Monday 22 October 2018

सूरह फ़ातिर-35 -سورتہ فاطر (क़िस्त - 2)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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 सूरह फ़ातिर-35 -سورتہ فاطر
(क़िस्त - 2)  

अल्लाह के कारनामे मुलाहिज़ा हों - - - 

"तो क्या ऐसा शख़्स जिसको उसका आमले-बद से अच्छा करके दिखाया गया, फिर वह उसको अच्छा समझने लगा, और ऐसा शख़्स जिसको क़बीह को क़बीह (बुरा) समझता है, कहीं बराबर हो सकते हैं
सो अल्लाह जिसको चाहता गुमराह करता है.
जिसको चाहता है हिदायत करता है .
सो उन पर अफ़सोस करके कहीं आपकी जान न जाती रहे.
अल्लाह को इनके सब कामों की ख़बर है.
और अल्लाह हवाओं को भेजता है, फिर वह बादलों को उठाती हैं फिर हम इनको खुश्क कर के ज़मीन की तरफ़ हाँक ले जाते हैं, फिर हम इनको इसके ज़रिए से ज़मीन को ज़िंदा करते हैं. इसी तरह (रोज़े -हश्र  इंसानों का) जी उठाना है. जो लोग इज्ज़त हासिल करना चाहें तो, तमाम इज्ज़त अल्लाह के लिए ही हैं.
अच्छा कलाम इन्हीं तक पहुँचता है और अच्छा काम इन्हें पहुँचाता है."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (8-10)

इन आयतों के एक एक जुमले पर ग़ौर करिए कि उम्मी अल्लाह क्या कहता है?
*मतलब ये कि अच्छे और बुरे दोनों कामों के फ़ायदे हैं मगर दोनों बराबर नहीं हो सकते.
*मुसलमानों के लिए सबसे भला काम है= जिहाद, फिर नमाज़, ज़कात और हज वग़ैरह और बुरा काम इन की मुख्लिफत. 
*जब अल्लाह ही बन्दे को गुमराह करता है तो ख़ता वार अल्लाह हुवा या बंदा?
*जिसको हिदायत नहीं देता तो उसे दोज़ख़ में क्यूँ डालता है ? 
क्या इस लिए कि दोज़ख़ से, उसका पेट भरने का वादा किए हुए है ?
*जब सब कामों की ख़बर है तो बेख़बरी किस बात की? 
फ़ौरन सज़ा या मज़ा चखा दे, क़यामत आने का इंतज़ार कैसा? 
बुरे काम करने ही क्यूँ देता है इंसान को?
*अल्लाह हवाओं को हाँकता है, जैसे चरवाहे मुहम्मद बकरियों को हाँका करते थे.
*गोया कि इंसान दफ़्न होगा और रोज़ हश्र बीज की तरह उग आएगा. 
फिर सारे आमाल की ख़बर रखने वाला अल्लाह ख़ुद भी नींद से उठेगा 
और लोगों के आमालों का हिसाब किताब करेगा.
*"तमाम इज्ज़त अल्लाह के लिए ही हैं.
"तब तो तुम इसके पीछे नाहक़ भागते हो, 
इस दुन्या में बेईज्ज़त बन कर ही जीना है. 
जो मुसलमान जी रहे हैं.
मुसलमानों! 
तुम जागो. अल्लाह को सोने दो. 
क़यामत हर खित्ता ए ज़मीन पर तुम्हारे लिए आई हुई है. 
पल पल तुम क़यामत की आग में झुलस रहे हो. 
कब तुम्हारे समझ में आएगा. 
क़यामत पसंद मुहम्मद हर तालिबान में ज़िंदा है 
जो मासूम बच्चियों को तालीम से ग़ाफ़िल किए हुए है. 
गैरत मंद औरतों पर कोड़े बरसा कर ज़िन्दा दफ़्न करता है. 
ठीक ऐसा ही ज़िन्दा मुहम्मद करता था.

"अल्लाह ने तुम्हें मिटटी से पैदा किया, फिर नुत्फ़े से पैदा किया, फिर तुमको जोड़े जोड़े बनाया और न किसी औरत को हमल रहता है, न वह  जनती है, मगर सब उसकी इत्तेला से होता है और न किसी की उम्र ज़्यादः की जाती है न उम्र कम की जाती है मगर सब लौहे-महफ़ूज़ (आसमान में पत्थर पर लिखी हुई किताब) में होता हो.ये सब अल्लाह को आसान है."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (11)

इंसान के तकमील का तरीक़ा कई बार बतला चुके हैं अल्लाह मियाँ ! 
कभी अपने बारे में भी बतलाएँ कि आप किस तरह से वजूद में आए.
उम्मी का ये अंदाज़ा यहीं तक महदूद है ?
वह अनासिरे ख़मसा (पञ्च तत्व) से बे ख़बर है ?
"मिटटी से भी और फिर नुतफ़े से भी"? 
मुहम्मद तमाम मेडिकल साइंस को कूड़े दान में डाले हुए हैं. 
मुसलमान आसमानी पहेली को सदियों से बूझे और बुझाए हुए है.

"और दोनों दरिया बराबर नहीं है, एक तो शीरीं प्यास बुझाने वाला है जिसका पीना आसान है. और एक खारा तल्ख़ है और तुम हर एक से ताजः गोश्त खाते हो, ज़ेवर निकलते हो जिसको तुम पहनते हो और तू कश्तियों को इसमें देखता है, पानी को फाड़ती हुई चलती हैं, ताकि तुम इससे रोज़ी ढूढो और शुक्र करो."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (12)

मुहम्मदी अल्लाह की मालूमात देखिए कि खारे समन्दर को दूसरा दरिया कहते हैं, 
ताजः मछली को ताजः गोश्त कहते हैं, 
मोतियों को जेवर कहते हैं. 
हर जगह ओलिमा अल्लाह की इस्लाह करते हैं. 
भोले भाले और जज़बाती मुसलमानों को गुमराह करते हैं. 

"वह रात को दिन में और दिन को रात दाख़िल कर देता है. उसने सूरज और चाँद को काम पर लगा रक्खा है. हर एक वक्ते-मुक़र्रर पर चलते रहेंगे. यही अल्लाह तुम्हारा परवर दिगार है और इसी की सल्तनत है और तुम जिसको पुकारते हो उसको खजूर की गुठली के छिलके के बराबर भी अख़्तियार नहीं" 
सूरह फ़ातिर -35 आयत (13)

रात और दिन आज भी दाख़िल हो रहे हैं एक दूसरे में 
मगर वहीँ जहाँ तालीम की रौशनी अभी तक दाख़िल नहीं हुई.
अल्लाह सूरज और चाँद को काम पर लगाए हुए है 
अभी भी जहां आलिमाने-दीन की बद आमालियाँ  है. 
मुहम्मदी अल्लाह की हुकूमत क़ायम रहेगी 
जब तक इस्लाम मुसलमानों को सफ़ा ए हस्ती से नेस्त नाबूद न कर देगा.

"अगर वह तुमको चाहे तो फ़ना कर दे और एक नई मख़लूक़ पैदा कर दे, अल्लाह के लिए ये मुश्किल नहीं."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (14)

अल्लाह क्या, कोई भी गुंडा बदमाश किसी को फ़ना कर सकता है.
मगर मख़लूक़ में इंसान भी एक क़िस्म की मख़लूक़ , 
अगर वह इसे ख़त्म कर दे तो पैग़मबरी किस पर झाडेंगे?
मैं बार बार मुहम्मद की अय्यारी और झूट को उजागर कर रहा हूँ 
ताकि आप जाने कि उनकी हक़ीक़त क्या है. 
यहाँ पर मख़लूक की जगह वह काफ़िर जैसे इंसानों को मुख़ातिब करना चाहते हैं मगर इस्तेमाल कर रहे हैं शायरी लफ़्फ़ाज़ी.

"आप तो सिर्फ़ ऐसे लोगों को डरा सकते हैं जो बिन देखे अल्लाह से डर सकते हों और नमाज़ की पाबंदी करते हों."
सूरह फ़ातिर -35 आयत (18)

बेशक ऐसे गधे ही आप की सवारी बने हुए हैं.

"और अँधा और आँखों वाला बराबर नहीं हो सकते और न तारीकी और रौशनी, न छाँव और धूप और ज़िंदे मुर्दे बराबर नहीं हो सकते. अल्लाह जिस को चाहता है सुनवा देता है. और आप उन लोगों को नहीं सुना सकते जो क़ब्रों में हैं." 
सूरह फ़ातिर -35 आयत (19-22)

मगर या अल्लाह तू कहना क्या चाहता है, 
तू ये तो नहीं रहा कि मुल्ला जी और डाक्टर बराबर नहीं हो सकते.
जो इस पैग़ाम को सुनने से पहले क़ब्रों में चले गए, 
क्या ?
उन पर क्यों नाफ़िज़ होगा यह है कलाम पाक ? 
तू रोज़े-हश्र मुक़दमा चला कर दोज़खी जेलों में ठूँस देगा ? 
तेरा उम्मी रसूल तो यही कहता है कि उसका बाप अब्दुल्लह भी जहन्नम रसीदा होगा.
या अल्लाह क्या तू इतना नाइंसाफ़ हो सकता है?
दुन्या को शर सिख़ाने  वाले फ़ित्तीन के मरहूम वालिद का उसके जुर्मों में क्या कुसूर हो सकता है? 

