Friday 14 December 2018

सूरह जासिया-45 -2 سورتہ الجاسیہ

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है.
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

*****
सूरह जासिया-45 - سورتہ الجاسیہ
क़िस्त 2  

क़ुरान कहता है - - - 

"आप ईमान वालों से फ़रमा दीजिए कि उन लोगों से दर गुज़र करें जो ख़ुदा के मुआमलात का यक़ीन नहीं रखते ताकि अल्लाह तअला एक क़ौम को इनके आमल का सिला दे."
सूरह जासिया - 45 आयत (15)

मजहबे इस्लाम में इतने पोल खाते हैं कि दलायल गढ़ने वाला अल्लाह पल भर भी किसी बहस मुबाहिसे वाली महफ़िल में टिक नहीं सकता, इस लिए इसका हल पेश कर रहा है कि मुसलमान बुद्धि जीवयों का शिकार न बने और उनकी संगत से बाहर आ जाएं. 
उम्मी मुहम्मद ने मुसलमानों की किस क़दर घेरा बंदी की है, 
इसकी गवाही पूरे क़ुरआन में देखी जा सकरी है. 
मुल्ला जी दानिश वरों की महफ़िल से उठ कर खिसक लेते हैं.
ये वही ज़माना है जब मुहम्मद दीवाने पागल की तरह हर जगह अपनी आयतें गाते फिरते थे और अवामी रद्दे अमल को ख़ुद बयान करते है. 
क्या आज भी ऐसे शख़्स के साथ यही सुलूक नहीं किया जायगा? 
मगर माज़ी की इस कहानी को जानते हुए आज मुसलमान उसकी बातों पर यक़ीन करने लगे.
बुद्धि हाथों पे सरसों उगाती रही,
बुद्धू कहते रहे कि चमत्कार है.

"मुनकिर लोग कहते हैं कि बजुज़ हमारी इस दुनयावी हयात के और कोई हयात नहीं है. हम मरते हैं न जीते हैं और हमको सिर्फ़ ज़माने की गर्दिश से मौत आ जाती है, और उन लोगों के पास कोई दलील नहीं है, महज़ अटकल हाँक रहे है. और जिस वक़्त इन लोगों के सामने हमारी खुली खुली आयतें पढ़ी जाती हैं तो इनका बजुज़ इसके कोई जवाब नहीं होता कि हमारे बाप दादों को ज़िदा करके लाओ."
सूरह जासिया - 45 आयत  (25-44)

देखिए कि उस ज़माने में भी ऐसे साहिबे फ़िक्र थे जिन्होंने ज़िन्दगी को समझने की कोशिश की थी. उनकी फ़िक्र की गहराई देखें

"बजुज़ हमारी इस दुनयावी हयात के और कोई हयात नहीं है. हम मरते हैं न जीते हैं और हमको सिर्फ़ ज़माने की गर्दिश से मौत आ जाती है"
उनको जवाब में मुहम्मद की "खुली खुली आयतें" हैं जिन की उरयानियत मुसलमानों को मुँह चिढ़ाती हैं.

"और हमने बनी इस्राईल को किताब और हिकमत और नबूवत दी थी और हमने उनको नफ्से-नफ़ीस चीजें ख़ाने  को दी थीं और हमने उनको दुन्या जहान वालों पर फ़ौक़ियत दी थी और हमने उनको दीन के बारे में खुली खुली दलीलें दीं, सो उन्हों ने इल्म के आने के बाद बाहम एख्तेलाफ़ किया बवजेह आपस की ज़िद्दा ज़िद्दी. आप का रब इनके आपस में बैर रखने का क़यामत के रोज़ इन उमूर में फ़ैसला करेगा जिसके लिए इन में बाहम इख्तेलाफ़ किया करते थे, फिर हमने आप को दीन का एक तरीक़ा दिया, सो आप तरीक़े पर चलते जाइए, और इन जाहिलों की ख़्वाहिश पर मत चलिए."
सूरह जासिया - 45 आयत (16-18)

मुहम्मद ने जितना बनी इस्राईल के बारे में जाना है, बयान कर दिया. 
जबकि इनकी बुनयादी अक़ीदे को जानते भी नहीं. 
इस्रईलयों के ख़ुदा ने इन्हें दिया हुआ है क़ि तुम ही पूरी दुन्या के हाकिम रहोगे और दुन्या की तमाम कौमें तुम्हारे तुफ़ैल में ज़िन्दगी जिएँगी. 
उन्हीं के वंशज आर्यन हिदुस्तान में ब्रहमिन यानी इब्राहीमी अपने ब्रहमा का वरदान लिए आज भी सुपरमैन बने हुए है. 
आज भी पूरी दुन्या में यही यहूदी सबसे ज़्यादः दौलत मंद और साइंस दान मौजूद हैं, मगर ये भी क़रारा सच है कि दुश्मने इंसानियत होने की वजेह से अपनी ही जाति की बड़ी कुर्बानी दी है. 
इनका बड़ा गुनाह ये है किअमरीका में मालिक रेड इंडियन का इन्हों ने सफ़ा ए हस्ती से मिटा दिया. भारत के असली बाशिंदों पाँच हज़ार साल से ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी जीने को मजबूर किए हुए हैं.
ये दुन्या अभी भी रचना काल में है और शायद हमेशा रचना काल में रहेगी. 
इसकी रचना में बाधा बन कर कभी मूसा पैदा होते हैं, कभी ब्राह्मन तो कभी मुहम्मद. जब तक धरती पर धर्म के धंधे बाज़ ज़िंदा हैं, इंसानियत कभी फल फूल नहीं सकती.

कलामे दीगराँ - - -
"जो जवानी में ऐसा नरम नहीं जैसा बच्चों को होना चाहिए, 
जो बुढ़ापे में ऐसा काम नहीं कर पाया जो अगली नस्लों के लिए मुफीद हो, जो बुढ़ापे तक सिर्फ़ जीता ही रहा, ऐसा इंसान महामारी है"
"कानफियूशस Kung Fu Tzu"
"इंसान को अपनी बे एतदाल तबीअत और बोझिल हसरतों को छोड़ कर सादा लौही को अपनाना चाहिए."
(चीनी धर्म गुरु)

इसे कहते हैं कलाम पाक

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment