Monday 8 October 2018

Soorah Ahzab 33-Q3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अहज़ाब -33 -سورتہ الاحزاب 
क़िस्त 3 
मुहम्मद की बेग़ैरती का साथ अल्लाह कैसे दे रहा है, आपने पिछली आयतों में देखा और देखिए कि अपने फैलाए हुए ग़लाज़त की लीपा-पोती वह कैसे कर रहे हैं.

"किसी ईमान दार मर्द और किसी ईमान दार औरत को गुंजाइश नहीं है, जब कि अल्लाह और उसका रसूल किसी काम का हुक्म दे दें कि इन कामों में कोई अख़्तियार रहे और जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल का कहना न मानेगा, वह सरीह गुमराही में पड़ा और जब आप इस शख़्स से (ज़ैद बिन हारसा से) फ़रमा रहे थे जिस पर अल्लाह ने इनआम किया और आपने भी इनआम किया कि वह अपनी बीवी (जैनब) को अपनी ज़ौजियत में रहने दे और अल्लाह से डरे. और आप अपने दिल में छिपाए हुए थे जिसको अल्लाह ज़ाहिर करने वाला था. और आप लोगों के तअनो से अंदेशा करते थे, और डरना तो आपको अल्लाह से ही ज़्यादा सज़ावार है. फिर जब ज़ैद का इससे दिल भर गया, हम ने इससे आप का निकाह कर दिया ताकि मुसलमानों को अपने मुँह बोले बेटों की बीवियों से निकाह करने कोई तंगी न रहे कि जब यह उनसे अपना जी भर चुकें. अल्लाह का ये हुक्म होने ही वाला था."
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (36-37)

देखिए कि किस ढिटाई के साथ उम्मी कह रहा है, 
अपनी रखैल ज़ैनब की कहानी ज़ाहिर करने को था कि उसकी कोई तरकीब उसको नहीं सूझ रही थी, कि कैसे इसको ज़ाहिर करे. 
ख़ुद को अल्लाह का हम सर कहते हुए दोनों के हुक्म को मानने की हिदायत दे रहा है. आयत कह रही है कि ख़ुद को अल्लाह बतलाते हुए ज़ैद को धमकी दे चुका है.
इस्लाम इंसानी आज़ादी का ख़ून करते हुए कह रहा है 

"किसी ईमान दार मर्द और किसी ईमान दार औरत को गुंजाइश नहीं है, 
जब कि अल्लाह और उसका रसूल किसी काम का हुक्म दे दें कि इन कामों में कोई अख़्तियार रहे" 

यानी इस्लाम में हक़ और सदाक़त की कोई गुंजाइश ही नहीं है.
अय्यारों के सरताज ये तो बतलाइए कि कौन सा ये दूसरा मेराज आप का, कब और किस तरह हुवा था? 
किस बुर्राक़ या लिल्ली घोड़ी पर सवार होकर, अपनी रखैल ज़ैनब को बाँहों में लेकर आप ने आसमान की सैर की थी? 
पहले मेराज में तो अल्लाह तअला ने आपको परदे के पीछे रह कर नमाज़ों का ख़ज़ाना देकर रुख़सत किया था, 
इस बार तो आमने सामने बैठ कर बाक़ायदा क़ाज़ी बन के आप का निकाह पढ़ाया और जिब्रील मुजससम आपके सामने थे? 
आप तो ईसा मूसा सबसे आगे हो गए कि किसी ज़ानिया को लेकर अल्लाह के सामने थे, उसको देखा भी, उससे बात भी की. आप पर अल्लाह की मार.

"और इन पैग़मबरों के वास्ते अल्लाह तअला ने जो बात मुक़र्रर कर दी थी, इस नबी पर कोई इलज़ाम नहीं. अल्लाह तअला ने इनके हक़ में यही मामूल रखा है जो पहली हो गुज़रे हैं और अल्लाह का हुक्म तजवीज़ किया हुवा होता है." 
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (38)

उम्मी अपनी ज़बान ए जिहालत में कह रहा है कि इस तरह की कहानी है हर पैग़मबर की है, उसकी ही नहीं. 
वह अपनी ज़िम्मेदारी अल्लाह पर डालता है. 
उसके दीवाने उसकी इस बात से इत्तेफ़ाक़ करते हुए कहा करते हैं कि रसूल तो मासूम हुवा करते हैं, उनके हर काम मिनजानिब अल्लाह होता है.

"ये सब पैग़म्बरान-गुज़िश्ता ऐसे ही थे कि अल्लाह का पैग़ाम पहुँचाया करते थे और इस बात में अल्लाह से डरते थे, अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरते रहे. अल्लाह हिसाब लेने के लिए काफ़ी है. मुहम्मद तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं लेकिन रसूल हैं, सब नबियों पर ख़त्म हैं."
सूरह अहज़ाब - 33 आयत (39-40)

जेहालत से भरपूर पयंबरी कहती है कि वह अल्लाह का आख़िरी रसूल है. उसके बाद इस धरती पर कोई दूसरा रसूल न आएगा.
यानी वह अपनी जिहालत की आयतें हमेशा हमेशा के लिए मुसलमानों के लिए वफ़्फ़ कर रहा है. मुसलमान दुन्या के साथ रह कर चाहे जितनी बुलंदी पर चला जाए, इस्लाम में आकर वह खाईं की गहराई ही में गिर जाएगा,
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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