कलामे दीगराँ - - - 
"आदमी में बुराई ये है कि वह दूसरे का मुअल्लिम (शिक्षक) बनना चाहता है और बीमारी ये है कि वह अपने खेतों की परवाह नहीं करता और दूसरे के खेतों की निराई करने का ठेका ले लेता है."
 कानफ़्यूश
यह है कलाम पाक 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. मुसलमानों के प्यारे परवरदिगार कह रहे है " भला यह कुरआन में गौर क्यों नहीं करते ,,अगर यह अल्लाह के सिवा किसी और का कलाम होता तो इसमें वह बहुत सा इख्तिलाफ पाते " ( सूरह अल-निसा 82) जब हम कुरआन में गौर करते है तो बहुत सारे इख्तिलाफ रोज ए रौशन की मानिन्द अयां हो जाते है ।कुरान में कुल 6666 झूटी आयतें हैं ,और हर आयत का शान ए नुजूल तफ्सीर की किताबों में तहरीर है ।जिसे पढकर अक्लमन्द इनसान अपना सिर दीवार से टकराकर मर जाना तो पसंद कर सकता है मगर उसे कभी तस्लीम नहीं कर सकता । आइए अल्लाह की किताब में गौर करें और जान लें कि कुरान वाकई अल्लाह का कलाम है या नहीं है । कुरान मक्की सूरत "अल-नह्ल" में शराब को हलाल ,,और मदनी सूरत " अल- माईदः में हराम करार दे रहा है । आयत मुलाहिजा करें " और तुम्हारे लिए चैपायों में भी मुकाम ए इबरत व गौर है कि उनके पेटों में जो गोबर और लुहू है उसके दरमियान से निकालकर हम तुमको खालिस दूध पिलाते हैं , जो पीने वालों के लिए खुशगवार है ।और खजूर और अंगूर के मेवों से भी तुम पीने की चीजें तैय्यार करते हो ,,उनसे शराब बनाते हो ,और उमदः रिज्क खाते हो ,जो लोग समझ रखते है उनके लिए इन चीजों में निशानी है "(सूरह अल नह्ल 66-67)इन दो आयात में अल्लाह ने अपनी चंद नेअमतों का जिक्र किया है । (1) दूध की नेअमत (2) चौपायों की नेअमत (3) शराब की नेअमत (4)फल और मेवों की नेअमत ,यही नहीं बल्कि इसमें अक्लमन्दों के लिए निशानी भी है । इस आयत में अल्लाह ने शराब को अपनी नेअमत कहकर हुक्म दिया है कि " दिल खोल कर पियो मेरे प्यारे प्यक्कडों ,, तुम पर कोई गुनाह नहीं होगा क्यों कि जब शराब अल्लाह को प्यारी है तो बन्दों को भी प्यारी होनी चाहिए " यह आयत शराब को हराम कर देने वाली मदनी सूरह अल- माईदह की आयत (90)से मुतसादिम है जो कहती है " ऐ ईमान वालों ! शराब ,जुवा ,बुत और पांसे यह सब नापाक काम आमाल ए शैतान से हैं सो इनसे बचते रहना ताकि तुम कामयाब हो जाओ"(अल माईदहः90)सवाल यह है कि अल्लाह अपने बन्दों पर शराब को नेअमत करार देते हुए अपनी जुमलह नेअमतों में शुमार करे फिर अचानक उसके खिलाफ जाते हुए शराब को आमाल ए शैतान करार दे ? जब अल्लाह शराब को अपनी नेअमतों में शुमार कर रहा था तो क्या वह नहीं जानता था कि कल वह उसे आमाल ए शैतान बना देगा ? तफसीर तबरी ,तफसीर करतबी वगैरह में है कि "शराब को हलाल करने वाली आयत ,उस वक्त नाजिल हुई थी जब पैगम्बर और उनके सहाबी हजरात शराब के जाम छलका रहे थे जो शराब को हराम करने से पहले है ।नोट करें ,,मुफस्सिर इसको शराब हराम करार दिए जाने से पहले का मुआमिला करार दे रहे है ,मगर यह बात नजर अनदाज कर रहे है कि अल्लाह शराब को अपनी नेअनतों में शुमार कर रहा है । तजाद साफ जाहिर है । जो इस बात का भी सुबूत है कि कातिब को यह पता ही नही था कि आज वह शराब को हलाल तो कर रहा है कल उसे हराम भी कर सकता है ।चुनानचे वह उसे अल्लाह की नेअमतों मैं शुमार कर गया ,,अगर वकई कुरान अल्लाह का कलाम होता तो अल्लाह ऐसे तजाद में कभी न पडता। खुलासा ए कलाम ,,यह ऐसा कुरानी झोल हैजो यह साबित कर रहा है कि कुरान दुनिया की सब से बडी जालसाजी है । नोट:- जब तक कुरान वरका बिन नौफल लिखते रहे शराब हलाल होती थी और तमाम सहाबी हजरात खूब पीते थे ।यह हजरात अपने वक्त के बेहतरीन प्यक्कड थे
    सूरह अल नह्ल मक्की सूरत है यानी मक्का में लिखी गयी ।

    मदीने आने के बाद जब सहाबियों में हद दरजा शराब खोरी की शराब को हराम कर दिया गया । श्रीमान जी ,,इस मौजू पर आप के आर्टिकल का मुनतजिर हूं ।

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