Saturday 27 October 2018

u Dharm Darshan 242


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (45)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
>बुद्धि, ज्ञान, संशय तथा मोह से मुक्ति, क्षमा भाव, सत्यता, इन्द्रिय निग्रह, मन निग्रह, सुख तथा दुःख, जन्म, मृतु, भय, अभय, अहिंसा, समता, तुष्टि, तप, दान, यश तथा अपयश -- जीवों के यह विभिन्न गुण मेरे ही द्वारा उत्पन्न हैं.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -10  श्लोक -4+5 
>यह सभी सकामकता और धनात्मक योग और गुण आप द्वरा संचालित हैं, तो 
हे भगवन ! 
ऋणातमकता कौन सृजित करता है ? 
कुबुद्धि, अज्ञान, झूट जैसे अवगुण का निर्माण कोई शैतान करता है ? उसके आगे आप बेबस हैं ?
तमाम अवगुण संसार में प्रचलित ही क्यों हुए , आपके होते हुए ? 
अगर इसका संचालन आप  द्वारा ही है तो आप में और पिशाच में फर्क है. आपको क्यों पूजा जाए ? 
क्यूँ न हम उसकी पूजा करें?  

और क़ुरआन कहता है - - - 
>'' बिला शुबहा अल्लाह तअला बड़ी क़ूवत वाले हैं''
सूरह इंफाल - ८ नौवाँ परा आयत ( ५२)
जो ''कुन'' कह कर इतनी बड़ी कायनात की तखलीक करदे उसकी कूवत का यकीन एक अदना बन्दा से क्यूँ करा रहा है ? 
***


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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