हो गई है कि वह ईमान नहीं लाएँगे. हमने इनकी गर्दनों में तौक़ डाल दी है, फिर वह ठोडियों तक हैं, जिससे इनके सर उलर  रहे हैं."
सूरह यासीन -36 आयत (7-8)

माज़ूर और मायूस अल्लाह थक हार कर बैठ गया कि कुफ़्फ़ार ईमान लाने वाले नहीं. तौक़ (एक जेवर) उनकी गर्दनों में क्या इनआम के तौर पर डाल दी है?
उम्मी का तखय्युल मुलाहिज़ा हो, जब ठोडियाँ जुंबिश न कर सकें तो सर कैसे उलरेन्गे?
दीवाना जो मुँह में आता है, बक देता है.

"और हमने एक आड़ इनके सामने कर दी और एक इनके पीछे कर दी, जिससे हम ने इनको घेर दिया, सो वह नहीं देख सकते. इनके हक़ में आप का डराना न डराना दोनों बराबर है सो वह ईमान न ला सकेंगे. पस आप तो सिर्फ़ ऐसे शख़्स को डरा सकते हैं जो नसीहत पर चले और अल्लाह को बिन देखे डरे."
सूरह यासीन -36 आयत (9-11)

एक महिला प्रवचन दे रही थीं, कह रही थीं कि पुस्तक पर पहले आस्था क़ायम करो, फिर उसको खोलो.
मुझसे रहा न गया, उनको उनको टोका कि पुस्तक में चाहे कोकशास्त्र ही क्यूं न हो ? 
वह एकदम से सटपटा गईं और मुँह जिलाने वाली बातें करने लगीं.
यहाँ पर मुहम्मदी अल्लाह आगे पीछे आड़ लगा रहा है कि सोचने समझने का मौक़ा ही नहीं रह जाता कि उसके क़ुरआन  में कोकशास्त्र है या इससे घटिया बातें भी, बस डर के बंदे उसको तस्लीम कर ले.

"बेशक हम मुर्दों को ज़िंदा कर देंगे और हम लिखे जाते हैं वह आमाल भी जिन को लोग आगे भेजते जाते हैं और उनके वह आमाल भी जो पीछे छोड़ जाते हैं और हम ने हर चीज़ को एक वाज़ह किताब में दर्ज कर दिया है,"
सूरह यासीन -36 आयत (12)
मुहम्मद का मुंशी बना अल्लाह दुन्या के अरबों खरबों इंसानों का बही खाता रखता है, ज़रा उम्मी की भाषा पर ग़ौर  करें - - -
"जिन को लोग आगे भेजते जाते हैं और उनके वह आमाल भी जो पीछे छोड़ जाते हैं "
अल्लाह के सहायक ओलिमा, ऐसी बातों की रफ़ू गरी करते हैं.

"और एक निशानी इन लोगों के लिए मुर्दा ज़मीन है, हमने इसको ज़िंदा किया और इससे ग़ल्ले निकाले, सो इनमें से लोग खाते हैं."
सूरह यासीन -36 आयत (33)

बार बार मुहम्मद ज़मीन को मरे हुए इंसानी जिस्म की तरह मुर्दा बतलाते हैं, मुसलमान इसे ठीक मान बैठे हैं, मगर ज़मीन कभी भी मुर्दा नहीं होती, पानी के बिना वह उबरती नहीं, बस. 
मशहूर शायर रहीम ख़ान  खाना कहते हैं - -
रहिमन पानी राखियो, पानी बिन सब सून.
पानी गए  न ऊबरे, मोती मानस चून.
मुहम्मद रहीम के फिकरी गर्द को भी नहीं पा सकते. ज़मीन को मुर्दा कहते हैं. फिर पानी पा जाने के बाद उसे ज़िदा पाते हैं मगर इसी तरह इंसानी जिस्म मुर्दा हो जाने के बाद कभी ज़िदा नहीं हो सकता.
वह इस जाहिलाना मन्तिक़ को मुसलमानों में फैलाए हुए हैं.

"सो इनके लिए एक निशानी रात है जिस पर से हम दिन को उतार लेते हैं सो यकायक वह लोग अँधेरे में रह जाते है और एक आफ़ताब अपने ठिकाने की तरफ़ चलता रहता है. ये अंदाज़ा बांधता है उसका जो ज़बर दस्त इल्म वाला है, न आफ़ताब को मजाल है कि चाँद को जा पकडे और न रात दिन के पहले आ सकती है और दोनों एक एक दायरे में तैरते रहते हैं."
सूरह यासीन -36 आयत (37-40)

ऐ उम्मी ! अपनी ज़बान में सलीक़ा और समझ पैदा कर. ये दिन यकायक नहीं उतरता, इस बीच शाम भी होती है, यकायक लोग अँधेरे में कब होते हैं?.
क़ुरआन मुसलमानों को चूतिया बनाए हुए है जिनको देख कर ज़माना ख़ुश हो रहा है कि ये अल्लाह की मख़लूक़ यूँ ही बने रहें ताकि हमें सस्ते दामों में ग़ुलाम मयस्सर होते रहें.
और ऐ उम्मी! ये आफ़ताब चलता नहीं, अपनी ख़ला में क़ायम है और इसके पास कोई इंसानी दिलो दिमाग नहीं है कि वह किसी ज़बरदस्त को जानने की जुस्तुजू रखता हो.
और ऐ जहिले मुतलक़! ये आफ़ताब और ये माहताब कोई लुका छिपी का खेल नहीं खेल रहे. 
चाँद ज़मीन की गर्दिश करता है, 
ज़मीन इसे अपने साथ लिए सूरज की गर्दिश में है.
और ऐ मज़लूम मुसलमानों! 
तुम जागो कि तुम पर जगे हुए ज़माने की गर्दिश है.

कलामे दीगराँ  - - -
"ऐ ख़ुदा ! हमारी ज़िन्दगी को तालीम ए बद देने वाले आलिम बिगड़ते हैं, जो बद जातों को अज़ीम समझते हैं, 
जो मर्द और औरत के असासे और विरासत को लूटते हैं 
और तेरे नेक बन्दों को राहे रास्त से बहक़ते हैं"
"ज़र्थुर्ष्ट"
इसे कहते हैं कलामे पाक 

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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